माता-पिता का रिश्ता उनके संतान के लिए सबसे अनूठा रिश्ता होता है। एक संतान के लिए उसके माँ-बाप भगवान स्वरूप होते हैं। आज हम आपको एक बेटे की कहानी बताएंगे जिन्होंने अपने पिता की दुकान संभालने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी।
वैभव अग्रवाल का परिचय
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में रहने वाले वैभव अग्रवाल ने अपने पिता की दुकान संभालने के लिए अपनी MNC की नौकरी छोड़ देने का फैसला किया। आज वह इस किराने की दुकान से साल के करोड़ों रुपये कमा रहे हैं। किसी के लिए भी अपनी नौकरी छोड़ बिज़नेस करना इतना आसान नहीं होता।
पिता के बिज़नेस को घाटे में जाता देख छोड़ दी नौकरी
साल 2006 में वैभव अग्रवाल के पिता संजय अग्रवाल ने अपने 200 वर्ग फीट की किराने की दुकान को बड़ा करने का फैसला किया। लेकिन इसके बाद भी उन्हें बिज़नेस में कोई लाभ नहीं हो रहा था। 31 वर्षीय वैभव ने जब देखा कि मेहनत करने के बाद भी उनके पिता अपने बिज़नेस को आगे नहीं बढ़ा पा रहें हैं तो उन्होंने अपने पिता की मदद करने का फैसला किया। पिछले दो वर्षों में उन्होंने अपने किराना स्टार्टअप द किराना दुकान कंपनी के तहत न सिर्फ 5 करोड़ का रेवेन्यू हासिल किया है बल्कि देश के दर्जनों शहरों में 100 से अधिक किराना दुकानों को भी मदद पहुंचाई है।

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पिता की तकलीफ देख लिया फैसला
वैभव के पिता घर में कमाने वाले अकेले व्यक्ति थे और वह सहारनपुर में ही ‘कमला स्टोर’ नाम से एक किराना दुकान चलाते थे। यह एक पुरानी दुकान थी जिसमें कई तरह की समस्याएं आ रही थी। समस्याओं को जानने के बावजूद वैभव को इससे निपटने का कोई तरीका नजर नहीं आ रहा था। साल 2013 में अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद वैभव ने कुछ महीने तक अपने पिता की दुकान में ही काम किया। बाद में कैम्पस प्लेसमेंट हो जाने के कारण मैसूर स्थित एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करना शुरू कर दिया।
कुछ अलग करने की चाह में छोड़ी नौकरी
MNC में नौकरी करते समय वैभव ने अलग-अलग स्मार्ट दुकानें देखी थी। इसे देख उन्होंने सोचा कि क्यों ना अपने पिता की दुकान को और बेहतर बनाया जाए। इसलिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी और साल 2014 में एक स्थानीय कंपनी में 10 हजार की सैलरी पर सेल्स मैनेजर के रूप में काम करना शुरू कर दिया। इस दौरान उन्होंने खुदरा बाजार के लॉजिस्टिक्स से लेकर इस पाइंट को भी समझा कि ‘प्रोडक्ट मिक्स’ जगह और दूरी के हिसाब से कैसे बदलते हैं। इसे समझने के लिए वैभव ने दिल्ली स्थित एक संस्थान से ‘बिजनेस मैनेजमेंट’ में मास्टर्स करने का फैसला किया।

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पढ़ाई के साथ जुटाई बिज़नेस की जानकारी
साल 2017 में अपनी पढ़ाई पूरी होने के बाद वैभव दिल्ली में ही एक एफएमसीजी (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स) कंपनी में काम करना शुरू कर दिया। इससे उन्हें प्रोडक्ट को समझने में मदद मिली। उन्होंने विभिन्न आयामों का बारीकी से अध्ययन किया और एक रिपोर्ट तैयार की। इसके बाद उन्होंने एक साल के भीतर अपनी इस नौकरी को छोड़ दिया और अपने पिता के बिज़नेस को ही आगे बढ़ाने का फैसला किया।
ऐसे की बिज़नेस की शुरूआत
2018 की शुरुआत में वैभव अपने पिता की दुकान से पूरी तरह जुड़ गए। इस दौरान उन्होंने अपने दुकान से ऐसे प्रोडक्ट हटा दिए जिनकी कम बिक्री से उन्हें घाटा हो रहा था। दुकान में सभी प्रोडक्ट को ऐसे व्यवस्थित किया, जिससे ग्राहकों का ध्यान आसानी से उन पर चला जाए। इससे उनकी दुकान में ग्राहकों की संख्या बढ़ने लगी। देखते ही देखते उनके इन सफल कोशिशों की चर्चा पूरे शहर में होने लगी। वैभव के अनुसार उन्होंने जनवरी 2021 तक देश के 12 शहरों की 100 से अधिक दुकानों को शुरू किया या उनका नवीकरण किया है।

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दूसरों की दुकान बदलने में भी करते हैं मदद
वैभव न सिर्फ पुरानी दुकानों में बदलाव लाने का जिम्मा उठाते हैं। बल्कि वह लोगों को नई दुकान की शुरूआत करने में भी मदद करते हैं। वैभव पूरे भारत में एक ‘यूनीक डिस्ट्रीब्यूटर सिस्टम’ को विकसित करने की दिशा में काम कर रहे हैं। जो ग्राहकों के लिए किफायती साबित होगा।