टोक्यो ओलंपिक में भारत के खिलाड़ियों ने अभी तक ऐतिहासिक प्रदर्शन किया है। भारतीय खिलाड़ी इस बार रिकॉर्ड संख्या में मेडल जीतकर देश का नाम रौशन कर रहे हैं।
वहीं टोक्यो ओलंपिक का 16वां दिन भारत के लिए ऐतिहासिक दिन रहा है। 13 साल बाद ओलंपिक में भारत को जैवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा ने गोल्ड मेडल दिलाया। वहीं बजरंग पूनिया ने भी आज कांस्य पदक अपने नाम किया। पर क्या आपको पता है कि ओलंपिक में मिलने वाले गोल्ड मेडल में कितना सोना होता है? आइये जानते हैं इसके बारे में।
क्या गोल्ड मेडल सोने का होता है।
अगर बात करें ओलंपिक के मेडल की तो यह पूर्ण रुप से सोने का नही होता है। गोल्ड मेडल बाकी मेडल से भारी जरूर होता है। पर यह चांदी से बना होता है जिसमें सोने की पतली परत चढ़ाई रहती है। 1912 के स्टॉकहोम गेम्स में ही आखिरी बार प्योर गोल्ड के मेडल्स दिए गए थे। उसके बाद इंटरनेशनल ओलिंपिक कमेटी के तय नियमों के आधार पर मेडल्स बन रहे हैं। इससे स्पस्ट है कि पदक पूरी तरह सोने का नहीं होता है, चांदी के बने पदक पर 6 ग्राम सोने की परत चढ़ी ही रहती है।

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मोबाइल फोन से बनाए गए हैं मेडल।
टोक्यो ओलंपिक में विजयी होने वाले खिलाड़ियों को दिए जाने वाले पदकों की कुछ अलग तरीके से बनाए गए है। ओलिंपिक इतिहास में पहली बार पदकों के निर्माण के लिए रिसाइकल्ड मेटल्स का इस्तेमाल किया गया है। इन मेटल्स को पुराने मोबाइल फोन से निकाला गया है। मेडल का निर्माण करने के लिए पुराने गैजेट्स से सोना, चांदी और तांबा निकाला गया है। जो अब चमचमाते मेडल के रूप में दिखाई दे रहे हैं।

इस बार खुद ही पदक डाल रहे है खिलाड़ी।
ओलंपिक की पारंपरिक पदक समारोह के लिए बहुत अहम बदलाव’ किए गए हैं। इस बार टोक्यो ओलंपिक में पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से बचाए रखने के लिए खुद ही अपने गले में पदक डालने पड़ रहे हैं। यह सब कोरोना वायरस से बचाव के लिए भी किया जा रहा है। ओलंपिक के शुरू होने से पहले ही यहाँ की कमिटी को लोगों द्वारा विरोध प्रदर्शन का सामना करना पड़ा था। लोग ओलंपिक आयोजन के खिलाफ थे।
पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए किया गया ऐसा।
पर्यावरण के प्रति बढ़ती चेतना को देखते हुए 2016 रियो खेलों में आयोजकों ने पुनरावर्तित धातु के अधिक इस्तेमाल का फैसला किया। पदकों में न सिर्फ 30 प्रतिशत पुनरावर्तित धातु का इस्तेमाल हुआ, बल्कि उससे जुड़े रिबन में भी 50 प्रतिशत पुनरावर्तित प्लास्टिक बोतलों का इस्तेमाल किया गया। सोना भी पारद मुक्त था। रियो के नक्शेकदम पर चलते हुए टोक्यो खेलों के आयोजकों ने भी पुनरावर्तित विद्युत धातुओं से पदक बनाने का फैसला किया। इसलिए यही कारण है कि इस बार पुराने फोन का भी इस्तेमाल किया गया है।

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प्राचीन काल में कुछ इस तरह के मेडल।
प्राचीन काल के ओलंपिक खेलों में खिलाड़ियों को जीत पर जैतून की शाखाओं और पत्तियों से बने पुष्पचक्र दिए जाते थे। दुनिया में पहला आधुनिक ओलंपिक 1896 में ग्रीस के एथेंस में हुआ। लेकिन यहां विनर को रजत पदक और जैतून का पुष्पचक्र दिया गया। दूसरे पोजिशन पर रहने वाले खिलाड़ी को तांबे का मेडल और तीसरे स्थान पर रहने वाले खिलाड़ी को कांस्य पदक दिया गया था।