बहुत कम लोग होते है जो दूसरों की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझते हैं। ऐसे लोग समाज को नई दिशा प्रदान करते हैं। अपने उत्कृष्ट सोच के साथ वो निरंतर देश के विकास में सहायक होते हैं।
आज हम आपको एक ऐसी ही महिला के बारे में बताएंगे जिन्होंने सब्जी बेचकर, दूसरों के जूते पॉलिश करके एक चैरिटेबल अस्पताल खोला। इस नेक कार्य के लिए सरकार द्वारा सम्मानित भी किया गया है। आइये जानते है इस नेक महिला के बारे में।
सुभषिनी मिस्त्री का परिचय
पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले की रहने वाली सुभाषिनी मिस्त्री जी कभी स्कूल नहीं गई। उनके परिवार में सभी लोग अनपढ़ थे। उन्होंने ऐसे समय में जन्म लिया था जब लड़कियों को स्कूल भेजने का रिवाज नहीं था। उनके घर के आस-पास कोई अस्पताल भी नहीं था। जिसके कारण घर पर ही छोटी-मोटी बीमारियों का इलाज किया जाता था।

छोटी उम्र में हुआ विवाह
सुभाषिनी मिस्त्री का मात्र 12 साल की छोटी सी उम्र में विवाह हो गया। उनका सुसराल भी मायके की तरह ही गरीब था। वहां की भी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। उनके पति मजदूरी किया करते थे। जिससे घर का गुजारा बड़ी मुश्किल से हो पाता था।
पति की हो गई मृत्यु
मात्र 21 साल की उम्र में 4 बच्चों की मां बन चुकी सुभाषिनी मिस्त्री जी के पति का 23 साल की उम्र अचानक तबीयत खराब हो गई। अस्पताल में इलाज कराने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे। उनके पति आंत्रशोथ मामूली सी बीमारी से ग्रस्त थे। अगर उनके पास पैसे होते तो उन्हें समय पर इलाज मिल जाता। लेकिन पैसे और इलाज की कमी के कारण उनके पति की मृत्यु हो गई।

दूसरों के घरों मे किया काम
सुभाषिनी मिस्त्री जी घर चलाने के लिए दूसरों के घरों में चौका-बर्तन करने लगीं। वो अपने बच्चों को पढ़ाना चाहती थीं मगर हालात ऐसे नहीं थे कि उन्हें स्कूल भेज पातीं। चौका-बर्तन से इतने पैसे नहीं मिलते थे कि गुजारा हो पाता। इसलिए वह मजदूरी करने लगीं। सुभाषिनी जी ने तय किया कि वो अपने बच्चों को डॉक्टर बनाएंगी। यहीं से उन्होंने अपनी स्थिति सुधारने की ठान ली।
सब्जी बेचकर बचाए पैसे
सुभाषिनी मिस्त्री जी काम की तलाश में बच्चों के संग गांव छोड़कर धापा इलाके में आ गईं। यह लैंडफिल वाला इलाका था, पर बडे़ पैमाने पर सब्जी की खेती भी होती थी। वह सड़क किनारे दुकान लगाकर सब्जी बेचने लगीं। कुछ समय कचरा बीनने का काम भी किया। इस बीच बैंक में अपना खाता खोला। घर के खर्च से कुछ पैसे बचाकर वहां जमा करने लगीं। 20 साल तक वो ऐसे ही तरह-तरह के काम करके पैसे जोड़ने लगी।

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खोला मुफ्त अस्पताल
सब्जी बेचकर, दूसरों के जूते साफ करके जो पैसे सुभाषिनी मिस्त्री ने बचाए थे उससे उन्होंने एक अस्पताल खोलने का विचार किया। उन्होंने अस्पताल के लिए एक बीघा जमीन खरीदी। वह जानती थीं कि अस्पताल के निर्माण के लिए आर्थिक मदद की जरूरत होगी। इसलिए 1993 में ह्यूमिनिटी ट्रस्ट बनाया। इसी जमीन पर छप्पर डालकर बेटे ने अस्थाई क्लीनिक खोला। यहां आम मरीजों से बहुत कम पैसे लिए जाते थे और गरीबों का इलाज फ्री में किया जाता था। उनका बेटा और वो दोनों मिलकर इस अस्पताल की देख-रेख करते हैं।
सरकार ने किया सम्मानित
सुभाषिनी मिस्त्री जी के संघर्ष और उनके सामाजिक कार्यों को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान में से एक पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया है। सुभाषिनी मिस्त्री जी ने गरीबों के मुफ्त इलाज के लिए जिस संघर्ष से अस्पताल खोला है वो बेहद प्रशंसनीय है।
इस नेक कार्य के लिए सुभाषिनी मिस्त्री जी का जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है।