जिंदगी में सबसे आसान काम होता है हार मानना। इसीलिए हममें से ज्यादातर लोगों की आदत बन जाती है बिना कोशिश और पूरी मेहनत किए नतीजों को पहले से सोचकर बैठ जाना।
लेकिन हमेशा इस बात को ध्यान में रखें कि ज़िंदगी में हार मानना परेशानी का हल नहीं बल्कि इससे दिक्कतें और भी बढ़ती जाती हैं। खुश रहने के लिए हार नहीं बल्कि समस्या का सामना करना चाहिए। आज हम आपको एक ऐसे इंसान की कहानी बताएंगे जिन्होंने अपने जीवन में तमाम परेशानियों के बाद भी हार नही मानी और इसी सोच के साथ उन्होंने पैरालंपिक में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया है। आइये जानते है उनके बारे में।
सुमित अंतिल का परिचय
सुमित ने एक हादसे में अपना एक पैर गंवा दिया था। यही नहीं मात्र 7 साल की उम्र में ही उनके सिर से पिता का साया भी उठ गया लेकिन सुमित ने अपने हालातों के आगे घुटने नहीं टेके। उन्होंने अपनी परिस्थितियों का डटकर सामना किया और अपनी मेहनत की बदौलत टोक्यो पैरालंपिक में भाला फेंक प्रतियोगिता में गोल्ड जीतकर इतिहास रच दिया। सुमित अंतिल कभी योगेश्वर दत्त की तरह रेसलर बनना चाहते थे। लेकिन उन्होंने दिव्यांग होने के बाद अपने हौसले को नहीं खोया और जैवलिन थ्रो के जरिए भारत का नाम पूरे विश्व में रोशन कर दिया।

बचपन संघर्षों में बीता
7 जून 1998 को हरियाणा के सोनीपत के एक सामान्य परिवार में जन्में सुमित अंतिल का बचपन बहुत संघर्षों में बीता। सुमित के पिता एयरफोर्स में काम करते थे। सुमित जब सात साल के थे, तभी बीमारी के कारण उनके पिता की मौत हो गई। सिर से पिता का साया उठने के बाद उनकी मां ने गरीबी और दुख सहन करते हुए अपने चारों बच्चों का पालन पोषण किया। सुमित चार भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। किसी तरह उनकी मां ने अपने बच्चों को शिक्षा दिलाई और उनका पालन-पोषण किया।
हादसे में बदल गई जिंदगी
पिता का साया सिर से उठने के बाद सुमित किसी तरह से जीवन को सामान्य करने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन इसी बीच एक ऐसा हादसा हुआ की उनकी पूरी जिंदगी बदल गई। साल 2015 में सुमित अंतिल जब 12वीं कक्षा में कॉमर्स का ट्यूशन लेते थे। उस समय एक दिन शाम को वह ट्यूशन लेकर बाइक से वापस घर आ रहे थे, तभी सीमेंट के कट्टों से भरी ट्रैक्टर-ट्रॉली ने सुमित को टक्कर मार दी और वो काफी दूर तक घसीटते हुए चले गए। इस हादसे में सुमित को अपना एक पैर गंवाना पड़ा। कई महीनों तक अस्पताल में भर्ती रहने के बाद उनकी मां 2016 में सुमित को पुणे ले गईं जहां उन्होंने नकली पैर लगवाया।

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आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली
सुमित योगेश्वर दत्त की तरह कभी रेसलर बनना चाहते थे। लेकिन खुद के साथ हादसा हो जाने के बाद उन्होंने अपना यह सपना तोड़ दिया। लेकिन उन्होंने उम्मीद नहीं खोई और खुद को जैवलिन थ्रो की ओर मोड़ा। जैवलिन थ्रो के गुर सीखने के लिए सुमित ने साई सेंटर में एडमिशन लिया। वहां उनका मार्गदर्शन सिल्वर मेडल विजेता कोच वीरेंद्र धनखड़ ने किया और उन्हें लेकर सुमित दिल्ली पहुंचे। दिल्ली में सुमित ने द्रोणाचार्य अवॉर्डी कोच नवल सिंह से जैवलिन थ्रो के गुर सीखे।
चैंपियनशिप के जरिए बनाई पहचान
सुमित अंतिल ने साल 2018 में एशियन चैंपियनशिप में भाग लिया, लेकिन पांचवीं रैंक ही प्राप्त कर सके। इसके बाद 2019 में वर्ल्ड चैंपियनशिप में उन्होंने सिल्वर मेडल जीता। सुमित यहीं नहीं रूके और इसी साल नेशनल गेम्स में गोल्ड मेडल जीतकर खुद को साबित किया। उन्होंने 2019 के पेरिस ओपन हैंडीक्राफ्ट में सिल्वर मेडल भी जीता। 2019 में ही दुबई में हुए वर्ल्ड पैरा-एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भी सुमित सिल्वर जीतने में सफल रहे थे। जिसके बाद सुमित अपनी एक अलग पहचान बनाने में कामयाब हुए।

गोल्ड जीतकर रच दिया इतिहास
सुमित अंतिल ने साल 2019 में हुई विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में रजत पदक अपने नाम किया। इसी के साथ सुमित अंतिल ने टोक्यो पैरालंपिक के लिए क्वालीफाई किया था। मार्च 2021 में सुमित अंतिल ने राष्ट्रीय पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में एफ 44 वर्ग में रिकॉर्ड 66.90 मीटर की दूरी तक भाला फेंका था। जिसके बाद टोक्यो पैरालंपिक में सुमित अंतिल ने जैवलिन थ्रो में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया। अपने प्रदर्शन के दौरान सुमित अंतिल ने पहले ही प्रयास में अपना ही विश्व रिकॉर्ड तोड़ा। उन्होंने पहले प्रयास में 66.95 मीटर तक भाला फेंका।
इतनी परेशानियों के बाद सुमित ने अपने लक्ष्य का पीछा किया और उसे पाकर ही दम लिया। सुमित से लोगों को सीखने की आवश्यकता है।