24.1 C
New Delhi
Wednesday, May 31, 2023

छत्तीसगढ़ की संस्कृति को बस्तर बैंड के ज़रिए एक नई पहचान दिलाई, सरकार ने दिया पद्मश्री

अपने देश की कला और संस्कृति को बचाना हमारा परम कर्तव्य बनता है। कला और संस्कृति ही किसी देश की पहचान होती है।

आज हम आपको छत्तीसगढ़ के पारंपरिक वाद्ययंत्र बस्तर बैंड को देशभर में पहचान दिलाने वाले अनूप पांडेय के बारे में बताएंगे जिन्होंने विलुप्त होती कला को बचाकर उसे दुनियाभर में नई पहचान दिलाने का काम किया है। आइये जानते है उनके बारे में।

अनूप द्वारा बस्तर बैंड का निर्माण

बिलासपुर के रहने वाले अनूप रंजन पांडेय ने बस्तर की कला और संस्कृति को बचाने के लिए बस्तर बैंड का निर्माण किया। अनूप पांडेय एक दशक से वाद्य यंत्रों को पहचान दिलाने में जुटे हुए है। बस्तर बैंड के कलाकारों के प्रयासों से आज बस्तर के वाद्य यंत्र देश- दुनिया में मशहूर हो चुके हैं। यही कारण है कि बस्तर के लुप्तप्राय पारंपरिक वाद्ययंत्रों के जरिए बस्तर बैंड तैयार कर देशभर में ख्याति दिलाने का काम अनूप रंजन ने किया है।

कई सालों से कर रहे हैं संस्कृति की रक्षा

अनूप रंजन पांडेय ने करीब दस साल पहले बस्तर बैंड की स्थापना की थी। बस्तर बैंड धरोहर कलाकारों का एक समूह है। बस्तर बैंड की प्रस्तुतियों को बस्तर के लोक एवं पारंपरिक जीवन का प्रासंगिक स्वर कहा जा सकता है। बस्तर बैंड पूरे बस्तर की कला, संस्कृति, मिथक और उत्पत्ति की कथाएं और बस्तर की विलुप्त होती परंपराओं को संजोए रखने का एक प्रयास है।

यह भी पढ़ें: हमारे बच्चे अकेले बाथरूम जाने से डरते हैं और इन्होंने 12 वर्ष की उम्र में ही खड़ी कर दी करोड़ों की कंपनी

भाई को मानते है आदर्श

अनूप रंजन पांडेय अपने भाई आलोक रंजन को अपना आदर्श मानते हैं। अनूप ने संगीत की शुरूआती शिक्षा अपनी मां से ही ली थी। वो उन्हें लोग गीत और भजनों को गाना सिखाती थी। अनूप अपने स्कूल की प्रतियोगिताओं में नई- नई प्रस्तुतियां दिया करते थे। यहीं से उनकी रुचि संगीत में हो गई।

बस्तर बैंड की स्थापना

अनूप रंजन पांडेय को वाद्ययंत्र को जमा करने का शौक रहा है। उनके पास 200 से अधिक वाद्ययंत्रों का संग्रह है। उन्हें लगा कि वाद्ययंत्रों को जानना और इन्हें सहेजकर इनकी प्रदर्शनी लगाना ही काफी नहीं है। इन्हें अभ्यास में ही आना चाहिए। यहीं से उन्होंने बस्तर बैंड की नींव रखी। अनूप अपने इस बैंड के जरिए लोक कलाकारों को प्रमोट करने का कार्य भी करते हैं।

देश विदेश में दिलाई पहचान

तीन दशक से भी अधिक समय से लोक रंगमंच में सक्रिय अनूप ने छत्तीसगढ़ी लोकनाट्य परंपरा रहस लीला एवं नाचा से शुरुआत की। 1988- 89 में दिल्ली में स्थापित प्रख्यात रंगकर्मी हबीब तनवीर की नाट्य मंडली नया थियेटर में बतौर अभिनेता शामिल हुए। अनूप ने बस्तर बैंड की प्रस्तुति- भारत के साथ- साथ इंग्लैंड, जर्मनी, फ्रांस, हालैंड, इटली समेत यूरोपीय देशों के अलावा साउथ- ईस्ट एशिया और साउथ अफ्रीका तक में दी है। अनूप ने इन्हें विलुप्त होने से बचाया, साथ ही कलाकारों को प्रोत्साहित किया कि वे आगे आएं।

कई सम्मान से हो चुके हैं सम्मानित

बस्तर बैंड को विश्वस्तर पर नई पहचान दिलाने वाले अनूप रंजन पांडेय को बस्तर कला के प्रति समर्पण और लगाव के लिए भारत सरकार ने ‘पद्मश्री’ सम्मान से सम्मानित किया है। यही नहीं वो राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली की जनजातीय महोत्सव सलाहकार समिति, संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार की विशेषज्ञ समिति, एसीटेज इंडिया के सदस्य रह चुके हैं। अनूप रंजन को संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सीनियर फेलोशिप, छत्तीसगढ़ सरकार ने लोक कला के सर्वोच्च सम्मान दाऊ मंदराजी से भी सम्मानित किया गया था।

बस्तर बैंड को संरक्षित कर उसे नई पहचान दिलाने वाले अनूप रंजन पांडेय से आज लोगों को सिख लेने की जरूरत है।

Sunidhi Kashyap
Sunidhi Kashyap
सुनिधि वर्तमान में St Xavier's College से बीसीए कर रहीं हैं। पढ़ाई के साथ-साथ सुनिधि अपने खूबसूरत कलम से दुनिया में बदलाव लाने की हसरत भी रखती हैं।

Related Articles

Stay Connected

95,301FansLike
- Advertisement -