नारी शक्ति के बिना इस संसार में मनुष्य कुछ भी नहीं कर सकता है क्योंकि बिना नारी शक्ति उसकी दशा बिना इन्जन वाली गाड़ी जैसी होती है। इस धरती पर सबसे पहले नारी शक्ति के रूप में माँ दुर्गा का अवतरण हुआ था। आज की महिलाएं भी वीरांगना की तरह अपने देश का नाम रौशन कर रही हैं।
आज हम आपको महिला सशक्तिकरण का प्रत्यक्ष उदाहरण शीला दावरे के बारे में बताएंगे, जिन्होंने भारत की पहली महिला ऑटो ड्राइवर बनकर महिला सशक्तिकरण को और मजबूत करने का काम किया है। शीला दावरे भारत की पहली महिला ऑटो ड्राइवर हैं जिन्होंने अपने पूरे हिम्मत के साथ ऑटो-रिक्शा चलाना शुरू किया था। आइये जानते हैं उनके बारे में।
कम उम्र में छोड़ा घर
शीला दावरे का जन्म महाराष्ट्र (Maharashtra) के एक छोटे-से शहर परभणी (Parbhani) में हुआ था। शीला जब 18 साल की थी तो उन्होंने अपना घर छोड़ दिया था। तब उनके हाथों में महज 12 रूपये थे। यह अस्सी के दशक की बात है। तब पुणे में सारे टैक्सी ड्राइवर पुरुष थे जो कि खाकी ड्रेस पहनते थे। ऐसे में शीला ने सलवार कमीज पहनकर ऑटो चलाना शुरू किया।

परिवार ने किया विरोध
शीला (Shila Dawre) ने ऐसे समय में अपने काम की शुरुआत की थी जब महिलाओं की थोड़ी बहुत पढ़ाई के बाद उनकी शादी करवा दी जाती थी। लेकिन शीला ने समाज के नियमों में बदलाव लाने की ठान ली। शीला के परिवार (Family) ने इस काम के शुरुआत में विरोध किया। उन्हें तरह-तरह के ताने सुनने पड़े। लेकिन बाद में उनके काम को स्वीकार कर लिया गया।
खुद का ऑटो लिया
शिला को ऑटो (Auto) चलाने में काफी दिलचस्पी थी पर महिला होने के कारण अक्सर लोग किराया चुकाने में आनाकानी करते थे।शुरुआत में लोग उन्हें महिला होने की वजह से ऑटो किराए पर देने से घबराते थे। फिर बाद में उन्होंने पैसे जमा करना शुरू किया और खुद की ऑटो खरीद ली। अब उन्हें किराए की ऑटो चलाने की कोई जरूरत नही थी।

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ऑटो ड्राइवर से शादी
शिला ने ऑटो चलाना शुरू कर दिया उसी दौरान उनकी मुलाकात शिरीष (Shirish) नामक ऑटो चालक से हुआ। आगे चलकर शीला और शिरीष ने एक दूसरे से शादी कर लिया। उनदोनों ने बाद में अपनी ट्रैवल कंपनी (Travel company) खोल ली। अब वह दोनों इसी को चलाते हैं। उनके पति शिरीष ने हमेशा उनका साथ दिया है।
ड्राइविंग एकडमी की ख्वाहिश
अब शिला महिलाओं को ड्राइविंग करने और जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए ड्राइविंग एकैडमी (Driving Academy) खोलना चाहती हैं। वह आज अपने निर्णय से बहुत खुश हैं। आज उनका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी शामिल हो चुका है। उन्हें कई सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है। आज शीला दावरे महिलाओ के लिए प्रेरणा हैं।
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