गरीबी में जीवन जीने वाले व्यक्तियों को न तो अच्छी शिक्षा की प्राप्ति होती है, न ही उन्हें अच्छी सेहत मिलती है। भारत में गरीबी देखना बहुत आम सा हो गया है, क्योंकि ज्यादातर लोग अपने जीवन की मुलभुत आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पाते हैं। गरीब परिवार के बच्चे उच्च शिक्षा तो छोडिये सामान्य शिक्षा भी ग्रहण नहीं कर पाते हैं।
पर आज हम बात करेंगे एक ऐसे इंसान की, जिसके जिंदगी में गरीबी एक बाधक के रूप में आई पर वो इससे बेचैन नही हुए। अपने लक्ष्य पर गतिशील रहे। उनकी माँ ने उन्हें मजदूरी कर के पढ़ाया और उस इंसान ने IAS बन कर अपनी माँ का मान और सम्मान बढ़ाया।

कौन है डॉ.राजेन्द्र भरुद?
डॉ. राजेंद्र भरुद का जन्म 7 जनवरी, 1988 को सकरी तालुका के गांव समोड़े में हुआ था। ये आदिवासी भील समुदाय के अंतर्गत आते हैं। ये 3 भाई-बहन हैं। इनके पिता एक किसान थे। जब वो अपने माँ के गर्भ में थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया। परिवार टूट सा गया। सारी जिम्मेदारी उनकी माँ और उनकी दादी पर आ गई। इसके बाद उनकी माँ ने घर को संभालने का काम किया। उन्हें अपने गर्भ में धारण किए हुए ही वो देशी शराब बेचा करतीं थी।

बहुत मुश्किलों से गुजरा परिवार।
एक दिन में उनके परिवार को औसतन 100 रुपये की आमदनी होती थी। राजेन्द्र की माँ ने मजदूरी भी किया। पिता के मृत्यु के बाद तो परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय हो गई थी कि उनके स्वर्गवासी पिता की फोटो खींचने के लिये भी पैसे नहीं थे। उनका पूरा परिवार गन्ने के पत्ते से बनी हुईं झोपड़ी में रहता था और उसी झोपड़ी में उनका गुजर बसर होता था। उस 100 रुपये के आमदनी से ही घर के सारे काम होते थे।
बचपन से ही होशियार थे राजेन्द्र।
राजेन्द्र बचपन से ही बहुत होशियार थे। राजेंद्र और उनकी बहन ने एक साथ गांव के ही जिला परिषद स्कूल से पढाई किया जबकी उनके एक भाई ने आदिवासी स्कूल से शिक्षा ग्रहण किया। राजेंद्र की पढ़ाई के लिये उनकी मां ने शराब के कारोबार को चलने दिया और गांव से 150km दुरी पर स्थित नवोदय विद्यालय में राजेंद्र का दाखिला करवा दिया।नवोदय स्कूल में नामांकन होने से राजेंद्र की पढ़ाई में पहले की अपेक्षा अधिक सुधार होने लगा। 10वीं की बोर्ड परीक्षा में राजेंद्र सभी विषयों में अव्वल नंबर से पास हुए। इसके 2 वर्ष बाद 12वीं की परीक्षा में भी उन्होनें अपने क्लास में टॉप किया। टॉप करने के परिणामस्वरुप उनको मेरिट स्कॉलरशिप से सम्मानित किया गया। इसके बाद उन्हें मुंबई के सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिल गया।

सिविल सर्वेंट बनने का ख़्याल से UPSC की तैयारी में जुटे।
राजेन्द्र ने अपने लक्ष्य को सदा याद रखा। वह लोगों को शिक्षित करना चाहते थे। वह चाहते थे कि वह एक ऐसे पद पर जाए जहां वे लोगो को जागरूक कर सके। इसलिए उन्होंने UPSC की तैयारी के लिए डेली रूटीन बनाया। कड़ी मेहनत की।डॉक्टर बनने के ख्याल से उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई के अन्तिम साल MBBS की परीक्षा के साथ UPSC की परीक्षा भी दी। राजेंद्र को पहली बार में ही UPSC परीक्षा में सफलता प्राप्त हुआ।
गांव के लोगों को नही थी जानकारी।
उनके गांव के लोगों को यह नहीं पता था कि UPSC क्या होती है। इसी बात से पता लगाया जा सकता है कि उनके गांव के लोग पढ़े-लिखे नही थे। उनकी माँ भी पहले उन्हें एक डॉक्टर समझती थी। जब राजेन्द्र ने अपनी माँ को समझाया तब उनकी माँ भी यह जानकर अत्यंत खुश हुईं।

दूसरी बार में IAS का पद मिला।
वर्ष 2012 में वह फरीदाबाद में IRS अधिकारी के पद पर थे तब उन्होंने दूसरी बार UPSC की परीक्षा दी। इस बार वह कलेक्टर के रूप में चयनित किये गयें। 2 साल तक मसूरी में ट्रेनिंग के बाद वर्ष 2015 में वह नांदेड़ जिले में असिस्टेंट कलेक्टर और प्रोजेक्ट ऑफिसर के पद पर कार्यरत थे। 2017 में वह सोलापुर में चीफ एक्सक्युटिव ऑफिसर के रूप में कार्यरत थे। अंततः 2018 में वह महाराष्ट्र के नंदुरबार के DM के रूप में कार्यभार सम्भालने लगें। वर्तमान में वह अपनी मां, पत्नी और बच्चो के साथ सरकारी क्वार्टर में रहतें हैं।
शिक्षा पर किया काम।
उन्होंने गरीबी देखी थी। उन्हें यह पता था कि शिक्षा के बिना गरीबी को दूर नहीं किया जा सकता है। उन्होंने आदिवासी और ग्रामीण लोगों के विकास के लिये कई नई पहल किए। स्वच्छ भारत अभियान में भाग लेते हुये अपने गांव की खुबसूरती बढ़ाने के लिये वहां पौधें भी लगवाएं। खुलें नालों और जल स्तर में बढ़ोतरी करने के उपलक्ष्य में पूर्व पेयजल मंत्री और स्वच्छता मंत्री उमा भारती ने डॉ. राजेंद्र भरुद को सम्मानित भी किया है। क’रोना में भी उन्होंने बहुत अच्छा काम किया है।
राजेन्द्र की कहानी से हम यही सीखते हैं कि अगर संकल्प कभी टूटने वाला न हो तो गरीबी कभी बाधक नही बनती। अगर पूरे परिश्रम से किसी कार्य को किया जाए तो उसमें सफलता जरूर मिलती है ।