जब पढ़ाई की बात आती है तो परिवार का पूरा फोकस लड़कों पर ही होता है। ऐसे परिवार बहुत ही कम ही मिलेंगे जो लड़कियों की भी पढ़ाई का ध्यान लड़कों की तरह रखते हैं। इसलिए अधिकतर शहरों, राज्यों और देशों में लिटरेसी रेट लड़कों के मुकाबले लड़कियों का कम ही मिलेगा। जबकि किसी एक लड़के के पढ़ने से सिर्फ उसी को फायदा होता है। जबकि जब एक लड़की होती है तो पूरे परिवार को फायदा होता है। क्योंकि वो अपने बच्चों को पढ़ाती है। अपने पति के बिजनेस में हाथ बंटाती है। बूढ़े माता-पिता या सास-ससुर की मदद करती है। इसके बाद भी इनकी पढ़ाई के बारे में कम ही लोग सोचते हैं।
मेरठ की स्थिति भी इस मामले में खराब ही है
अगर बात मेरठ की करें तो 100 में 65 महिलाएं भी पढ़ी नहीं हैं। अब इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि आज भी हम इस एडवांस माहौल में लड़कियों की पढ़ाई के मामले में कितने पीछे हैं। पर आज एक लड़की की कहानी ऐसी है जिसे उसकी माँ ने पूरे परिवार से लड़कर उसे पढ़ाया और वह लड़की आई.ए.एस बन गईं है।

परिवार से लड़के बेटी को पढ़ाया
उनकी माँ खुद अनपढ़ है पर अपने बेटी को पढ़ाने के लिए पूरे समाज, परिवार के खिलाफ चली गई। और बेटी ने भी अपनी मां के इस बलिदान को बेकार नहीं जाने दिया और एक IAS बनकर अपनी माँ को सही साबित किया।
IAS अनुराधा पाल
यह कहानी है IAS अनुराधा पाल की जो कि हरिद्वार की हैं। उनका परिवार अत्यंत ही मध्यम वर्गीय है।उनके पिता दुध बेचकर परिवार को पालते है। उनकी माता एक गृहिणी हैं। प्रत्येक घर की तरह अनुराधा के परिवार वालों की भी यह सोच थी कि उसे थोड़ा पढ़ाकर उसकी शादी कर देंगे। पर यह उनकी माँ को मंजूर नही था। अनुराधा के पिता खुद कक्षा पाँच तक कि पढ़ाई किए है। पर उनकी माँ ने अनपढ़ होते हुए भी उन्हें पढ़ाई के लिए प्रेरित किया।
बचपन से ही पढ़ने में होशियार थीं अनुराधा
अनुराधा बचपन से ही पढ़ाई में कुशाग्र थी। 5वीं कक्षा पास करके उन्होंने जवाहर नवोदय के परीक्षा में सफलता हासिल की। उनकी 12वीं तक की पढ़ाई जवाहर नवोदय में ही हुई उनकी। उसके बाद अनुराधा के पास IIT रुड़की में दाखिला लेने के लिये पैसे नहीं थे लेकिन उनकी मां ने लोन लेकर अनुराधा का आईआईटी (IIT) में नामांकन करवाया।

पहली बार में ही निकाला UPSC
2012 में अनुराधा ने पहली बार UPSC की परीक्षा दी और पहली ही बार में सफल हो गईं। इस इम्तिहान में अनुराधा को 451वीं रैंक हासिल हुआ जिसके कारण उनका आई.आर.एस. पद के लिए चयन हो गया। इस पद से भी उन्हें संतुष्टि नही मिली फिर वह
दुबारा से वर्ष 2015 में परीक्षा में बैठी। 2015 के परीक्षा में भी वे सफल रही और इस बार उन्होंने ऑलओवर 62वीं रैंक हासिल हुआ।फिर उन्हें IAS पद मिला।
सबसे ज़्यादा उनकी मां का योगदान
इन सब में उनकी माँ का योगदान की जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है। उनकी माँ को नमन है जो अपनी बेटी के शिक्षा के लिए घर परिवार सबकुछ छोड़ने को तैयार थी। हम सबको ऐसी माँ पर गर्व है।
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