हम आज कागज बनाने से लेकर कपड़ों के लिए पेड़ों को काटते हैं। पर क्या हमने कभी यह सोचा है कि इससे हमारे पृथ्वी के वातावरण पर क्या असर होता है। इसका छोटा सा उदाहरण है बढ़ती गर्मी। पेड़ों के काटने से आज गर्मी इतनी बढ़ चुकी है की अब इसे बर्दास्त करना मुश्किल हो गया है। इसे रोकने का सिर्फ एक तरीका है और वह है पेड़ को बचाना।
आज हम आपको एक ऐसी ही महिला के बारे में बताएंगे जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन केवल प्रकृति की रक्षा करने और इसे स्वच्छ रखने के लिए समर्पित कर दिया है। इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण हैं 74 साल की तुलसी गौड़ा। जिनके लिए पेड़-पौधे ही उनके बच्चे हैं। छोटी झाड़ियों वाले पौधे से लेकर लंबे पेड़ों को कब कैसी देखभाल की जरूरत है वह इसे अच्छी तरह से समझती हैं। इसीलिए इन्हें जंगल की एन्सायक्लोपीडिया भी कहा जाता है। आइए जानते हैं उनके बारे में।
संघर्ष के बीच बीता बचपन
कर्नाटक के होनाल्ली गांव की रहने वाली 74 वर्षीय तुलसी गौड़ा एक आम आदिवासी महिला हैं। बचपन में उनके पिता चल बसे थे। जिसके बाद उन्होंने छोटी उम्र से मां और बहनों के साथ काम करना शुरू कर दिया था। इसकी वजह से वह कभी स्कूल नहीं जा पाईं और पढ़ना-लिखना नहीं सीख पाईं। 11 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई पर उनके पति भी ज़्यादा दिन ज़िंदा नहीं रहे। लेकिन संघर्ष के आगे उन्होंने कभी हार नहीं मान। अपनी ज़िंदगी के दुख और अकेलेपन को दूर करने के लिए ही तुलसी ने पेड़-पौधों का ख्याल रखना शुरू किया।

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कभी नहीं गईं विद्यालय
तुलसी गौड़ा कभी स्कूल नहीं गईं और ना ही उन्हें किसी तरह का किताबी ज्ञान है। लेकिन प्रकृति के प्रति उनके पास अथाह प्रेम है। वह पेड़-पौधों को अपने बच्चें की तरह समझती हैं। उनके पास भले ही कोई शैक्षणिक डिग्री नहीं है, लेकिन प्रकृति से जुड़ाव के बल पर उन्होंने वन विभाग में 14 वर्षों तक नौकरी की।

अपने ज्ञान से बड़े-बड़े विशेषज्ञों को भी कर दिया है हैरान
उन्होंने अपने ज्ञान से बड़े-बड़े विशेषज्ञों तक को हैरान कर दिया था। फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के अधिकारी उनके इस काम से अत्यंत आश्चर्यचकित हुए क्योंकि उनके लगाए पौधों में अलग-अलग किस्म के पौधे थे जो हरे-भरे थे। उनका लगाया एक भी पौधा सूखा नहीं था। छोटे पौधों के बारे में उनकी नॉलेज ने अफसरों तक को सोच में डाल किया। नौकरी के दौरान उन्होंने हजारों पौधे लगाए जो आज वृक्ष बन चुके हैं। रिटायरमेंट के बाद भी वह पेड़- पौधों को जीवन देने में जुटी हुई हैं। अपने जीवनकाल में अब तक वह एक लाख से भी अधिक पौधे लगा चुकी हैं।

