हर माँ अपने बच्चे का पालन-पोषण बहुत अच्छे से करना चाहती है। माँ बनना बड़ा ही सुखद एहसास होता है। अपने बच्चे के उज्ज्वल भविष्य के लिए एक माँ रात-दिन काम भी करती है।
आज हम आपको लंदन की एक ऐसी महिला के बारे में बताएंगे जिन्होंने अपनी छोटी बच्ची के लिए अपनी कंपनी से सप्ताह में 4 दिन शाम 6 बजे के बजाय 5 बजे तक काम करने की इज़ाजत मांगी थी। पर कंपनी ने उनकी इस बात को खारिज कर दिया। जिसके बदले अब कंपनी के द्वारा महिला को उसके सालाना पैकेज से भी ज्यादा का मुआवज़ा चुकाना पड़ा है। आइये जानते है इस घटना के बारे में।
लंदन की महिला ने मांगी छुट्टी
लंदन स्थित एक रियेल एस्टेट कंपनी में ऐलिस थॉम्पसन(Alice Thompson) सेल्स मैनेजर थीं। उनकी एक छोटी बच्ची है। ऐसे में उन्होंने अपनी कंपनी से सप्ताह में 4 दिन शाम 6 बजे के बजाय 5 बजे तक काम करने की इज़ाजत मांगी थी। पर कंपनी ने उनकी इस बात को खारिज कर दिया था। उन्होंने अपने बॉस को अपने इस समस्या के बारे में बतलाया पर उनके बॉस के द्वारा उन्हें छुट्टी देने से साफ मना कर दिया गया।

थॉम्पसन ने नौकरी छोड़ी
दरअसल, ऐलिस थॉम्पसन (Alice Thompson) ने अपने बॉस से कहा था कि उनकी एक छोटी बच्ची है, जिसे वे चाइल्डकेयर में छोड़ कर आती हैं। वो चाइल्डकेयर चूंकि शाम 5 बजे बंद हो जाता है, ऐसे में उन्हें हफ्ते में 4 दिन एक घंटे पहले छुट्टी दे दी जाए। थॉम्पसन की बात को खारिज़ करते हुए बॉस ने साफ कहा कि एक घंटे पहले काम खत्म करने को पार्ट टाइम जॉब माना जाएगा और उन्हें इस तरह की छुट्टी नहीं दी जाएगी। ऐसे में थॉम्पसन ने अपनी नौकरी को छोड़ना सही समझा।
महिला ने कंपनी पर आरोप लगाया
Alice Thompson sales manager लंदन की इस महिला ने कंपनी पर लैंगिक भेदभाव का आरोप लगाया। उनका कहना है कि जैसा मेरे साथ हुआ है भविष्य में उनकी बच्ची के साथ भी ऐसा हो सकता है। इसके लिए उन्होंने एम्प्लॉयमेंट ट्रिब्यूनल Employment tribunal Alice t में शिकायत की। एम्प्लॉयमेंट ट्रिब्यूनल ने उनकी सारी बातों को सुना और अंततः फैसला ऐलिस थॉम्पसन के पक्ष में गया।

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कंपनी को देना पड़ा मुआवजा
Alice Thompson wins-एम्प्लॉयमेंट ट्रिब्यूनल ने अपने फैसले में कहा कि नर्सरी आमतौर पर 5 बजे बंद हो जाती है, ऐसे में एक मां को 6 बजे तक काम करने के लिए मजबूर करना पूरी तरह से गलत है। फैसले में एम्प्लॉयमेंट ट्रिब्यूनल ने मुआवज़े के तौर पर 181,000 पाउंड यानि करीब 2 करोड़ रुपये देने का आदेश दिया। अंततः महिला की जीत हूई। आश्चर्य की बात तो यह है कि जितनी महिला की सालाना पैकेज नही थी उससे भी ज्यादा का मुआवज़ा कंपनी ने महिला को दिया।