मनुष्य के लिए कुछ भी असंभव नहीं है, लेकिन दुख की बात है कि उसे स्वयं पर ही विश्वास नहीं होता कि उसके भीतर इतनी शक्तियां विद्यमान हैं। (Vikash Varma)
यदि मनुष्य अपनी मन की गहराइयों में जाए तो वह अपनी शक्तियों को पहचानकर और उनका इस्तेमाल करके असंभव कार्य को भी संभव कर सकता है। इस बात के उदाहरण हैं विकास वर्मा जिन्होंने 12वीं में फेल होने के बाद भी कभी हिम्मत नहीं हारी और बिना किसी बात की परवाह किए हुए उन्होंने कड़ी मेहनत की। उन्होंने मशरूम की खेती करके अपने लिए एक मार्ग प्रशस्त किया। यही नहीं आज उनके इस कार्य से उन्हें अच्छी कमाई हो रही है साथ ही वो हजारों लोगों को रोज़गार भी दे रहे हैं। आइए जानते हैं उनके सफलता के बारे में। (Vikash Varma)
सामान्य परिवार में हुआ जन्म (Vikash Varma)
हरियाणा के हिसा के सलेमगढ़ गांव के रहने वाले विकास वर्मा का जन्म एक सामान्य किसान परिवार में हुआ था। उनकी शुरूआत से ही पढ़ने-लिखने में रूचि कम थी। वह पढ़ने-लिखने की बजाय हमेशा हीं खेती के तरफ हीं ध्यान देते थे। उन्होंने साल 2016 में 12वीं की परीक्षा दी थी परंतु वह 12वीं की परीक्षा में असफल हो गए लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने कुछ अलग करने की ठानी।

नई खेती के बारे में सोचा (Vikash Varma)
विकास के पिता अपनी 5 एकड़ जमीन पर पारंपरिक फसलों की खेती करते थे। लेकिन विकास अपने पिता से अलग हटकर कुछ नई खेती करना चाहते थे क्योंकि परंपरागत फसलों के उगाने से केवल उनके घर का ही खर्च चलाना काफी मुश्किल होता था यही कारण था कि विकास खेती में कुछ ऐसा करना चाहते थे जिससे कमाई अधिक हो पाए।अन्य लोगों की तरह हार न मानकर विकास वर्मा ने भी मशरूम की खेती करने की ठानी। इसके लिए वो मशरूम की ट्रेनिंग हासिल करने के लिए अपने कई दोस्तों के साथ सोनीपत गए। उन्होंने काफी विचार-विमर्श करने के बाद मशरुम की खेती करने का मन बनाया।
शुरू की मशरुम की खेती (Vikash Varma)
मशरूम की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद उन्होंने 5 हजार की लागत लगाकर अपने घर पर मशरूम की खेती करने का निश्चय किया। 5 हजार की लागत लगाकर उन्होंने खेती करना तो शुरू कर दिया परंतु शुरुआत में काफी नुकसान उठाना पड़ा। विकास वह कंपोस्ट भी खुद से तैयार कर रहे थे। इसलिए उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। विकास ने मशरूम की खेती करने की जब शुरूआत की तो उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। खेती की शुरुआत में उनकी फसल नहीं हो पाई क्योंकि उन्होंने गर्मी के मौसम में मशरूम की खेती को शुरू की थी।

पिछली गलतियों से सबक (Vikash Varma)
उन्होंने दोबारा खेती करने का प्रयास किया और अपनी पिछली गलतियों से सीखते हुए उन्होंने अपने नुकसान को कम किया। जिसके बाद वो आसानी से मशरूम की खेती करने लगे।विकास ने शुरुआत में बटन मशरूम की खेती की थी परंतु बाद में उन्हें पता चला कि बटन मशरूम की सेल्फ लाइफ केवल 48 घंटे तक होती है अगर इन 48 घंटों में मशरूम नहीं बिके तो किसानों को भारी नुकसान हो जाता है । इसलिए उन्होंने मशरूम की दूसरी किस्म ऑयस्टर लमिल्की का उत्पादन करना शुरू किया।
खेती को मिली पहचान (Vikash Varma)
मशरूम की इतनी किस्मों का प्रयोग करने के बाद भी उन्हें बाजार में पहचान नहीं मिल रही थी। इसलिए उन्होंने ठान लिया कि वो प्रोसेसिंग करके मशरूम से प्रोडक्ट बना कर बाजार बेचने का प्रयास करेंगे। इस कारण विकास ने मसरूम से बिस्कुट, पापड़, अचार, बड़ियां जैसे उत्पादों को बनाना शुरू कर दिया था। धीरे-धीरे उनकी खेती को पहचान मिलने लगी। विकास ने धीरे-धीरे अपने उत्पादों का विस्तार देते हुए “वेदांत मशरूम” के नाम से एक एग्रो कंपनी की स्थापना की। जिसके माध्यम से उन्होंने कई हजार लोगों को रोज़गार दिया है। आज उनकी कंपनी प्रतिदिन 40 हजार से 50 हजार का मुनाफा कमा रही है। उनके पास मशरूम का उत्पादन करने के लिए 5 एकड़ के चार फार्म थे जिसमें वह प्रतिदिन 5 से 7 क्विंटल मशरूम का उत्पादन किया करते थे। वो पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं को भी ट्रेनिंग देकर रोज़गार उपलब्ध करा रहे हैं।

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आज विकास वर्मा उनलोगों के लिए प्रेरणा हैं जो पहले ही हार मान लेते हैं। बुलंद हौसलों के साथ अपने मंजिल को पाया जा सकता है यह विकास वर्मा ने साबित कर दिया है।