इस शख़्स ने कोलकत्ता में गली-गली घूमते हुए साड़ियाँ बेची, फिर एक तरकीब से कमा लिए 50 करोड़ रुपए
किसी ने सच ही कहा है। परिश्रम वह चाबी है, जो किस्मत का दरवाजा खोल देती है
के साथ अपने जीवन में सही दिशा में योजना के साथ मेहनत करने वाले लोग अपनी जिंदगी में अवश्य कामयाब होते हैं। क्योंकि इंसान का भाग्य भले ही उसका साथ छोड़ दें, लेकिन उसके द्वारा किया गया मेहनत ही उसे सफल बनाता है। भाग्य भले ही आप के साथ हो पर, बिना परिश्रम के किसी को भी कामयाबी नहीं मिलता।

यदि आप कोई बड़ा व्यापार ही शुरू करना चाहे तो आपको बड़ी सफलता मिलेगी। यह जरूरी नहीं, शुरुआत एक छोटे काम से भी कर सकते हैं। और वही छोटा सा काम आप की मेहनत और भरोसे के साथ फल फूल कर बड़ा कारोबार बनेगा।
आपसे कहा जाए कि ₹0 से शुरुआत करके भी आप करोड़पति बन सकते हैं। तो शायद आप हमारी बातों पर विश्वास ना करें, लेकिन जिस शख्स की कहानी आपको हम बता रहे हैं। उसे पढ़ने के बाद आप समझ जाएंगे कि, सही तरीके से मेहनत करके ऊंचा से ऊंचा मुकाम हासिल किया जा सकता।

हम बात कर रहे हैं। बिरेन कुमार बसाक की जो पहले गलियों में घूम घूम कर घर घर जाकर साड़ियां बेचा करते थे। और अब ₹50 करोड़ की कंपनी के मालिक हैं।चलिए जानते हैं इनकी पूरी कहानी।
बांग्लादेश के तंगेल जिले में 16 मई 1951 को बिरेन कुमार बसाक का जन्म हुआ था। वह चार भाई और दो बहने हैं जिनमें वह सबसे छोटे हैं। वीरेन एक बुनकर परिवार से संबंध रखते हैं उनके पिताजी बैंको बिहारी बसाक भी एक बुनकर है। पर उन्हें कविताएं लिखने का भी शौक था।

लगभग चार दशक पहले की बात है।वीरेन कुमार जब कोलकाता के सड़कों पर घूम घूम कर साड़ियां बेचा करते थे। वो आज भी उस कठिन समय को भुला नहीं पाते।वह अपने कंधों के ऊपर भारी साड़ी का बंडल उठाकर घर-घर जाकर लोगों के दरवाजे पर दस्तक देते, और अपना ग्राहक ढूंढते थे।
लेकिन 66 वर्षीय वीरेन कुमार सारे उद्योग के एक बड़े बिजनेसमैन है। देश के कोने कोने से ग्राहक उनके पास जुड़े हुए हैं, तथा वह अब थोक व्यापार भी करते हैं। आज बिरेन का सालाना टर्नओवर 50 करोड़ से भी ज्यादा है।

वह अपनी बुद्धि आत्मविश्वास मेहनत के बल पर वर्ष 1987 में 8 व्यक्तियों के साथ मिलकर अपनी दुकान खोला। आज उनका कारोबार इतना बड़ा हो गया है। कि देश में उनके यहां से करीब 16000 हाथ से बुनी हुई साड़ियां हर महीने बेची जाती है। उनके साथ अब 24 कर्मचारी तथा उनके कंपनी में 5000 बुनकर काम कर रहे हैं।
अमिता कस्टमर्स है, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पूर्व क्रिकेटर सौरव गांगुली प्रख्यात शास्त्रीय संगीतकार उस्ताद अमजद अली खान अभिनेत्री मौसमी चटर्जी इत्यादि के नाम भी है।इसके बावजूद भी वीरेन के व्यवहार से कभी अहंकार की झलक नहीं दिखता। बल्कि आज भी उनका व्यवहार नम्रता और सादगी भरा है। शायद यही वजह है कि उनके तरफ ग्राहक खींचे चले आते हैं।

