प्रकृति से ही सम्पूर्ण मानव जाति जीवित है। उनकी देखभाल करना हमारा फर्ज है। आज हम आपको एक ऐसी महिला के बारे में बताएंगे जिनका प्रकृति प्रेम अद्भुत था। उनके ससुराल के ताने भी नहीं डिगा पाए उनके हौसले को, 8000 से ज्यादा पौधे लगाने वाली ‘वृक्षमाता’ के नाम से मशहूर ‘सालूमरदा थिमक्का’ पद्मश्री सम्मान से भी हुईं सम्मानित।
कहते है कि एक औरत जितनी कोमल और दयालु होती है उतनी ही सशक्त और मजबूत भी होती है। इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण है कर्नाटक की सबसे उम्रदराज पर्यावरणविद् सालूमरदा थिमक्का। साधारण सी दिखने वाली यह महिला आज अपने कार्यों से पूरे देश को गौरवान्वित महसूस करा चुकी हैं। सालूमरदा थिमक्का ने धरती मां की रक्षा के लिए अपनी पूरी जिंदगी को समर्पित कर दिया है। 107 साल की सालूमरदा ने पिछले 66 सालों में 8000 से ज्यादा पौधे लगाए हैं, जिसमें बरगद के 400 से भी ज्यादा पेड़ हैं। उनके इस अद्भुत कार्य को देखते हुए सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानिति किया है। सालूमरदा थिमक्का को रिकॉर्ड पेड़ लगाने की वजह से ही यह नाम मिला है जिसका अर्थ ‘पेड़ों की एक कतार’ होता है। लेकिन सालूमरदा थिमक्का के लिए यह सफर इतना आसान नहीं था, ससुराल वालों के ताने सुनकर पेड़- पौधों को ही अपना बच्चा मानना सालूमरदा थिमक्का के लिए काफी कठिनाई भरा था। आइए जानते हैं, उनके जीवन का प्रेरणादायी सफर।
ससुराल वालों के तानें भी नहीं बन सके बाधा
दक्षिण भारत का बच्चा- बच्चा आज सालूमरदा थिमक्का के नाम से वाकिफ है। कर्नाटक के गुब्बी तालुक (तुमकुरु) जिले के एक गरीब परिवार में जन्मी सालूमरदा थिमक्का ने छोटी सी उम्र में ही मजदूरी करना शुरू कर दिया था। उन्होंने स्कूली शिक्षा हासिल नहीं की। उनका विवाह कर्नाटक के रामनगर जिले के मजदूर चिककैया से हुआ। उनके अपने कोई बच्चे नहीं थे जिसकी वजह से उन्हे ससुराल में काफी ताने सुनने को मिले थे। सालूमरदा जब लगभग 40 वर्ष की थी तो लोगों के ताने सहन करते- करते उनके मन में कई बार आत्महत्या का विचार भी आया लेकिन उनके पति ने उनका पूरा साथ दिया और उन्हें वृक्षारोपण की सलाह दी। जिसके बाद सालूमरदा ने ससुराल वालों के तानों की परवाह नहीं की औऱ पेड़- पौधों को ही अपनी संतान मान लिया। सालूमरदा ने अपने पति के साथ मिलकर रामनगर डिस्ट्रिक्ट के हुलीकल और कुडूर तालुक के बीच बर्गद के पेड़ लगाए और बच्चों की तरह उनकी देखभाल करनी शुरू की।
At the Padma awards ceremony, it is the President’s privilege to honour India’s best and most deserving. But today I was deeply touched when Saalumarada Thimmakka, an environmentalist from Karnataka, and at 107 the oldest Padma awardee this year, thought it fit to bless me pic.twitter.com/Ihmv9vevJn
— President of India (@rashtrapatibhvn) March 16, 2019
अपने बच्चों की तरह करती हैं पेड़- पौधों की देखभाल
सालूमरदा पेड़- पौधों की ही अपना बच्चा मानती हैं। वो हर पेड़ की देखभाल ऐसे करती हैं जैसे मां अपने बच्चे की करती है। सालूमरदा ने पेड़- पौधों की देखभाल के लिए खुद पैसे खर्च किए और पौधों की दिन- रात देखरेख की। सालूमरदा के पति उनके साथ पौधों को पानी देने के लिए आया करते थे। साल 1991 में उनके पति की मौत हो गई, लेकिन इस नेक काम को उन्होंने पति की मौत के बाद भी जारी रखा। उन्होंने अपना पूरा जीवन पेड़- पौधों के नाम ही कर दिया है। थिमक्का ने औपचारिक शिक्षा हासिल नहीं की है फिर भी पेड़- पौधों के बारे में उन्हें बहुत अच्छी जानकारी है। पति की मृत्यु के बाद उन्होंने एक लड़के को गोद ले लिया जिसे वह पर्यावरण से प्रेम करने के लिए प्रेरित करती हैं।
पौधों को समर्पित करने वाली सालुमरादा कही जाती हैं वृक्षमाता
सालुमरादा पिछले 70 सालों से पेड़- पौधों की सेवा कर रही हैं। सालूमरदा का परिवार अपनी जीविका उन पैसों से चला रहा है, जो उन्हें निजी तौर पर उन ऑर्गनाइजेशन्स से मिलीं, जिनकी तरफ से सालुमरादा को सम्मानित किया गया था। यही नहीं प्रकृति व पेड़ों के प्रति उनके लगाव को देखते उन्हें “वृक्षमाता” की उपाधि मिली हैं। 103 साल की हो चुकीं सालूमरदा ने अपना पूरा जीवन ही पेड़- पौधों के नाम कर दिया है। सालुमरादा काफी गरीब हैं उनका जीवन सरकार की 500 रुपए की पेंशन पर चल रहा है। इसके बावजूद उन्होंने 384 पेड़ लगा रखे हैं, वह यह पौधे मॉनसून के समय लगाती हैं ताकि पानी की कोई समस्या न हो।
Moment of the Day!
— RK Sinha, Founding Member, BJP (@RKSinhaBJP) March 16, 2019
Loved the way she blessed President Kovind while receiving #PadmaShri.
Saalumarada Thimmakka has earned the nickname of 'Vriksha Mathe (mother of trees)' for planting 8,000 trees. pic.twitter.com/tZguQyGG9l
पद्मश्री सहित कई सम्मान से हो चुकीं है सम्मानित
सालूमरदा थिमक्का ने पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए जो योगदान दिया है, उसकी जितनी तारीफ की जाए, कम ही है। उनके कार्यों को देखते हुए उन्हें अब तक कई सम्मान से सम्मानित किया जा चुका हैं। साल 2016 में सालूमरदा थिमक्का को “ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन(BBC)” ने दुनिया की सबसे प्रभावशाली व प्रेरणादायक महिलाओं की सूची में शामिल किया था। यही नहीं सालूमरदा थिमक्का के अद्भुत कार्यों को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान में से एक पद्मश्री सम्मान से भी सम्मानित किया है। सालूमरदा थिमक्का अपने पति की याद में अपने गांव में एक अस्पताल बनाना चाहती हैं। अस्पताल खोलने के उद्देश्य से उन्होंने एक ट्रस्ट की स्थापना भी की हैं।
सालूमरदा थिमक्का का संपूर्ण जीवन आज लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत है। 107 वर्ष की उम्र में भी उनका हौसला नौजवानों को भी फेल कर देता है। सालूमरदा थिमक्का ने अपनी मेहनत और लगन से अपनी सफलता की कहानी लिखी है। प्रकृति को सुरक्षित रखने के लिए आज सालूमरदा थिमक्का जैसी शख्सियत की बहुत जरूरत है।