जैसे-जैसे समय का पहिया घुमकर आगे बढ़ता रहता है वैसे ही अपने साथ परिवर्तन भी लाता है। हम चाह कर भी समय को परिवर्तित होने से नहीं रोक सकते हैं और यह जरूरी भी है।
हां, लेकिन अच्छा कहे या बुरा इस समय के बदलाव को पता नहीं, क्योंकि समय बदलने के साथ-साथ हमारी जीवनचर्या भी बदलती रही है। स्मार्ट वर्क बढ़ गया है और शारीरिक श्रम कम हो गया है। हमारे घर की छोटी-बड़ी चीजों में ही नहीं बल्कि हमारे आदतों में भी परिवर्तन आ गया है, चलिए एक नजर डालते हैं बदलते वक्त की कुछ चीजों पर
जब हम चार दोस्त एक साथ बैठते तो, PUBG नहीं बल्कि कैरम खेल कर आनंद लेते थे।

Music app नहीं होती थी, पर ऑडियो कैसेट का खजाना होता था।

हीरो या एटलस की साइकिल हर घर की शान बढ़ाती थी।

हमारा सबसे पहला गैजेट की-बोर्ड वाला वीडियो गेम था।

किसी को पता नहीं था फेसबुक क्या है, पर कॉमिक बुक पढ़ने में बड़ा मजा आता था।

इंक पेन से हाथ गंदे करने का भी अलग ही अनुभव था।

एंटीना घुमा घुमा कर टीवी देखने का सुकून क्या होता है, आज की D2H वाली जनरेशन को क्या पता।

1 दिन में बहुत सी-सेल्फी नहीं बल्कि रील वाले कैमरे से गिन-गिन कर फोटो क्लिक होती थी।

लैंडलाइन फोन ही मजाक के लिए बेस्ट ऑप्शन था।

बुक के कवर देखकर स्टूडेंट को Judge किया जाता था।

2 दिन की मशक्कत के बाद बल्बों की झालर बनाकर दीपावली पर लगाते थे।

डेकोरेशन करने में तो, सचिन, द्रविड़ या गांगुली के पोस्टर सबसे पहले लग जाते थे।

‘स्वागतम्’ वाले डोरमेट हम से पहले मेहमानों का स्वागत कर लेते थे।

खाना जलकर चिपक गया तो बर्तन घिस कर चमक जाते थे, पता किसको था कि अब नॉन स्टिक बर्तन भी बनेगा।

लगता था एक दिन तो ये स्टोव खाना बनाकर फट ही जाएगा।

बर्गर पिज़्ज़ा तो बस टीवी में ही देखा करते थे।

स्विच पर कपड़े टांगने का भी जुगाड़ हो जाता था।

लेटर बॉक्स अभी भुला नहीं जाता।

अगर आपको भी ये चीजें रोमांचित करती थीं तो कमेंट में अपनी राय दें और दोस्तों के साथ शेयर ज़रूर करें।