बिरेन का कहना है, कि उनके पिताजी कविता का एकल प्रदर्शन किया करते थे। जिसके लिए उनको सिर्फ ₹10 मिलता था। जिस वजह से वो परिवार की मूलभूत जरूरतों को पूरा नहीं कर पाते थे। हालात यह हो गया की परिवार के लिए दो वक्त की भोजन भी जुटा पाना मुश्किल हो गया।वह तो किस्मत अच्छा था, कि 1 एकड़ भूमि होने से उस पर जो फसल उगता उस से भोजन मिल जाता था।
बिरेन ने शिवनाथ हाई स्कूल से छठी कक्षा तक पढ़ाई कीया।शिक्षा ग्रहण करने के साथ ही बिरेन वहां के पुजारी से भजन गाना भी सीख लिया था। उनकी ईश्वर के प्रति श्रद्धा से तमाम कठिनाइयों के बावजूद उनका मन धैर्य और शांति से पूर्ण रहता।
वर्ष 1962 में उनके क्षेत्र में सांप्रदायिक तनाव जन्म लिया। जिस कारण उनका परिवार तांगेल से फुलिया आ गया। क्योंकि वहां पर उनके कुछ रिश्तेदार भी रहा करते थे।
हालांकि यहां आकर उनके परिवार को काफी दिक्कतें भी झेंलनी परी। परिवार के हालात खराब होने से बिरेन को अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ना पड़ा।
पढ़ाई छोड़ कर वह कमाने के लिए निकल गए।फुलिया में बुनकरों का केंद्र था। जिससे वहां पर उन्हें सारी की बुनाई का काम मिला, जिसके लिए वीरेन को प्रतिदिन २.५ ₹ मिलता। परिवार का खर्चा निकालने के लिए 8 सालों तक उन्होंने इस कारखाने में काम किया।
फिर 1970 में बिरेन ने स्वयं का व्यवसाय करने का निश्चय किया। जिसके लिए वीरेन को पैसे की आवश्यकता था। फिर बिरेन ने अपना घर गिरवी रख कर ₹10000 ऋण लिया। यह घर उनके एक बड़े भाई ने फुलिया में खरीदा था। फिर बड़े भाई धीरेन कुमार बसाक को भी व्यापार के लिए अपने साथ किया। फीर कोलकाता से साड़ियों के बंडल खरीदें और बेचने के लिए निकल पड़े।
उनका कहना है कि, हम स्थानीय बुनकरों से ही साड़ियां खरीदा करते थे। फिर उसे बेचने के लिए ले जाते थे। रोजाना सुबह 5:00 बजे स्थानीय ट्रेन पकड़ के, लगभग 80 से 90 किलो का माल कंधों पर उठाकर के घर-घर साड़ियां बेचने के लिए घूमा करते थे।
यद्यपि हमारे साड़ियां की क्वालिटी अच्छा और कम मूल्य में बेचने की वजह से हमें काफी ग्राहक मिल जाता था।धीरे-धीरे उनका व्यापार तरक्की करने लगा, और ग्राहक बढ़ने से उन्हें साड़ियों के ज्यादा आर्डर भी मिलने लगे। जिससे उनका मुनाफा बढ़ने लगा। वर्ष 1978 तक दोनों भाइयों की कमाई को मिलाकर उनकी आमदनी हर महीने करीब ₹50 हजार तक हो गया। फिर वर्ष 1981 में दोनों भाइयों ने मिलकर 13100 वर्ग फुट की जमीन खरीदी,जिसके लिए उन्होंने करीब ₹5 लाख खर्च किया।
फिर 1985 में दोनों भाइयों ने अपनी दुकान खोली और उसे धीरेन और बिरेन बसाक एंड कंपनी का नाम दिया। उन्होंने यहां से ही साड़ियां बेचने लगे। अगले 1 वर्ष में उन्होंने इस दुकान से व्यापार करके करीब ₹1 करोड़ का लाभ किया।
फिर दोनों भाइयों ने बंटवारा किया। बंटवारा के बाद वर्ष 1987 में बिरेन फुलिया वापस आ गए। उस समय बिरेन के पास करीब 70 से 80 लाख रुपए था। बिरेन को गांव के वातावरण और जीवन चर्या पसंद थी। इसीलिए वह गांव वापस आ गया।
कोलकाता तो वह सिर्फ बिजनेस करने की वजह से गया, वरना उन्हें गांव में ही रहना पसंद था। बिरेन का मानना है कि जो लोग धार्मिक मानसिकता वाले हैं, तथा धर्म को मानते हैं। उन्हें रूपया पैसों का लालच नहीं होता।
गांव आने के बाद बिरेन ने थोक व्यापार करने का निश्चय किया।इस व्यापार के लिए उनके रचनात्मक सोच से उन्हें काफी मदद मिला। क्योंकि साड़ियों की नई-नई डिजाइन करना उनको अच्छा लगता था।
1987 में बिरेन 8कर्मचारियों के साथ मिलकर अपने घर में ही एक नई दुकान शुरू किया।जिसका नाम बिरेन बसाक एंड कंपनी रखा।शुरू में उनके साथ लगभग 800 बुनकर काम करता था। बिरेन काफी सालों से साड़ि व्यापारी में होने के कारण ऊनका अच्छा संबंध स्थापित हो गया था।
बिरेन व्यापार शुरू करने से पहले ही, साड़ि विक्रेताओं के साथ संपर्क कर उन्हें अपने इस नए कारोबार की सूचना दे दी थी। जिससे उसे साड़ी डीलर्स का ऑर्डर भी मिलने लगा। यहां बिरेन का काम बढ़ता गया और कोलकाता में उसके भाई के दुकान पर बिक्री कम होने लगी।
इसका कारण यह था,कि उनके भाई के अपेक्षा बिरेन की सोच अधिक रचनात्मक था। इसीलिए लोग उसके द्वारा बनाए गए डिजाइन वाली साड़ियां खरीदना ज्यादा पसंद करते थे। जिससे बिरेन का व्यवसाय बुलंदियां छूने लगा। साल 2016 से 17 में उसके कंपनी का सालाना टर्नओवर ₹50 करोड़ हो गया।
जिस कारण बिरेन को साल 2013 में केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय द्वारा संत कबीर अवार्ड और ऐसे कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
बिरेन अपनी उपलब्धि का श्रेय मेहनत के साथ ईश्वर में श्रद्धा और विश्वास रखने को भी दिया है। क्योंकि आध्यात्मिक से ही उन्हें शक्ति मिलती है।
वर्ष 1977 में बिरेन विवाह के अटूट बंधन में बंधे।उनकी अर्धांगिनी का नाम बानी है। जिन्होंने हर कदम पर उनका साथ दिया,उनका एक पुत्र भी है।
बिरेन के कौशल परिश्रम तथा भगवान के प्रति विश्वास रखने से उन्हें जो कामयाबी हासिल हुई, उसके लिए हम उनकी तहे दिल से सराहना करते हैं।
हमें आशा करते हैं कि आपको इस मेहनती व्यक्ति की यह कहानी पसंद आई होगी हमारा काम था अब तक यह कहानी पहुंचाना अब आपका का काम है इसे शेयर करके और भी लोगों तक पहुंचाना था कि और भी लोग इससे मोटिवेट हो सके.