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Wednesday, May 31, 2023

एक ढाबा ऐसा भी- पेट भर खाओ, जितना मन हो उतने पैसे दो, नहीं है तो मत दो

कई बार हमारे जीवन में परिस्थिति कुछ ऐसी होती है कि जो हम करना चाहते हैं वह कर नहीं पाते और जो कभी करने का सोचे नहीं रहते हैं वह करना पड़ जाता है। कई बार जीवन में किसी के आ जाने से पूरी जिंदगी बदल जाती है। आज हम आपको पुदुचेरी के रहने वाले शेखर पूवरसन के बारे में बताएंगे, उन्हें अपने जीवन में एक ऐसे बुजुर्ग से मुलाकात हुई जिसने उनकी पूरी जिंदगी बदल कर रख दी। आइये जानते हैं उनके बारे में।

पुदुचेरी के शेखर पूवरसन

पुदुचेरी (Puducherry) के रहने 22 वर्ष के शेखर पूवरसन चिंतित एवं उदास मन से समुद्र के किनारे बैठे हुए थे। उनके मन में कई तरह की परेशानियां थी जिसका कोई समाधान उन्हें नहीं मिल पा रहा था। शेखर की पढ़ाई की बात की जाए तो उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग (Electronics Engineering) में डिप्लोमा (Diploma) किया है लेकिन क’रोना की वजह से उन्हें नौकरी नहीं मिल पा रही थी इससे उन्हें अपने बीमार पिता की इलाज कराने का चिंता सता रही था। वह करे तो क्या करें इसी सोच में वह डूबे हुए थे।

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बुजुर्ग ने शेखर को दिया धन्यवाद

समुद्र तट पर बैठे हुए उन्हें भूख का अनुभव हुआ लेकिन जेब में मात्र 10 रुपए ही थे। शेखर चाय की दुकान पर पहुंचे। वहां पर उन्होंने एक बुजुर्ग को देखा जिनकी हालत काफी दैनीय थी। तब शेखर ने उस बुजुर्ग से पूछा क्या आपने कुछ खाया है? तब उस बुजुर्ग ने जवाब दिया नहीं लेकिन उसे बहुत भूख लगी थी। तब शेखर ने चाय की दुकान से उस बुजुर्ग को एक कप चाय खरीद कर पिलाया। चाय पीने के बाद बुजुर्ग ने शेखर को आदरपूर्ण नज़रों से देखते हुए धन्यवाद दिया।

घर जा कर ढाबे खोलने का लिया फ़ैसला

उस बुजुर्ग से मिलने के बाद शेखर का मन अत्यंत भारी हो गया। घर आकर उन्होंने अपनी मां से कहा खाने के लिए अगर किसी इंसान को गिरगिराना परे या फिर भीख मांगना पड़े यह बेहद शर्म की बात है। शेखर ऐसे भूखे और लाचार लोगों को खाना खिलाने के लिए पुदुचेरी के हाईवे (Highway) पर फूड स्टॉल (Food Stall) लगाने के लिए अपनी मां को मना लिए। जिसके बाद उन्होंने थेन्कोदीपक्कम पर मानधनेयम (Mandhneyam) यानी इंसानियत नामक ढाबा खोला। शेखर अपने ढाबे पर लोगों के खाने के लिए पोंगल, सांभर, इटली, चटनी आदि रखते हैं।

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फ्री में लोगों को खिलाते है खाना

उनके ढाबे की सबसे खास बात यह है कि वह किसी से खाने के पैसे नहीं मांगते। उन्होंने अपने स्टॉल के पास एक बक्सा रखा है जिस पर लिखा है कि आप अपनी इच्छा के अनुसार पैसे दे…..चलिए इंसानियत की सेवा करें। इस रास्ते से गुजरने वाले छात्र (Student) एवं ऑफिस जाने वाले लोग भी इस स्टॉल पर नाश्ता करने आते हैं। शेखर अपनी मां की मदद से 5 बजे सुबह में उठकर खाना बनाते हैं और 7:30 बजे हाईवे पर इनका स्टॉल लग जाता है। जिनके पास पैसे नहीं होते हैं उन्हें भी शेखर अपने स्टॉल पर खाना खिलाते हैं।

लोग करते है शेखर की तारीफ़

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार उनके स्टॉल का रोजाना का खर्चा 1 हज़ार रुपए से अधिक है लेकिन कमाई 500 रुपए से भी कम है लेकिन उन्होंने इंसानियत की सेवा के लिए यह स्टॉल लगाया है ताकि कोई भी व्यक्ति पैसे के अभाव मे भूखा न रहे। अपने इस स्टॉल को चलाने के लिए शेखर शाम बिजली सेवा केंद्र में काम करते हैं और आज भी भूखे लोगों के लिए खाना बना रहे हैं। इस प्रकार के कार्यों से उन्हें काफी खुशी मिलती है। उनके इस दरियादिली को लेकर लोग उनकी काफी तारीफ करते हैं।

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Medha Pragati
Medha Pragati
मेधा बिहार की रहने वाली हैं। वो अपनी लेखनी के दम पर समाज में सकारात्मकता का माहौल बनाना चाहती हैं। उनके द्वारा लिखे गए पोस्ट हमारे अंदर नई ऊर्जा का संचार करती है।

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