सनातन धर्म में मंदिरों की परम्परा काफी पूरानी है। लोगों को आस्था से काफी लगाव है। ऐसे में देश और विदेश में आज लाखों करोड़ों मंदिर है। पूरे विश्व में बने इन मंदिरों में कई मंदिर आज भी रहस्य बने हुए हैं। दरअसल इनका रहस्य आज भी लोगों के लिए एक अनसुलझी पहेली है यानि ये मंदिर समझ से परे हैं। आज हम आपको विष्णु भगवान के ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे जो मंदिर तालाब में है। तालाब में वास करते हुए यह भगवान शिव के रूप में दिखाई पड़ते है। आइए जानते हैं कि इस मंदिर का रहस्य क्या है।
मंदिर के अद्भुत रहस्य
काठमांडू के मध्य से करीब दस किलोमीटर की दूरी पर शिवपुरी हील के पास यह मंदिर विराजमान है। यह मंदिर है विष्णु भगवान की पर पानी में इसे देखने पर यह साक्षात महादेव दिखाई पड़ते हैं। इस मंदिर का नाम बूढा नीलकंठ मंदिर है। जिसके तालाब में भगवान विष्णु की चतुर्भुजी प्रतिमा शेषनाग पर शयन अवस्था में विराजमान है।

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भगवान विष्णु की मूर्ति भव्य
मंदिर में विराजमान मूर्ति की लंबाई लगभग 5 मीटर है और तालाब की लंबाई 13 मीटर है। यह तालाब ब्रह्मांडीय समुद्र का प्रतिनिधित्व करता है। इस मूर्ति को देखने पर इसकी भव्यता का अहसास होता है। तालाब में स्थित विष्णु जी की मूर्ति शेष नाग की कुंडली में विराजित हैं, मूर्ति में विष्णु जी के पैर पार हो गए हैं और बाकी के ग्यारह सिर उनके सिर से टकराते हुए दिखाई देते हैं। इस प्रतिमा में विष्णु जी के चार हाथ उनके दिव्य गुणों को दर्शाते हैं। बता दें पहला चक्र मन का प्रतिनिधित्व करना, शंख चार तत्व, कमल का फूल चलती ब्रह्मांड और गदा प्रधान ज्ञान को दर्शा रही है।

भगवान विष्णु के साथ-साथ शिव शंकर भी है विराजमान
जहां मंदिर में भगवान विष्णु प्रत्यक्ष मूर्ति के रूप में विराजमान हैं तो वहीं भोलेनाथ पानी में अप्रत्यक्ष रूप से विराजित हैं। माना जाता है कि बुढानिलकंठ मंदिर का पानी गोसाईकुंड में उत्पन्न हुआ था। लोगों का मानना है कि अगस्त में होने वाले वार्षिक शिव उत्सव के दौरान झील के पानी के नीचे शिव की एक छवि देखने को मिलती है। लोग इसे बड़े रहस्य की दृष्टि से देखते हैं।

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पौराणिक कथा प्रचलित
एक पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के समय समुद्र से विष निकला था तो सृष्टि को विनाश से बचाने के लिए शिव जी ने इस विष को अपने कंठ यानि गले में ले लिया था। जिस कारण उनका गला नीला हो गया था। इस कारण ही भगवान शिव को नीलकंठ कहा जाने लगा। जब जहर के कारण उनका गला जलने लगा तो वह काठमांडू के उत्तर की सीमा की ओर गए और झील बनाने के लिए त्रिशूल से एक पहाड़ पर वार किया, जिससे एक झील बनी। कहते हैं इसी झील के पानी से उन्होंने अपनी प्यास बुझाई थी।

अगर आपलोग भी काठमांडू घूमने जाए तो इस मंदिर का दर्शन अवश्य करें। यह मंदिर बहुत ही सुंदर है। इसके रहस्य को जानकर आप इसके दर्शन करने के लिए लालायित जरूर होंगे।