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Wednesday, March 22, 2023

‘ये है हमारा हिन्दुस्तान’: एक मुस्लिम दोस्त ने अपने हिन्दू दोस्त की बचा ली जान, दे दी अपनी किडनी

धर्म को लेकर अक्सर हमारे देश में दंगे-फ़साद होते रहते है। हिन्दू-मुस्लिम अपने-अपने धर्म को लेकर अक्सर एक-दूसरे का विरोध करते रहते है। लेकिन इंसानियत किसी मज़हब या धर्म को नहीं मानता और यह बात आज दो दोस्तों की दोस्ती ने साबित कर दी है। आज हम आपको दोस्ती की मिशाल कायम करने वाले दो दोस्त हसलू मोहम्मद (Haslu Muhammad) और अचिंत्य (Achintya) के बारे में बताएंगे। इनकी दोस्ती ने साबित कर दिया है कि दोस्ती या इंसानियत किसी धर्म या मज़हब को नहीं मानता।

6 साल पहले हुई थी दोनों की मुलाकात

पश्चिम बंगाल (West Bangal) के उत्तरी दिनाजपुर (North Dinajpur) जिले के रहने वाले हसलू मोहम्मद ने अपने हिंदू दोस्त की जान बचाने के लिए अपनी एक किडनी देने का फैसला किया। हसलू 6 साल पहले एक छोटी सी फाइनेंस कंपनी (Finance Company) में एजेंट के रूप में काम करते थे। इस नौकरी के दौरान ही उनकी दोस्ती एक हिंदू धर्म के व्यक्ति अचिंत्य से हुई। दोस्ती के 2 वर्ष बाद ही हसलू ने नौकरी छोड़ अपना बिजनेस शुरू कर लिया लेकिन उनकी दोस्ती बरकरार रही।

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इंसानियत को हमेशा धर्म से ऊपर रखते है हसलू

कुछ समय बाद हसलू को पता चला कि उनके दोस्त अचिंत्य की किडनी खराब हो गई है और उन्हें मदद की सख्त जरूरत है। तब हसलू ने अपनी एक किडनी अपने दोस्त को देने का फैसला किया, जिससे उनके दोस्त को नया जीवन मिले। हसलू का कहना है कि इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं होता, मैं एक किडनी के सहारे पूरा जीवन जी सकता हूं और अपनी एक किडनी अपने दोस्त को देकर उसे जीवनदान देना चाहता हूं।

दोस्त की जान बचाने के लिए अपनी एक किडनी देने का फैसला किया

हसलू ने राज्य के स्वास्थ्य विभाग में आवेदन देकर किडनी डोनेट करने की मंजूरी मांगी। इस बात पर स्वास्थ्य विभाग ने स्थानिक पुलिस को जांच का आदेश दिया जिससे यह साबित हो सके कि हसलू अपने दोस्त की जान बचाने के लिए किडनी दे रहे हैं या पैसों के लिए। इस जांच में पता चला है कि पैसों की कोई बात नहीं है वह अपने दोस्त की जान बचाना चाहते हैं और जल्द ही पुलिस से संबंधित रिपोर्ट स्वास्थ्य विभाग को सौंप देगी।

कभी नहीं चुका पाएंगे अपने दोस्त का एहसान

अपने दोस्त के इस फैसले पर अचिंत्य का कहना है कि अगर हसलू ने मेरी मदद नहीं की होती तो मेरा पूरा परिवार बिखर जाता। मेरा पूरा परिवार उनका यह एहसान कभी नहीं चुका पाएगा। हसलू की बेगम भी अपने पति द्वारा लिए गए इस फैसले का सम्मान करती हैं। हसलू ने दोस्ती की मिसाल कायम कर दी है।

Medha Pragati
Medha Pragati
मेधा बिहार की रहने वाली हैं। वो अपनी लेखनी के दम पर समाज में सकारात्मकता का माहौल बनाना चाहती हैं। उनके द्वारा लिखे गए पोस्ट हमारे अंदर नई ऊर्जा का संचार करती है।

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