जिस समाज में मनुष्य जन्म लेता है, उस समाज की उन्नति करना उसकी सेवा करना उसका कर्तव्य है। इसीलिए महान पुरुषों ने समाज सेवा को ही उत्तम कर्तव्य और धर्म माना है।
आज हम आपको एक ऐसे ही इंसान के बारे में बताएंगे जिन्हें 1997 में आतंकियों ने गोलियों से छलनी कर दिया था जिसके कारण वो दिव्यांग हो गए और उन्हें व्हीलचेयर का सहारा लेना पड़ा। लेकिन इतना कुछ होने के बाद भी उन्होंने अपना हौसला नहीं खोया और समाज सेवा के क्षेत्र में आगे बढ़ गए। आइये जानते है उनके बारे में।
गोलियों से हो गए थे छलनी
कश्मीर के अनंतनाग जिले के बिजबहाड़ा के रहने वाले श्री जावेद अहमद टाक के जीवन में एक ऐसा दर्दनाक हादसा हुआ जिसकी वजह से उनका पूरा जीवन ही बदल गया। वर्ष 1997 में एक दिन मध्यरात्रि को 21 वर्षीय जावेद अपनी बीमार मौसी के घर आए थे। वो उस समय स्नातक की पढ़ाई कर रहे थे। लेकिन अचानक रात को वहीं बंदूकधारी आतंकी आ गए। वो उनके मौसेरे भाई को अगवा कर ले जाने लगे। जावेद ने उन्हें रोकने की कोशिश की तो आतंकियों ने उन पर गोलियों की बरसात कर दी।

तनाव का शिकार हुए जावेद
जिसमें जावेद बुरी तरह जख्मी हो गए। आतंकियों को लगा कि वो मर गए हैं। जब जावेद को होश आया तो उन्होंने देखा कि वो अस्पताल में हैं। लेकिन वो चलने- फिरने में असमर्थ हो गए थे। गोलियों ने उनकी रीढ़ की हड्डी, जिगर, किडनी, पित्ताशय, सबकुछ जख्मी कर दिया था। तीन साल तक वो बिस्तर पर रहे और तनाव का शिकार हो गए।

खुद को किया मजबूत
अपने साथ हुए दर्दनाक हादसे के बाद श्री जावेद अहमद टाक बुरी तरह टूट गए थे। उन्हें लगा कि वो पूरी जिन्दगी अब व्हीलचेयर के सहारे ही बिताएंगे और कुछ नहीं कर पाएंगे। लेकिन एक दिन उनकी जिंदगी में एक ऐसा पल भी आया जिसने उनकी सोच को पूरी तरह से बदल कर रख दिया।

बच्चों को पढ़ाना शुरू किया
एक दिन जब वो बिस्तर पर लेटे हुए अपनी जिंदगी के बारे में सोच रहे थे। तभी घर के बाहर उन्होंने कुछ बच्चों का शोर सुना। जावेद ने अपनी मां से कहा कि वह बच्चों को बुलाकर लाए। उन्होंने उन बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। देखते ही देखते उनका छोटा सा कमरा एक छोटे से स्कूल में बदल गया। जिसके कारण उनका तनाव कम हुआ और उन्होंने ठान लिया कि वो अब इसे ही अपना करियर बनाएंगे।

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बच्चों के लिए शुरू किया स्कूल
अपनी जिंदगी से हार मान चुके जावेद को बच्चों को शिक्षित करने में जीवन की एक नई रोशनी दिखाई दी। जिसके बाद उन्होंने दिव्यांगों और आतंक पीड़ितों की मदद को अपना मिशन और मकसद बना लिया। उन्होंने अनंतनाग में ही जेबा आपा इंस्टीट्यूट की स्थापना की। इस स्कूल में आठवीं कक्षा तक के करीब 100 दिव्यांग, मूक- बधिर, नेत्रहीन, गरीब और आतंक पीड़ित बच्चों को निःशुल्क शिक्षा दी जाती है। स्कूल में नेत्रहीन बच्चों के लिए ‘ब्रेल लिपि’ में पढ़ाई की सुविधा है।
जावेद हुए सम्मानित
श्री जावेद अहमद टाक की बहादुरी और उनके जज़्बे को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें देश के चौथे सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया है। जावेद ने केवल बच्चों के ही जीवन का सुदृढ़ नहीं बनाया बल्कि वो कई सामाजिक कार्यों में भी आगे आएं हैं। वर्ष 2003 में उन्होंने हेल्पलाइन ह्यूमैनिटी वेल्फेयर आर्गेनाइजेशन शुरू किया, जो दिव्यांगों और आतंक पीड़ितों की मदद करता है। जावेद को सरकार की तरफ से करीब 75 हजार मुआवज़ा राशि मिली थी, उन्होंने वह भी इन बच्चों की शिक्षा के लिए खर्च कर दी थी।
जावेद ने अपनी मेहनत और हौसले के दम पर आज सभी लोगों के लिए प्रेरणा है।