दुनिया में अपनी पहचान बनाने की कोई उम्र सीमा नहीं होती। इंसान की उम्र भी कुछ करने के जुनून के बीच में बाधा नहीं बनती। इस बात की प्रत्यक्ष उदाहरण है 80 साल की केरल की रहने वाली मीनाक्षी गुरुक्कल जिन्हें लोग प्यार से मीनाक्षी अम्मा कहते हैं। वह दिलेरी की जीती जागती मिसाल हैं। मीनाक्षी अम्मा मार्शल आर्ट कलारिपयाट्टू की एक्सपर्ट हैं। और इस उम्र में भी इसका नियमित अभ्यास करती हैं। उम्र के इस पड़ाव में भी उनका जोश देखते ही बनता हैं। वह 80 साल की उम्र में भी पूरे जोश से तलवारबाजी करती हैं। कलारिपयाट्टू तलवारबाजी और लाठियों से खेला जाने वाला केरल का एक प्राचीन मार्शल आर्ट हैं। मीनाक्षी ने इस आर्ट को आज भी जीवित रखा हुआ है। उनके इस कार्य के लिए भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान में से एक पद्मश्री सम्मान से नवाज़ा है। लेकिन मीनाक्षी अम्मा के लिए केरल के एक छोटे से गांव से निकलकर पद्मश्री सम्मान पाने तक का सफर तय करना इतना आसान नहीं था। आइए जानते हैं उनके जीवन का प्रेरणादायी सफर।
अपनी कला से युवाओं के भी छक्के छुड़ा देती हैं, मीनाक्षी अम्मा
मीनाक्षी अम्मा मार्शल आर्ट कलारिपयाट्टू में इतनी पारंगत हैं कि इस विद्या से युवाओं के भी छक्के बड़ी आसानी से छुड़ा देती हैं। मीनाक्षी अम्मा कलारिपयाट्टू का प्रशिक्षण भी देती हैं। इसलिए उन्हें गुरुक्कल यानि गुरु का दर्जा भी दिया गया है। वह पिछले कई वर्षों से लड़कियों को आत्मरक्षा के लिए प्रशिक्षित करती आ रही हैं। उन्होंने इसे ही अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया हैं। वह लड़कियों के साथ लड़को को भी मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग देती हैं। उनकी चुस्ती और स्फुर्ति को देख हर कोई हैरान रह जाता है।

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7 साल की उम्र में ही शुरू कर दिया था प्रशिक्षण लेना
केरल की रहने वाली मीनाक्षी अम्मा जब सात साल थी। तभी से उन्होंने इस कला का प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया था। आमतौर पर लड़कियां किशोरावस्था की उम्र में प्रवेश करते ही इस मार्शल आर्ट का अभ्यास छोड़ देती हैं। लेकिन उन्होंने अपने पिता की प्रेरणा से इस विद्या का अभ्यास करना जारी रखा। मीनाक्षी अम्मा इससे ताउम्र जुड़ी रहना चाहती हैं।

1949 से ही दे रही हैं निःशुल्क प्रशिक्षण
आज के समय में जब कला को सिखाने के लिए मोटी फीस वसूलना आम हो गया है। ऐसे समय में भी मीनाक्षी अम्मा संगम में कलारिपयाट्टू सिखाने के लिए कोई फीस नहीं लेती हैं। मीनाक्षी अम्मा ने 1949 में शुरू हुई इस परंपरा को आज भी जारी रखा हुआ है। कलारिपयाट्टू ताइची और कुंगफू जैसे अन्य मार्शल आर्ट्स से अलग हैं इसमें आप लड़ने के साथ ही खुद को बचाने और इसमें चोटिल होने पर अपना इलाज करना भी सीखते हैं।

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हजारों लोगों को कर चुकी हैं प्रशिक्षित
मीनाक्षी अम्मा अब तक हजारों लड़के-लड़कियों को मार्शल आर्ट सिखा चुकी हैं। वह कहती हैं कि जब मैं सात साल की थी तब मेरे पिता मुझे केलारी सिखाने ले गए थे। तब उनका बहुत विरोध हुआ था। आज परिस्थितियां ऐसी हो गई हैं कि लड़कियों का अकेले बाहर निकलना मुश्किल हो गया है। ऐसे में हर लड़की को आत्मरक्षा का प्रशिक्षण लेना ही चाहिए। इससे वह मजबूत बनती हैं और उनमें आत्मविश्वास भी आता है। मैंने अपनी बेटी और बहू को भी मार्शल आर्ट सिखाया है।

सोशल मीडिया के वायरल वीडियो से मिली पहचान
मीनाक्षी अम्मा के इस हुनर को उस वक्त नई और खास पहचान मिली। जब उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। इस वीडियो में मीनाक्षी अम्मा कलारिपयाट्टू में अपने से करीब आधी उम्र के एक पुरुष पर भारी पड़ती नजर आ रही थीं। मीनाक्षी अम्मा अपने इस हुनर को लड़कियों की सुरक्षा के लिए वरदान मानती हैं। वह कहती हैं कि – ‘आज जब लड़कियों के देर रात घर से बाहर निकलने को सुरक्षित नहीं समझा जाता और इस पर सौ सवाल खड़े किए जाते हैं। कलारिपयाट्टू ने उनमें इतना आत्मविश्वास पैदा कर दिया है, कि उन्हें देर रात भी घर से बाहर निकलने में किसी प्रकार की झिझक या डर महसूस नहीं होती।’

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पद्मश्री सम्मान से हुईं सम्मानित ।
अपने मार्शल आर्ट के हुनर से हर किसी को अपना फैन बनाने वाली मीनाक्षी अम्मा के कार्यों को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान में से एक पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया है। पद्मश्री मिलने पर मार्शल आर्ट गुरु मीनाक्षी अम्मा कहती हैं कि, “मैं यह नहीं कह सकती कि पद्म पुरस्कार जीतना मेरा सपना पूरे होने जैसा है”, क्योंकि कभी भी मेरे दिल या दिमाग में ऐसा कोई पुरस्कार जीतने का कोई ख्याल नहीं आया। वह इसका श्रेय अपने दिवंगत पति राघवन गुरुक्कल को देती हैं, जो उन्हें कलारिपयाट्टू सिखाने वाले उनके गुरु भी थे।
मीनाक्षी अम्मा ने एक ऐसी कला से अपनी पहचान बनाई है, जो अधिक लोकप्रिय नहीं है। सात साल की उम्र से इस कला का प्रशिक्षण हासिल करने वाली मीनाक्षी अम्मा आज लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत है।