जिसकी रक्षा खुद भगवान कर रहे हों उसे कोई नहीं मा’र सकता। इस कहावत को सच कर दिखाया है राजस्थान की फेमस कालबेलिया डांसर गुलाबो सपेरा ने। जिन्होंने अपने डांस के जरिए ना केवल देश में बल्कि विदेशों में भी पहचान बनाई हैं। बहुत कम लोग ही जानते हैं कि गुलाबो सपेरा ने मौ’त को मात देकर पूरी दुनिया में अपने नाम का परचम लहराया है। तीन भाई और तीन बहनों के बाद परिवार में जब गुलाबों का जन्म हुआ तो समाज के लोगों ने उन्हें जिंदा द’फना दिया था। तब उनकी मां ने द’फनाई गई बेटी को बाहर निकाला और वही बेटी आज गुलाबों सपेरा के नाम से देश-दुनिया में उस समाज की गर्वित पहचान बनी चुकी हैं। मौ’त को हराने वाली गुलाबों सपेरा प्रसिद्ध कालबेलिया नृत्य कलाकार हैं। उनकी मेहनत और जज्बे को देख सरकार ने उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया है। गुलाबों सपेरा के लिए रूढ़िवादी समाज की सोच बदलना और पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाने का सफर तय करना इतना आसान नहीं था। आइए जानते हैं उनके जीवन का संघर्ष से सफलता तक का प्रेरणादायी सफर।
समाज को बेटियां नही थी पसंद
एक समय था जब राजस्थान के कई हिस्सों में बेटियों के पैदा होने को अभिशाप माना जाता था। राजस्थान के अजमेर के सपेरा समुदाय में जन्मी गुलाबो सपेरा के जन्म के समय राजस्थान के एक हिस्से में सदियों से बेटी होने पर उन्हें मा’र दिया जाता था। तीन भाई और तीन बहनों के बाद परिवार में जब गुलाबों का जन्म हुआ तो समाज के लोगों ने उन्हें जिं’दा द’फना दिया। उनके पिता सापों का खेल दिखाने के साथ, पुजारी का काम भी करते थे। उनकी, मां को भी मालूम नहीं था। जब इस बारे में उनकी मां और मौसी को पता चला तो उन्होंने कहा कि जहां भी मेरी बेटी को द’फनाया है। मैं देखना चाहती हूं कि वह जिंदा है या म’र गई। उनकी मां और मौसी ने द’फनाई गई बेटी को बाहर निकाला। बेटी की धड़कन चल रही थी, वह उसे घर ले आई।

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सांपो को नाचता देख डांस करने की मिली प्रेरणा
गुलाबो सपेरा का बचपन बहुत गरीबी में गुजरा। उनके पिता सांपो को नचाने का काम करते थे। उनके पिता की बीन पर सांप नाचते थे। सांपों को नाचते देख गुलाबों ने भी थिरकना शुरू कर दिया। सांपों का झूठा दूध पीकर वह बड़ी हुईं। जब वह सात साल की थी तब समाज के लोगों से छिपकर वह डांस करने जाती थी। हर कोई कम उम्र में ही उनकी कला को देख मंत्रमुग्ध हो जाया करता था।

समाज के तानों की भी नहीं की परवाह
गुलाबो सपेरा ने बड़े होते ही राजस्थान के लोकनृत्य कालबेलिया डांस को करना शुरु कर दिया था। उन्होंने जब इस नृत्य की शुरुआत की तो लोगों को इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। गुलाबो के नृत्य करने पर भी समाज के लोग उन्हें ताने मारते थे। उन्हें धमकियां दी जाती थी। लेकिन उनके पिता ने उनका साथ कभी नहीं छोड़ा। गुलाबों ने अजमेर छोड़ दिया और वह भाई के साथ जयपुर आ गई। यहां उन्होंने कई प्रस्तुतियां दी। लगभग 10 साल की आयु में जब गुलाबो पुष्कर मेला में डांस कर रही थी, तब वहां पर राजस्थान सरकार के अधिकारी तृप्ति पांडेय और हिम्मत सिंह ने उनके डांस को देखा और उनके हुनर को पहचाना। जिसके बाद उन्हें मंच पर नृत्य करने के लिए आमंत्रित किया गया। उन्होंने दिल्ली में आयोजित एक प्रोग्राम में पहली बार मंच पर अपनी कला का प्रदर्शन किया। उनकी मेहनत धीरे-धीरे रंग लाने लगी। लोग उनके कार्यक्रम को देखने लगे। सरकार ने भी उनकी मदद की। जिसका नतीजा यह है कि आज गुलाबो की पहचान देश-विदेश में है।

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कालबेलिया समुदाय के ऩृत्य को दिलाई दुनिया भर में पहचान
राजस्थान के एक समुदाय कालबेलिया के नाम पर कालबेलिया नृत्य का नाम पड़ा। गुलाबो सपेरा इसी नृत्य को करती थी। कालबेलिया डांस सिर्फ महिलाएं करती हैं और इसमें वह सांप की तरह लहराती और बलखाती हैं। गुलाबो का असली नाम धनवंतरी था। वह सबसे छोटी संतान थी। उनके गालों का रंग गुलाबी था, जिसे देख उनके पिता उन्हें गुलाबो कहने लगे।

अमेरिका जाने के बाद मिली हुनर को पहचान
गुलाबो सपेरा ने समाज की बातों की परवाह किए बिना नृत्य को अपना हुनर बनाया। इसी बीच उन्हें अमेरिका जाने का मौका मिला। गुलाबो की प्रसिद्धि धीरे-धीरे विदेशों में भी बढ़ने लगी। 1986 में फेस्टिवल ऑफ इंडिया नाम के एक कार्यक्रम का आयोजन वाशिंगटन में किया गया था। लेकिन हर सफलता का मूल्य भी चुकाना पड़ता है। इसी शो के समय उनके पिता का निधन हो गया। जिसे सुनकर गुलाबो टूट गई। लेकिन उन्होंने खुद को संभाला और अपनी प्रस्तुति से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। इसके बाद से कालबेलिया नृत्य पूरे विश्व में विख्यात हुआ। अमेरिका जाने के बाद से समाज के लोगों ने उन्हें अपनाना शुरू कर दिया। जिन लोगों ने उन्हें दफनाया था आज वही लोग उनसे अपनी बेटियों को भी नृत्य सिखाने का आग्रह करते हैं।

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पद्मश्री सहित कई बड़े सम्मानों से हो चुकी हैं सम्मानित
अपने हुनर से अपनी पहचान बनाने वाली गुलाबों सपेरा को बिग बॉस में भागीदार बनने का भी मौका मिला था। गुलाबो सपेरा ने गुलामी और बंटवारा जैसी हिट फिल्मों में भी अपने नृत्य का लोहा मनवाया। जिसके बाद लोग कालबेलिया नृत्य के मुरीद हो गए थे। यही नहीं उन्हें भारत सरकार ने देश के सर्वोच्च सम्मान में से एक पद्मश्री से भी सम्मानित किया था। इसके साथ ही जापान में उन्हें यूनेस्को पुरस्कार से भी नवाज़ा गया था। गुलाबो ने ना केवल देश में, बल्कि पूरे विश्व में अपनी कला के जरिए भारत का नाम रौशन किया है।

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उन्होंने अपनी मेहनत के दम पर अपनी सफलता की कहानी लिखी हैं। गुलाबो सपेरा जैसे लोगों की समाज को आज बहुत जरूरत है। गुलाबो की कहानी सभी के लिए एक प्रेरणास्त्रोत है।