तिरुवनंतपुरम की रहने वाली आदिवासी महिला श्रीमती लक्ष्मीकुट्टी जी। जिन्हें लोग जंगल की दादी के नाम से भी जानते हैं। लक्ष्मीकुट्टी जी ने हर्बल दवाओं के क्षेत्र में बेहतरीन काम किया है।
उन्होंने 500 से अधिक दवाएं बनाई हैं। इन दवाओं की मदद से हजारों लोगों का इलाज संभव हुआ है। लक्ष्मीकुट्टी खासतौर पर सांप के द्वारा काटे गए जख्मों का इलाज करने के लिए दवाओं का निर्माण करती हैं। आइये जानते है उनके बारे में।
अपनी माँ से सीखी थी दवाई बनाना
तिरुवनंतपुरम के कल्लार फॉरेस्ट एरिया में रहने वाली आदिवासी लक्ष्मीकुट्टी पिछले 50 साल से पारंपरिक औषधियों से लोगों का इलाज करती आ रही हैं। उन्हें यह ज्ञान अपनी मां से विरासत में मिला है। गांव के कई अन्य लोग इलाज के लिए कई किलोमीटर तक की यात्रा करते हैं, बीच रास्ते में वन्यजीवों से सामना करना होता है। जिसमें कई लोग जख्मी हो जाते हैं। आमतौर पर सांप के काटने पर यदि तुरंत इलाज न मिले तो मौत हो जाती है। बचपन में लक्ष्मीकुट्टी जी के भाई को सांप ने काटा लिया था, समय पर इलाज न मिलने के कारण उसकी मौत हो गई थी। इसलिए उनकी माँ ने यह काम शुरू किया।

लक्ष्मीकुट्टी ने संघर्ष किया
लक्ष्मीकुट्टी ने कई मुश्किलों का सामना करते हुए अपनी स्कूली शिक्षा ग्रहण की थी। वो कई किलोमीटर तक पैदल चलकर स्कूल जाती थी। लक्ष्मीकुट्टी जी की शादी 16 साल की उम्र में मथन कानिथा के साथ हो गई थी। उनके पति ने उनके काम में हमेशा उनका सहयोग किया। लक्ष्मीकुट्टी चाहती थी कि उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा प्राप्त हो ताकि वो भी समाज सेवा करें। लेकिन दुर्भाग्यवश उनके पति और बच्चों की मृत्यु हो गई।
काम को मिली पहचान
लक्ष्मीकुट्टी को नई पहचान तब मिली जब उनके काम पर ध्यान जंगल से बाहर रहने वाले व्यक्तियों का गया। उनके इसी काम के लिए उन्हें केरल सरकार की तरफ से नेचुरोपेथी के लिए नाटु वैद्या रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उसके बाद उनका काम बाहर के लोगों में भी प्रसिद्ध हो गया। लक्ष्मीकुट्टी स्वयं कहती है कि उससे पहले मुझसे मिलने सिर्फ़ वही लोग आते थे, जिन्हें मेरे बारे में मेरे पिछले मरीजों ने बताया हो। 1995 से पहले भी मुझे मिलने दूर दूर से लोग आते थे लेकिन पुरस्कार मिलने के बाद संख्या काफी बढ़ गयी।

कई सालों से सेवा
लक्ष्मीकुट्टी जंगलों के बीच एक आदिवासी गांव में ताड़ के पत्तों की छत वाली एक छोटी सी कुटिया में रहती हैं। जंगलों में आए दिन लोगों को सर्पदंश की घटनाओं से जूझना पड़ता है। ऐसे में लोगों के पास तत्काल में इलाज की कोई व्यवस्था भी नहीं होती है। वे सीधे ही लक्ष्मीकुट्टी के पास आ जाते हैं और वह अपनी हर्बल दवाओं से लोगों को ठीक कर देती हैं। लक्ष्मीकुट्टी पिछले 50 सालों से लोगों की जान बचा रही हैं। कोबरा जैसे खतरनाक सांपों का जहर शरीर से समाप्त करने की खोज अभी तक साइंस भी सही तरीके से नहीं कर पाया है, लेकिन लक्ष्मीकुट्टी ने अपनी दवाओं से इसे संभव कर दिखाया है।
जंगल में रहती है अकेले
50 साल तक गुमनामी में रहकर परंपरागत औषधीय पौधों को सहेजने वाली केरल की लक्ष्मीकुट्टी ने अपनी याददाश्त से करीब 500 से अधिक औषधियां बनाकर लोगों को नया जीवन दिया है। इसमें सांप व अन्य जहरीले वन्यजीवों द्वारा काटे जाने पर दी जाने वाली औषधियां भी शामिल हैं। दो साल पहले उनके पति का निधन हो गया था। वह जंगल में अकेली रहती हैं और औषधीय पौधों पर काम कर रही हैं।

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लक्ष्मीकुट्टी हुई सम्मानित
75 वर्षीय लक्ष्मीकुट्टी जी ने जंगलों में रहकर वहां के लोगों को सर्पदंश से बचाने के लिए कई हर्बल दवाओं का निर्माण किया है। आज उनकी दवाओं पर बाहर के लोग भी रिसर्च कर रहे हैं। यही कारण है कि समाज सेवा के क्षेत्र में अच्छा कार्य करने के लिए लक्ष्मीकुट्टी जी को भारत सरकार ने देश के चौथे सर्वोच्च सम्मान ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया है।