त्यौहारों में दुर्गा पूजा का विशेष महत्व है। इस पर्व के दौरान माँ दुर्गा के नौ रूपों की नौ दिनों तक पूजा की जाती है।
माँ दुर्गा की पूजा बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। इन नौ दिनों के बाद दसवें दिन को दशहरे के रूप में मनाया जाता है। पर आज हम आपको दुर्गा पूजा के एक रहस्य के बारे में अवगत कराएंगे। जो रहस्य दुर्गा माता की प्रतिमा से जुड़ा है। आइये जानते हैं इसके बारे में।
पश्चिम बंगाल में माता की विशेष पूजा
पश्चिम बंगाल का दुर्गा पूजा पूरे देश में प्रसिद्ध है। यहाँ भव्य तरीके से दुर्गा पूजा का आयोजन होता आया है। माता की पूजा यहाँ बड़े नियम से की जाती है। बंगाल में यह महोत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इसकी चर्चा पूरे देश में होती है। पश्चिम बंगाल के श्रद्धालु भी माता की पूजा पूरे तन, मन, और धन से करते हैं।

माता की प्रतिमा में वेश्यालय की मिट्टी
जी हां आपने सही सुना पश्चिम बंगाल में दुर्गा माँ की प्रतिमा में वेश्यालय की मिट्टी मिलाया जाता है। इस मिट्टी के बिना प्रतिमा अधूरी मानी जाती है। मां की बनाई गई मूर्ति कोलकाता के सोनागाछी से खरीदी गई मिट्टी से ही बनाई जाती है। यह कोलकाता का रेड लाइट एरिया है, जहां वेश्याएं अपना जीवन-यापन करने के लिए बुरे कर्मों में लीन रहती हैं।

मिट्टी के बिना पूजा पूर्ण नही
अगर किसी प्रतिमा में इस मिट्टी का उपयोग नही होता है तो पूजा पूर्ण नही मानी जाती है। दुर्गा माँ इस पूजा को स्वीकार भी नही करती हैं। इसलिए दुर्गा माँ के प्रतिमा बनाने के दौरान मूर्तिकार यह ध्यान रखते हैं कि मिट्टी मिलाई गई है या नही। मूर्तिकार या पुजारी मिट्टी को लाते हैं। मिट्टी लाने खुद पुजारी या मूर्तिकार वेश्यालय जाकर मिट्टी की भीख मांगते हैं। मिट्टी मिल जाने के बाद इसे प्रतिमा बनाने में इस्तेमाल किया जाता है।

वेश्यालय की मिट्टी क्यों
आखिर यह सवाल मन में उठता है कि वेश्यालय की मिट्टी से ही प्रतिमा का निर्माण क्यों होता है। इसके पीछे का कारण यह है की जैसे ही कोई वेश्यालय में पहुंचता है वह अपनी पवित्रता बाहर ही छोड़ देता है। कोई भी व्यक्ति वेश्यालय के अंदर प्रवेश करता है तो उसके सारे अच्छे कर्म बाहर ही रह जाता है और वह भी बुरे कामों में लीन हो जाता है। मान्यता अनुसार वेश्यालय की मिट्टी सबसे पवित्र होती है।

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वेश्याओं का सम्मान भी एक कारण
दूसरा कारण यह भी है कि वेश्याओं को समाज में सम्मान नही मिल पाता है। उन्हें सम्मान दिलाने के लिए भी ऐसा किया जाता है। इसके पीछे की एक कहानी यह भी है कि पुराने समय में एक वेश्या मां दुर्गा की अनन्य भक्त थी, जिसे समाज के तिरस्कार से बचाने के लिए मां ने स्वयं आदेश देकर उसके आंगन की मिट्टी से अपनी मूर्तियां स्थापित करने की परंपरा शुरू करवाई और यह वरदान दिया कि बिना वेश्यालय की मिट्टी के दुर्गा की प्रतिमा पूरी नहीं मानी जाएगी। इस तरह इस मान्यता की शुरुआत की गई।

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