किसी इंसान में कुछ करने की चाह हो तो वह कोई भी मुकाम हासिल कर सकता है। सफलता पाने के लिए हमे जी-जान लगा कर मेहनत करनी पड़ती है, हर परिस्थिति का सामना डट कर करना होता है, बुरे वक्त में हार नहीं माननी होती है। आज हम जिस IAS अफसर के बारे में जानेंगे उनका जीवन भी बहुत गरीबी में बीता है।
मिलिए IAS मनीराम शर्मा से
IAS मनीराम शर्मा राजस्थान के अलवर के एक छोटे से गांव बंदीगढ़ के रहने वाले हैं। उनके पिता मजदूरी करके अपने परिवार का पालन पोषण करते थे। उनकी माँ दृष्टिहीन थी। मनीराम को बहरेपन की शिकायत थी। मनीराम का परिवार गरीबी में जूझ रहा था। गांव में उन्नति नहीं होने के कारण गांव के लोगों को बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल रही थी। गांव में कोई स्कूल नहीं होने के कारण मनीराम गांव से 5 किलोमीटर दूर स्कूल में पढ़ाई करने जाते थे। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण उन्हें स्कूल पैदल ही जाना पड़ता था।

बीडीओ ने चपरासी बनाने से मना कर दिया
मनीराम जी ने अपनी मेहनत के बदौलत 10वीं और 12वीं की परीक्षा में टॉप किया एवं राज्य स्तर पर उन्होंने 10वीं में 5वां स्थान और 12वीं में 7वां स्थान प्राप्त किया। 12वीं में टॉप करने पर मनीराम जी के एक दोस्त ने घर आ कर ये ख़बर सुनाई। ये खबर सुनकर मनीराम जी और उनके पिताजी बहुत खुश हुए। इसके बाद मनीराम जी के पिताजी बीडीओ के पास अपने बेटे के लिए चपरासी का नौकरी मांगने गए। लेकिन बीडीओ ने इससे इनकार कर दिया और बोला – ‘ये बहरा है, इसे घंटी की आवाज सुनाई नही देगी, ये मेरे किसी काम का नहीं।’ बीडीओ की ये बात सुनकर मनीराम जी के पिताजी के आखों में आँसू आ गए। लेकिन मनीराम जी ने अपने पिता को समझाया और कहा कि वे उनपर भरोसा रखें। एक दिन वो बीडीओ से भी बड़े अधिकारी बनेंगे।

कठिन परिश्रम से क्लर्क से लेक्चरर तक बनें
मनीराम जी ने आगे की पढ़ाई अलवर के एक डिग्री कॉलेज से पूरा किया। इस कॉलेज में पढ़ने की सलाह उनके पिता को उनके स्कूल के प्रिंसिपल ने दी थी। मनीराम जी को यहां लिपिक वर्ग में पढ़ने का मौका मिला। इस कॉलेज से उन्होंने ग्रेजुएशन, पोस्टग्रेजुएशन और पीजी की पढ़ाई पूरी की। पीजी करने के दौरान ही उन्होंने यूपीएससी पास करके आईएएस अधिकारी बनने का निश्चय कर लिया। मनीराम जी पहली बार में राजस्थान पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा पास नही कर पाए लेकिन दूसरे प्रयास में उन्होंने अपनी मेहनत और लगन के बदौलत सफलता हासिल की। इसके बाद वो क्लर्क बन गए। मनीराम जी ने विश्वविधालय में भी टॉप किया और नेट की परीक्षा पास की। इस बार उन्हें लेक्चरर का पद मिला।

बहरेपन ने बहुत परेशान किया
मनीराम जी अपने कठिन परिश्रम और मेहनत के बदौलत अपने जिंदगी में सफलता हासिल करते रहें। वे पढ़ाई में अच्छे थे इसलिए हर परीक्षा में सफल होते जाते थे। लेकिन उन्हें अपने बहरेपन के कारण बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता था। लगातार 2005, 2006 और 2007 में यूपीएससी परीक्षा पास करने में बाद भी उनके बहरेपन के कारण आईएएस के पद के लिए चयनित नही किया जा रहा था। उन्हें आईएएस पद मिलने में 15 साल लग गए।
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कान का ऑपरेशन कराकर अपने सपने को पूरा किया
इसके बाद उन्होंने 2009 में यूपीएससी की परीक्षा पास किया और फिर अपने कान का ऑपरेशन करवाया। कान के ऑपरेशन में उन्हे 8 लाख रुपया लगा। यह ऑपरेशन सफलतापूर्वक हो गया। मनीराम जी को पता नहीं था कि ये रकम किसने इकठ्ठा किया लेकिन वो ये जरूर जानते हैं कि काफ़ी लोगों ने मिल कर यह रकम जुटाया है। मनीराम जी बहरेपन से छुटकारा पाने के बाद आईएएस पद पर नियुक्त हो गए। मनीराम जी कहते हैं कि अगर हम कुछ करने का ठान लें, और सही दिशा में मेहनत करें तो हम अपने लक्ष्य को ज़रूर प्राप्त करेंगे।