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अपने जीवन में लगा चुकी हैं हर तरह के पौधे
तुलसी गौड़ा ने बेहद कम उम्र में पौधा रोपण की शुरुआत ऐसे पेड़ों से की जो अधिक लंबे थे और हरियाली फैलाने के लिए जाने जाते थे। धीरे-धीरे उन्होंने कटहल, अंजीर और दूसरे बड़े पेड़ों लगाकर जंगलों में पौधारोपण शुरु किया। आमतौर पर एक सामान्य व्यक्ति अपने संपूर्ण जीवनकाल में एकाध या दर्जन भर से अधिक पौधे नहीं लगाता है। लेकिन तुलसी को पौधे लगाने और उसकी देखभाल में अलग किस्म का आनंद मिलता है। आज भी उनका पर्यावरण संरक्षण का जुनून कम नहीं हुआ है। तुलसी गौड़ा की खासियत है कि वह केवल पौधे लगाकर ही अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो जाती हैं। बल्कि पौधारोपण के बाद उस पौधे की तब तक देखभाल करती हैं, जब तक वह अपने बल पर खड़ा न हो जाए। वह पौधों की अपने बच्चों की तरह सेवा करती हैं।

जंगलों की कटाई देख मिली पौधा लगाने की प्रेरणा
जीवन के जिस दौर में लोग अमूमन बिस्तर पकड़ लेते हैं। उस उम्र में भी तुलसी सक्रियता से पौधों को जीवन देने में जुटी हुई हैं। तुलसी गौड़ा पर पौधरोपण का जुनून तब सवार हुआ, जब उन्होंने देखा कि विकास के नाम पर निर्दोष जंगलों की कटाई की जा रही है। यह देख वह इतनी परेशान हो गईं कि उन्होंने पौधरोपण का सिलसिला शुरू कर दिया। एक अनपढ़ महिला होने के बावजूद वह समझती हैं कि पेड़-पौधों का संरक्षण किए बगैर खुशहाल भविष्य की कल्पना नहीं की जा सकती है। लिहाजा अपने स्तर से इस काम में जुटी हुई हैं। वह पेड़-पौधों की देखभाल एक मां की तरह करती हैं। अपने जीवन में वह अब तक कई जगहों को हरियाली पूर्ण बना चुकी हैं।
कही जाती हैं जंगल की एन्साइक्लोपीडिया
तुलसी गौडा अपने क्षेत्र के हर जंगल को अपने हाथ की लकीरों से अच्छा पहचानती हैं। इसलिए उन्हें जंगलों का ‘एन्साइक्लोपीडिया’ कहा जाता है। उन्हें हर तरह के पौधों के फ़ायदे के बारे में पता है। किस पौधे को कितना पानी देना है, किस तरह की मिट्टी में कौन-से पेड़-पौधे उगते हैं, यह सब उनकी उंगलियों पर है। वह जंगलों और पेड़ों की भाषा समझती हैं। उन्हें पेड़ों के अंकुरन, उनके जीवन की भाषा समझ में आती है। वह ये सब विज्ञान की भाषा में समझा नहीं सकतीं लेकिन उन्हें सब कुछ मालूम है। यही उनकी सबसे बड़ी खूबी है।

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पद्मश्री सहित कई सम्मान से की जा चुकी हैं सम्मानित
पर्यावरण के प्रति अपने अथाह प्रेम और कार्य के परिणामस्वरूप तुलसी गौड़ा कई सम्मान से सम्मानित हो चुकी हैं। पर्यावरण को सहेजने के लिए उन्हें इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र अवॉर्ड, राज्योत्सव अवॉर्ड, कविता मेमोरियल समेत कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। उनके कार्यों को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान से भी नवाजा हैं। तुलसी गौड़ा एक ऐसी महिला हैं जिसके अपने बच्चे नहीं हैं, लेकिन अपने द्वारा लगाए गए लाखों पौधों को ही अपना बच्चा मानती हैं। और उनकी बेहतर ढंग से परवरिश भी करती हैं।
तुलसी गौडा जैसे लोगों के प्रयासों से पर्यावरण की रक्षा कुछ हद तक हो पाई है। आज समाज को तुलसी गौड़ा जैसे लोगों की बहुत जरूरत है। अपने संघर्ष से सफलता की कहानी लिखने वाली तुलसी गौड़ा का संपूर्ण जीवन ही एक मिसाल है।