हर एक इंसान ने अपने जीवन में कभी न कभी आसमान में हवाई जहाज को उड़ते तो देखा ही होगा। हवाई जहाज को आसमान में तेज रफ्तार से जाते देख कर आपके मन में कभी न कभी ये ख़्याल भी आया होगा कि क्या आसमान में भी रास्ते होते हैं? पायलट को कैसे पता चलता है कि किधर जाना है? तो आइये जानते हैं इसी बारे में….

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि हवा में भी रास्ते होते हैं। पायलट इन्हीं निश्चित रास्तों पर हवाई जहाज को उड़ाते हैं। इन वायु-मार्गों की चौड़ाई 20-30 KM तक होती है। इन रास्तों के नाम भी होते हैं, जैसे पटना से लखनऊ वायु मार्ग का नाम Q-18, तो वहीं पटना से वाराणसी वायुमार्ग का नाम W-44 है।

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हवाई जहाज में “नेविगेशन सिस्टम” लगा होता है, इसी सिस्टम का उपयोग करके पायलट को पता चलता है कि प्लेन को कहा मोड़ना है, किस रुट पर जाना है, इसे कितनी ऊंचाई पर उड़ाना है, कब लैंडिंग करानी है आदि। नेविगेशन सिस्टम के प्रयोग से पायलट रास्ते से जुड़ी हर बात की जानकारी प्राप्त कर लेता है। हवाई जहाज में ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम(GPS), रेडियो एड्स जैसे नविगेशन सिस्टम, और इनरसीएल रिफरेंस सिस्टम लगे होते हैं।

जीपीएस के तकनीक से पायलट को हवाई जहाज के लोकेशन का पता चलता रहता है। उड़ान भरने से पहले पायलट अपने सामने लगे कंप्यूटर स्क्रीन पर जाने वाले रास्ते को लोड कर लेता है। इससे पायलट को ऊँचे स्थान, यात्रा के मार्ग में पड़ने वाले हवाई अड्डे एवं खराब मौसम का पता आदि चलता रहता है।

अगर जीपीएस में कभी भी किसी तरह की कोई समस्या आ जाए तो दूसरे नेविगेशन सिस्टम का उपयोग करना पड़ता है। नेविगेशन सिस्टम के माध्यम से पायलट अपने सुनिश्चित स्थान पर पहुँच जाता है।

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इसके अलावे पायलट रास्ते में मौजूद एयर ट्रैफिक कंट्रोल से बात भी करते रहते हैं। पायलट को वहाँ से भी महत्वपूर्ण सूचनाएं प्राप्त होती रहती हैं।
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