“ऊँच-नीच का भेद न माने वही श्रेष्ठ प्राणी है” राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की इन पंक्तियों को कुछ लोग अक्सर भूल जाते है।
इस नवीन युग में जहाँ लोग अब छुआछूत की भावना को अपने मन से निकाल रहे हैं तो वहीं कुछ जगहों पर अभी भी यह व्याप्त है। आज हम आपको एक ऐसे विद्यालय के बारे में बताएंगे जहाँ सभी बच्चे पढ़ते तो साथ में है पर वहीं सरकार की योजना मीड डे मील को खाने के बाद अपने बर्तनों को अलग-अलग रखते हैं। आइये जानते है इस पूरे घटनाक्रम के बारे में।
विद्यालय में बच्चों के बीच छुआछूत
यह घटना उत्तरप्रदेश के मैनपुरी जिले के एक सरकारी विद्यालय की है जहाँ एक साथ पढ़ रहे बच्चों को छुआछूत के बारे में भी सिखाया जा रहा है। कक्षा में एक साथ पढ़ने वाले बच्चों के मन में ऊँच-नीच के भेदभाव को पैदा करना बिल्कुल गलत है। दरअसल प्राथमिक विद्यालय दउदापुर में बच्चे सरकार की योजना ‘मीड डे मील’ को खाने के बाद अपने बर्तनों को अलग-अलग रखते हैं। ऊँची जाती के बच्चे अपने बर्तन को एक कमरे में रखते हैं तो वहीं दलित के बच्चे अलग कमरे में।

प्रिंसिपल देती थी साथ
इस विद्यालय की प्रिंसिपल इस छुआछूत में सहायक की भूमिका निभा रही थीं। उनके आदेश के अनुसार ही विद्यालय में अलग-अलग कमरे बनाए गए थे। इस विद्यालय में कुल बच्चों की संख्या 80 है जिसमें दलित बच्चे 26 हैं। वहीं इस गांव की आबादी डेढ़ हजार के करीब है जिसमें 654 फीसदी अगड़ी और पिछड़ी जाति के 35 फीसदी लोग निवास करते हैं।

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सरकार ने उठाया कठोर कदम
जब राज्य सरकार को इस विद्यालय के बारे में पता चला तो सरकार के शिक्षा विभाग के द्वारा रसोइया और उसकी सहायिका को नौकरी से निकाल दिया गया तो वहीं स्कूल की प्रिंसिपल को निलंबित कर दिया गया। इस भेद भाव में महिला प्रिंसिपल के पति भी शामिल हुए करते थे। रसोइये के बयान के अनुसार वह उनसे बर्तनों को रोज धुलने के लिए बोलते थे।

अगड़ी जाति के बच्चों का स्कूल आना बंद
प्रिंसिपल के सस्पेंड होने के विरोध में गांव के अगड़ी जाति के लोगों ने अपने-अपने बच्चों को विद्यालय भेजने से मना कर दिया है। हम कितने भी मानसिक तौर पर मजबूत हो, पर अब भी समाज में कहीं न कहीं छुआछूत की भावना व्याप्त है। उत्तर प्रदेश का दउदापुर का यह विद्यालय एक प्रत्यक्ष उदाहरण है। हमें इन सभी चीजों से ऊपर उठकर समाज और अपने देश के विकास में सहायक होना चाहिए। इन सभी चीजों से समाज में एक गलत संदेश जाता है।

जो मनुष्य आपसी भेदभाव न करके सबके साथ समान व्यवहार करता है वही सच्चा मनुष्य है।