कौन कहता है कि महिलाएं कमजोर होती हैं। अगर एक महिला किसी कार्य को करने की ठान ले तो वह नामुमकिन को भी मुमकिन बना सकती है। इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण है छत्तीसगढ़ के बालोद जिले की रहने वाली ‘शमशाद बेगम’।
जिन्होंने ना केवल महिलाओं के उत्थान के लिए कार्य किया बल्कि समाज में फैली बुराईयों को दूर करने के लिए भी अकेले ही अपनी आवाज बुलंद की। उन्होंने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का कार्य किया एवं भू-माफियाओं जैसे लोगों के खिलाफ भी अकेले ही लड़ाई लड़ी है। उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर 12,269 निरक्षर महिलाओं को साक्षर बनाया है। उनके समाजिक कार्यों को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया है। शमशाद बेगम के लिए अकेले समाज का उत्थान करने का कार्य करना इतना आसान नहीं था। आइए जानते हैं उनके जीवन का प्रेरणादायी सफर।
जीवन कर दिया समर्पित
छत्तीसगढ़ में बालोद जिले के एक छोटे से गांव में जन्मी शमशाद बेगम आज दुनिया भर में पहचानी जाती हैं। शमशाद बेगम को भारत सरकार के राष्ट्रीय साक्षरता मिशन कार्यक्रम से जुड़ने का अवसर मिला और इसने समाज सेवा में उनके प्रवेश का मार्ग प्रशस्त किया। उन्होंने 1995 में गुंडरदेही में मिशन गतिविधियों के शुरू होने के छह महीने के भीतर उनके सहयोगियों के साथ मिलकर 12,269 निरक्षर महिलाओं को साक्षर बनाने का कार्य किया। उन्होंने समाज में व्याप्त बुराईयों को देखते हुए अपना संपूर्ण जीवन समाज का उत्थान करने के लिए समर्पित कर दिया।
सामाजिक बुराइयों के खिलाफ उठाई आवाज
शमशाद बेगम ने समाज में फैली बुराईयों को दूर करने के लिए कई कार्य किए हैं। जैसे अवैध भूमि अतिक्रमण के खिलाफ लड़ाई लड़ना और शराब की दुकानों को बंद कराना इत्यादि। यही नहीं उन्होंने बालोद जिले में 1041 स्वयं सहायता समूह स्थापित किया। इन समूहों ने अपनी छोटी बचत के साथ एक कोष जमा किया है जहाँ से ज़रूरतमंद सदस्य घरेलू आपात स्थितियों के लिए ऋण प्राप्त कर सकते हैं। इन समूहों की कुल बचत 2 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है।

महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर
शमशाद बेगम ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई कार्य करने शुरू किए। उन्होंने अपने समूहों के साथ मिलकर एक छोटे बैंक की शुरूआत की। जिसके बचत के पैसों से वह साबुन बनाने और बैलगाड़ियों के लिए पहिये बनाने जैसे कुटीर उद्योग स्थापित करने में सफल हुई। उन्होंने कई महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराया। उन्होंने एक महिला भवन भी स्थापित किया है। वह महिलाओं के नेतृत्व कौशल में प्रशिक्षण और यौन भेदभाव, बाल विवाह और छेड़छाड़ की रोकथाम के खिलाफ जागरूकता पैदा करने के लिए राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) से भी जुड़ी हुई हैं।
महिला कमांडो की कराई ट्रेनिंग
शमशाद बेगम ने महिला कमांडो को तैयार करने का कार्य भी किया है। जिसके लिए उनका नाम नोबेल प्राइज के लिए भी गया था। उनके द्वारा प्रशिक्षित की गई महिला कमांडो जब हाथों में डंडा लिए, लाल साड़ी और लाल टोपी पहनकर सीटी बजाते हुए गांव से गुजरती हैं। तो अच्छे-अच्छे बदमाशों की सिट्टी पिट्टी गुल हो जाती है। इन महिला कमांडो ने अपने कार्यों से ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाले अवैध कार्य जैसे शराब, सट्टा, जुआ, सामाजिक बुराइयां आदि को खत्म करने का प्रयास किया है। महिला कमांडो के इन कार्यों को देखते हुए इंडोनेशिया और मलेशिया से पहुंचे वर्ल्ड पीस कमेटी-202 कंट्री के तमाम लोगों ने महिला कमांडो के कार्यों की काफी सराहना की थी।
शमशाद बेगम ने जिस तरह इस महिला कमांडो को तैयार कर एक नई ऊर्जा के साथ में कार्य किया है। उसकी जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है।