सफलता इतना आसान नही जो हर किसी को भी मिल जाए। इसे पाने के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ता है। आज हम आपको वेदांता के चेयरमैन अनिल अग्रवाल के बारे में बताएंगे, जिन्होंने कबाड़ बेचकर अपनी पहचान बनाई और आज वो भारत के बड़े बिज़नेसमैन में से एक हैं।
आपको बता दें कि वो अपनी संपत्ति को दान करके लोगों के बीच काफी लोकप्रिय बन गए हैं। अनिल अग्रवाल (Anil Agrawal) की कहानी भी लोगों के बीच एक अलग पहचान बना रही है। उन्होंने कठिन परिश्रम करके एक अलग मुकाम हासिल किया है। आइये जानते हैं उनके बारे में।
कम उम्र में छोड़ दिया स्कूल
बिहार की राजधानी पटना (Patna) में जन्में और पले-बढ़े अनिल अग्रवाल की पारिवारिक स्थिति अच्छी नहीं थी लेकिन उनके सपने बहुत बड़े थे। उन्होंने हायर सेकंडरी स्कूल से पढ़ाई की, लेकिन महज 15 साल की उम्र में स्कूल छोड़ दिया। जब वो पटना से मुंबई जाने के लिए निकले तो उनके हाथ में एक टिफिन बॉक्स, बिस्तर और आंखों में बड़े सपने थे। और मन में कुछ अलग करने की चाह थी।

कबाड़ बेचकर काम शुरू किया
अनिल अग्रवाल ने अपने करियर की शुरूआत बतौर स्क्रैप डीलर के तौर पर की। 1970 में उन्हें कबाड़ (Garbage) भी बेचना पड़ा और 1990 में कॉपर को रिफाइन करने वाली देश की पहली प्राइवेट कंपनी बनी। यही कंपनी आगे चलकर वेदांता रिसोर्सेज लिमिटेड और आज की Vedanta Group बन गई। वेदांता ग्रुप आज के समय देश ही नहीं दुनिया की सबसे बड़ी खनन कंपनियों में से एक है।
पत्नी का भरपूर सहयोग मिला
अनिल अग्रवाल के आगे बढ़ने में उनकी पत्नी ने काफी मदद (Help) की। आपको बता दें कि उनकी पत्नी ने उनके लंदन (London) जाने में अहम किरदार निभाया। लंदन के हीथ्रो हवाई अड्डे पर उतरने के बाद के अनिल अग्रवाल ने देखा कि यह भारत से कई तरह अलग था। लेकिन उन्होंने लंदन में भी अपनी एक खास पहचान बनाई। वे धातु, तेल और गैस के कारोबार से जुड़े हैं।

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संपत्ति को दान किया
वेदांता रिसोर्सेज के मालिक अनिल अग्रवाल ने 75 फीसदी संपत्ति (Property) को दान की घोषणा की थी। उन्होंने कहा कि जो कमाया उसे समाज को लौटाना चाहता हूं। वर्तमान में अनिल अग्रवाल की कंपनी वेदांता ग्लोबल बन चुकी है, यह कंपनी भारत के अलावा अफ्रीका, आयरलैंड और अस्ट्रेलिया समेत अन्य कई देशों में कारोबार कर रही है। आज उनका कारोबार बिलियन डॉलर (Billion) का है।
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