इंसान चाहे तो अपनी तकदीर का रूख किसी भी ओर मोड़ सकता है। मेहनत और लगन के बलबूते सब कुछ को संभव बना सकता है। इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण हैं, राजस्थान के रहने वाले सुंडाराम वर्मा। जिन्होंने अपनी नई सोच से खेती करने की तकनीक ही बदल दी।
किसानों के बीच सुंडाराम वर्मा का नाम आज सबसे ज्यादा प्रचलित है। 3 बार लगी अपनी सऱकारी नौकरी छोड़ने वाले सुंडाराम वर्मा आज अपने कार्यों के दम पर किसी भी कृषि वैज्ञानिक से कम नहीं हैं। उन्होंने 1 लीटर पानी में पौधा उगाने की नायाब तकनीक विकसित की है। उन्होंने इस तकनीक से इलाके में करीब 50 हजार पौधे भी लगवाए हैं। उनके कार्यों को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया है। लेकिन अपनी लगी-लगाई सरकारी नौकरी छोड़ कर खेती की ओर अपना जीवन समर्पित कर देना सुंडाराम वर्मा के लिए आसान नहीं था। आइए जानते हैं उनके जीवन का संघर्ष से सफलता तक का प्रेरणादायी सफर।

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3 बार लगी सरकारी नौकरी छोड़ शुरू की खेती
राजस्थान के सीकर जिले दांतारामगढ़ उपखंड के गांव दांता के रहने वाले किसान सुंडाराम वर्मा का खेती की ओर रुझान 48 साल पहले वर्ष 1972 में हो गया। उस समय उन्होंने अपनी बीएएसी की पढ़ाई पूरी की थी। जिसके बाद उनकी तीन बार सरकारी टीचर की नौकरी लगी। लेकिन सुंडाराम वर्मा ने सरकारी शिक्षक बनने की बजाय खेती करने का विकल्प चुना। इसके बाद वह शुष्क वानिकी विधि काम करने लगे। उन्हें एक ऐसी तकनीकी विकसित करने में सफलता मिली, जिससे एक लीटर पानी में ही पौधे को पेड़ बनाया जा सकता है। सुंडाराम ने कृषि के क्षेत्र में शुष्क वानिकी विधि को अपनाकर यह दिखाया कि कम पानी की खपत कर भी किस तरह खेती की जा सकती है। वृक्षारोपण तकनीक विकसित करने के लिए उन्होंने एक हेक्टेयर भूभाग में 20 लाख लीटर बारिश के पानी और 15 फसलों की 700 से अधिक प्रजातियों का एक साथ सरंक्षण किया। किसान सुंडाराम की एक लीटर पानी में एक पौधा तकनीक को राजस्थान सरकार के जल संरक्षण विभाग ने भी मान्यता प्रदान की। कृषि वैज्ञानिक और हरित क्रांति के जनक डॉ. स्वामीनाथन ने भी प्रशंसा की। एक लीटर पानी पौधा तैयार करने की तकनीक में सुंडाराम को दस साल लग गए थे।

15 फसलों की 700 प्रजातियों का किया अध्ययन
सुंडाराम वर्मा ने राजस्थान में खेती करने की नई तकनीक विकसित कर दी। उन्होंने राजस्थान की फसल मिर्च, चौळा, ग्वार, धनिया, काबुली चना और मैथी समेत 15 फसलों की करीब 700 प्रजातियों का संकलन कर गहन अध्ययन भी किया और फिर कम पानी, कम लागत में अच्छी पैदावार के गुर किसानों को सिखाए। सुंडाराम के इस कार्य को दिल्ली के पूसा संस्थान ने भी मान्यता दी है। यही कारण हैं कि सुंडाराम वर्मा को राजस्थान का देसी कृषि वैज्ञानिक भी कहा जाता है। यह बीते 25 साल कृषि कार्य को सरल बनाने और खेती नवाचार करने में जुटे हैं। इन्होंने आदर्श फसल चक्र का भी निर्माण किया, जिसमें तीन साल में सात फसलें प्राप्त की जा सकती हैं। किसान को एक हैक्टेयर में एक लाख रुपए का लाभ प्राप्त हो सकता है।

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पद्मश्री सहित कनाड़ा सरकार के पुरस्कार से भी हो चुके हैं सम्मानित
सुंडाराम वर्मा को खेती में नायाब तकनीक विकसित करने के लिए कई सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें कृषि विधि में सबसे पहला पुरस्कार कनाडा में वर्ष 1997 में एग्रो बायो डायवर्सिटी बायो अवार्ड मिला। दूसरी बार वर्ष 1998 में राष्ट्रीय स्तर का जगजीवन राम किसान पुरस्कार प्राप्त हुआ। तीसरा पुरस्कार राज्य सरकार द्वारा वन पंडित पुरस्कार दिया गया। यही नहीं हाल ही में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान से भी सम्मानित किया है।

सुंडाराम वर्मा ने अपनी मेहनत और लगन के दम पर अपनी सफलता की कहानी लिखी है। सुंडाराम वर्मा ने खेती की नई तकनीक विकसित कर लाखों किसानों को प्रेरित किया है।