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Wednesday, May 31, 2023

कम हाइट की वजह से मज़ाक उड़ाते थे लोग, Paralympic में गोल्ड मैडल लाकर किया सबका मुँह बंद

“आसमान भी मुझसे नीचे उड़ेगा मेरे हौसलों में इतनी ताक़त है” यह पंक्तियां एक इंसान पर सटीक बैठती है जिन्होंने अपनी परेशानी को छोटा समझकर टोक्यो पैरालंपिक में गोल्ड मेडल जीता है।

राजस्थान के रहने वाले कृष्णा नागर जिन्होंने टोक्यो पैरालंपिक में गोल्ड मेडल जीतकर नया इतिहास रचा है। टोक्यो पैरालंपिक की बैडमिंटन प्रतियोगिता में कृष्णा नागर ने अपने शानदार प्रदर्शन की बदौलत भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतकर नया इतिहास रचा है। आइए जानते हैं उनके बारे में।

सामान्य बच्चों से छोटे थे कृष्णा

12 जनवरी 1999 में राजस्थान के जयपुर के एक सामान्य परिवार में जन्में कृष्णा नागर जब 2 साल के थे तभी उनके परिवार को पता चला कि वो बौने हैं क्योंकि उनकी हड्डी के विकास में कुछ समस्या थी जिसके कारण वो अन्य सामान्य बच्चों की तरह नहीं बढ़ सकते थे। कृष्णा जब बड़े हुए थे तो देखने में वो सामान्य बच्चों से छोटे लगते थे। उनकी लंबाई 4 फीट 2 इंच ही है। जिसके कारण आस-पास के लोग और बच्चे उन पर हंसते थे।

कृष्णा बनना चाहते थे क्रिकेटर

माता-पिता के प्रेरित करने के बाद कृष्णा नागर ने अपना ध्यान खेलों के प्रति केंद्रित किया। बचपन में वो एक क्रिकेटर बनने का सपना देखा करते थे। जिसके लिए लंबाई चाहिए थी। अपनी लंबाई बढ़ाने के लिए कृष्णा ने तरह-तरह के व्यायाम और खेल खेलने शुरू किए लेकिन इससे उन्हें कोई फायदा नहीं हुआ। जिसके बाद कृष्णा ने पिता के कहने पर 2017 में जयपुर के एक स्टेडियम में बैडमिंटन खेलना शुरू किया।

पूरे दिन करते थे अभ्यास

अपनी प्रैक्टिस को मिस ना करना पड़े इसलिए कृष्णा नागर रोज अपने पिता के साथ बाइक पर बैठकर 13 किलोमीटर दूर स्टेडियम में जाते थे। वो वहां पर दिनभर बैडमिंटन का अभ्यास किया करते थे और शाम को बस से घर आते थे। 3 साल की इसी कड़ी मेहनत के बाद उन्हें टोक्यो पैरालंपिक में खेलने का अवसर मिला। जिसे उन्होंने स्वर्ण अवसर में बदल कर रख दिया।

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गोल्ड जीतने की प्रेरणा मिली

कृष्णा के पिता उन्हें खिलाड़ी बनाने के लिए 24 घंटे में महज साढ़े तीन घंटे सोया करते थे। वह सुबह चार बजे से पैसे कमाने के लिए लोगों को फिटनेस की ट्रेनिंग देते थे। पिता चाहते थे कि वह स्वर्ण पदक जीतें। कृष्णा नागर मैदान में गड्ढा खोदकर जंप लगाते थे। उनके पिता जूडो, ताईक्वांडो, बेसबॉल, सॉफ्टबॉल के खिलाड़ी रहे हैं। उनके चाचा फुटबॉल और दोनों बुआ भी खिलाड़ी रहे हैं। पिता फिजिकल ट्रेनर हैं। यही कारण है कि कृष्णा ने बचपन से ही खेल को अपना भविष्य बना लिया।

गोल्ड मेडल जीतकर नाम रौशन किया

कृष्णा नागर ने टोक्यो पैरालंपिक की बैडमिंटन प्रतियोगिता में अपने हुनर का जादू बिखेरा। उन्होंने SH6 फाइनल में हांगकांग के चु मान केइ को 21-17, 16-21, 21-17 से हरा कर भारत के लिये टोक्यो पैरालंपिक में गोल्ड मेडल जीतकर नया कीर्तिमान स्थापित किया है। यही नहीं इससे पहले कृष्णा 2018 में इंडोनेशिया के पैरा एशियन खेलों में कांस्य पदक और 2019 में स्विट्जरलैंड के बासेल में वर्ल्ड पैरालंपिक बैडमिंटन चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल भी जीत चुके हैं।

अपने कमजोरियों को अपनी ताकत बनाकर कृष्णा नागर ने अपनी सफलता की जो कहानी लिखी है वो काबिले तारीफ है।

Medha Pragati
Medha Pragati
मेधा बिहार की रहने वाली हैं। वो अपनी लेखनी के दम पर समाज में सकारात्मकता का माहौल बनाना चाहती हैं। उनके द्वारा लिखे गए पोस्ट हमारे अंदर नई ऊर्जा का संचार करती है।

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