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Sunday, April 2, 2023

जानिए शांति देवी को, समाज सेवा में इनके कर्मों के कारण मिल चुका है पद्मश्री

इस संसार में ऐसा कुछ भी नहीं है जो कि आप अपने साथ लेकर जाएंगे। आप सिर्फ कुछ देने के लिए यहां पर आए हैं। आप कुछ ऐसा करने के लिए आए हैं जो सबके लिए कल्याणकारी हो। इसलिए हमें बिना किसी लोभ-लालच के सेवा में लगे रहना चाहिए। इस दुनिया में बहुत कम लोग ऐसे जन्म लेते हैं जो अपना संपूर्ण जीवन दूसरों की सेवा करने के लिए समर्पित कर देते हैं। एक ऐसी ही शख्सियत हैं जो एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं। आईये जानते है इनके बारें में।

पिछले साठ वर्षों से यह महिला नेता समाज सेवा को अपने जीवन का मुख्य उद्देश्य बनाए हुए है। समाज सेवा के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान की वजह से इन्होंने पूरे देश में अपने लिए एक विशेष पहचान बनाई है। वह सैंकड़ों आदिवासी महिलाओं और गरीब अनाथ बच्चों का भरण-पोषण कर रही हैं। इस अद्भुत कार्यों के लिए शांति देवी को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। लेकिन शांति देवी के लिए इन उत्कृष्ट कार्यों को करना इतना आसान नहीं था।आइए जानते हैं कैसे बनी शांति देवी पूरे देश के लिए संघर्ष और प्रेरणा की जीवंत उदाहरण।

60 सालों से कर रही हैं समाज सेवा

शांति देवी पिछले 60 साल से समाज सेवा का उत्कृष्ट कार्य कर रहीं है। सामाजिक कार्यों में उनका योगदान केवल रायगडा जिले तक ही सीमित नहीं है। बल्कि उनकी ख्याति ओडिशा राज्य के बाहर भी फैली हुई है। वह अनाथ बच्चों के लिए कार्य करती हैं। शांति देवी जो मूल रूप से भूदान आंदोलन और ‘सत्याग्रह’ आंदोलन से जुड़ी थीं। बाद में एक सौ इकतीस (131) अनाथ बच्चों को एक मां की तरह आश्रय देकर उनकी देखभाल करती हैं।

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बचपन से ही अन्याय के खिलाफ उठाती थी आवाज

18 अप्रैल 1934 को ओड़िशा के बालासोर के एक जमींदार परिवार में जन्मी शांति देवी का विवाह 1951 में सामाजिक कार्यकर्ता डॉ रतन दास के साथ हुआ था। बचपन से ही उन्हें समाज में देखे जाने वाले अन्याय, अत्याचारों और उत्पीड़न के कृत्यों का विरोध करने की आदत हो गई थी। अपने बाद के जीवन में वह गांधीवादी दर्शन से प्रभावित थीं। और गोपबंधु चौधरी द्वारा स्थापित और प्रबंधित ‘गांधी आश्रम’ में शामिल हो गईं। शादी के मुश्किल से चार महीने बाद वह गुनुपुर शहर आई थी। वह वर्ष 1951 में अविभाजित कोरापुट जिले में व्याप्त भीषण सूखे की स्थिति से प्रभावित लोगों को राहत सामग्री वितरित करने के लिए वहां आई थीं।

पति की मृत्यु के बाद भी नहीं बदला समाज सेवा का रास्ता

शांति देवी के पति स्वर्गीय डॉ रतन दास भूदान आंदोलन के प्रणेता थे। शांति देवी ने अपने पति की तरह समाज सेवा करने का निर्णय लिया। यहां तक कि उनकी मृत्यु के बाद भी शांति देवी टूटीं नहीं बल्कि समाज सेवा के कार्य करती रहीं। समाज सेवा करना ही उन्होंने अपना एकमात्र रास्ता बना लिया था।

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अनाथ बच्चों के रहने के लिए बनाए आश्रम

अनाथ बच्चों की मां कही जाने वाली शांति देवी ने अनाथ बच्चों को आश्रय प्रदान करने के लिए रायगडा जिले के गुनुपुर, पद्मपुर ब्लॉक के जबरगुडा और नुआपाड़ा मे ‘आश्रम’ (अनाथालय) स्थापित किए हैं। वह अनाथ बच्चों को लाती हैं, उन्हें आश्रय देती हैं, और उनकी देखभाल करती हैं। उनकी औपचारिक शिक्षा की व्यवस्था करने के अलावा वह उन्हें नैतिक शिक्षा भी सिखाती हैं ताकि वह बड़े होकर समाज में सम्मान के साथ रह सकें। इतना ही नहीं वह कई अनाथ लड़कियों की शादी में भी योगदान दे चुकी हैं। उनकी नैतिक शिक्षाओं के कारण, कई बच्चे जीवन में बड़े हुए हैं और आज विभिन्न संगठनों में अच्छी तरह से स्थापित हैं। वह संत विनोवा भावे से प्रभावित थीं।

संत विनोभा भावे से मुलाकात के बाद बदली जिंदगी

शांति देवी के जीवन में विशेष मोड़ तब आया जब वह संत विनोभा भावे से मिली। उसके बाद उनके जीवन ने एक अलग मोड़ लिया। आदिवासी बहुल यह इलाका उनका कार्यक्षेत्र बन गया। शांति देवी ने 1952 में अविभाजित कोरापुट जिले में जारी भूमि सत्याग्रह आंदोलन से खुद को जोड़ा। फिर उन्होंने आदिवासी लोगों की भूमि को मुक्त करने के लिए खुद को व्यस्त कर लिया। जिसे जमींदारों ने जबरन हड़प लिया था। बाद में वह बोलांगीर, कालाहांडी और संबलपुर जिलों में भूदान आंदोलन में शामिल हो गईं। उन्होंने गोपालबाड़ी में आश्रम में भूदान कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दिया, जिसे मालती देवी (ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री नबा कृष्ण चौधरी की पत्नी) द्वारा स्थापित किया गया था। उस अवधि के दौरान उन्होंने आजीवन कारावास की सजा काट रहे लगभग 40 आदिवासी लोगों की रिहाई के लिए भी काम किया था।

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पद्मश्री सहित कई सम्मान से हुई हैं सम्मानित

शांति देवी ने पिछले साठ वर्षों से खुद को पूरी तरह से समाज सेवा की गतिविधियों में लगा रखा है। शांति देवी को उनके महान कार्यों के लिए कुछ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों से कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं। वह कहती हैं कि किसी भी पुरस्कार से ज्यादा, गरीब बच्चों के चेहरे पर खुशी उन्हें अधिक आत्म-संतुष्टि देती है। यही नहीं उनके इस महान कार्यों के लिए उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया है।

शांति देवी ने आदिवासी महिलाओं और बच्चों के लिए काम करने के लिए अपना जीवन समर्पित किया है। उन्होंने आज जिस तरह से अनाथ बच्चों को मां का प्यार दिया है, समाज सेवा का जो कार्य किया है, वह वाकई तारिफ के काबिल है। शांति देवी आज लाखों लोगों के लिए प्रेरणा है। उनकी सफलता की कहानी हर किसी को प्रेरित करने वाली है।

Sunidhi Kashyap
Sunidhi Kashyap
सुनिधि वर्तमान में St Xavier's College से बीसीए कर रहीं हैं। पढ़ाई के साथ-साथ सुनिधि अपने खूबसूरत कलम से दुनिया में बदलाव लाने की हसरत भी रखती हैं।

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