प्लास्टिक के इस्तेमाल से कितना नुकसान पहुँचता है यह हमलोगों को बखूबी पता है। लेकिन क्या आपने कभी इस प्लास्टिक को अपने जीवन से कम करने की कोशिश की है? क्या आप सोच सकते हैं कि कोई महिला अपनी इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़कर समाज को प्लास्टिक से छुटकारा के प्रति जागृत करने के लिए गन्ने की पराली से बर्तन तैयार करने लग जाएंगी?
विशाखापटनम की रहने वाली विजय लक्ष्मी ने कुछ ऐसा ही कर दिखाया है। उन्होने अपनी सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ अपने स्टार्टअप ‘हाउस ऑफ़ फोलियम के ज़रिए इको-फ्रेंडली और बायोडिग्रेडेबल क्रॉकरी बनाकर ग्राहकों तक पहुंचा रही हैं। आइये जानते है उनके उद्देश्य के बारे में।

स्टार्टअप शुरू करने की ऐसी मिली प्रेरणा
विजयलक्ष्मी एक दशक से भी अधिक समय तक बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में काम कर चुकी हैं। जब वह नौकरी कर रही थी तो उन्होंने देखा कि किस तरह प्लास्टिक पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है। विजय लक्ष्मी ने ठान लिया कि वह पर्यावरण के लिए काम करेंगी चाहे फिर यह कितने ही छोटे स्तर पर क्यों न हो। इसे दूर करने के उद्देश्य से उन्होंने अपना स्टार्टअप लगभग दो साल पहले शुरू किया।

कई सालों की रिसर्च के बाद पाई सफलता
विजयलक्ष्मी ने अपना स्टार्टअप शुरू करने से पहले साल 2014-15 से ही प्लास्टिक के ऊपर रिसर्च करना शुरू कर दिया था। उन्होंने अलग-अलग क्षेत्र देखें और उन्हें समझ में आया कि सिंगल यूज क्रॉकरी पर वह कुछ कर सकती हैं। क्योंकि यह क्रॉकरी के लिए अन्य इको-फ्रेंडली विकल्पों की तुलना में प्लास्टिक बहुत सस्ता है। अपनी रिसर्च के दौरान विजय लक्ष्मी को ऐसे बहुत से विकल्प मिले जैसे बांस, एरेका पाम, गन्ने का पल्प आदि। विजय लक्ष्मी ने रिसर्च में पाया कि खेती के अपशिष्ट यानी पराली से भी इको-फ्रेंडली क्रॉकरी बनाई जा सकती है। लेकिन उन्होंने गन्ने के वेस्ट से क्रॉकरी बनाने का फैसला किया।

ऐसे की शुरूआत
साल 2018 के अंत में विजय लक्ष्मी ने अपनी जॉब छोड़ने के बाद अपने स्टार्टअप, ‘हाउस ऑफ़ फोलियम’ की नींव रखी। उनके पास इतने साधन नहीं थे कि वह अपनी खुद की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट सेटअप कर लें। इसलिए उन्होंने एक अलग रास्ता चुना ताकि वह अपने अभियान पर काम कर सकें। उन्होंने कुछ ऐसे लोकल मैन्युफैक्चरर से बात की जो अलग-अलग रॉ मटेरियल से आर्डर पर क्रॉकरी बनाते हैं। उन्होंने इनके साथ टाई-अप किया और आज वह सैकड़ों ग्राहकों को इको-फ्रेंडली क्रॉकरी उपलब्ध करवा रही हैं। विजयलक्ष्मी आज अच्छी खासी कमाई भी कर रही हैं। विजयलक्ष्मी ने 150-200 लोगों के आयोजनों तक में भी यह इको-फ्रेडंली क्रॉकरी उपलब्ध करवाई है।

कैसे बनाई जाती है गन्ने से क्रॉकरी
लोकल मैन्युफैक्चरर किसानों से गन्ने का वेस्ट खरीदते हैं। और फिर इसे कुछ वक़्त तक भिगोकर रखा जाता है। इसके बाद इसे मशीनरी में प्रोसेस करके क्रॉकरी बनाई जाती है। यह क्रॉकरी पूरी तरह से बॉयोडिग्रेडेबल कचरे में फेंके जाने पर 90 दिनों के भीतर गल जाती है। अगर कोई जानवर इसे खाए तो भी उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर नहीं पड़ेगा क्योंकि यह हानिकारक नहीं है।
विजयलक्ष्मी ने अपनी मेहनत और लगन के दम पर अपनी सफलता की कहानी लिखी है।