60 वर्ष के उम्र के बाद ज़िंदगी की स्थिति कुछ ऐसी हो जाती है, जहां लोग अपनी सारी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाना चाहते है। उनकी जिम्मेदारी समाप्त हो गई रहती है। वह बस आराम करना चाहते हैं। लेकिन कई लोग ऐसे भी होते हैं, जो आराम न करके कोई ऐसा प्रेरणादायक काम करते हैं, जिससे दुनिया उन्हे जाने। आज हम एक ऐसे ही महिला के बारे में जानेंगे।
कौन हैं के पी राधामनी
इनकी पहचान यह है कि ये वायनाड और उसके आसपास के गांव में घर घर जाकर पिछले 8 सालों से कम शुल्क में पुस्तके उपलब्ध करा रही हैं। 64 वर्ष की केपी राधामनी एक ऐसी ही महिला है जो अपने गांव के अगल-बगल गांवो में रहने वाले बुजुर्गों और महिलाओं को कम शुल्क में पुस्तकें उपलब्ध करवाती है। केपी राधामनी 2 से 3 किलोमीटर रोजाना इस उम्र में भी पैदल जा कर लोगों को किताबें उपलब्ध करा रही है।

समाज को शिक्षित बनाना है लक्ष्य
राधामनी की ये कार्य वाकई तारीफ के काबिल है। वायनाड में स्तिथ प्रतिभा पब्लिक लाइब्रेरी में राधामानी लाइब्रेरियन है। वे पिछले 8 सालों से लोगों को किताबें बांटने का काम पैदल ही करती हैं। उनके यह कार्य के पीछे चार दीवार के अंदर घिरी महिलाओं को जो अपनी जिम्मेदारियां निभा रही है उनको पढ़ाई के लिए आगे प्रेरित करने का उद्देश है। वह समाज को शिक्षित बनाना चाहती है।

पर्यावरण की दिशा में भी करतीं हैं कार्य
उनके द्वारा दिये गए उपन्यासो को लोगो ने भी खूब पढ़ा। राधामनी वॉकिंग लाइब्रेरियन के साथ साथ पर्यावरण सुरक्षा की दिशा में भी काम कर रही है। वे प्लास्टिक रिसाइक्लिंग प्रोजेक्ट में भी काम कर रही है। उनके पति पद्मनाभन का एक किराना का दुकान है और एक बेटा है जो उनका पूरी तरह से साथ देते है। कोई भी व्यक्ति 5 रुपये का महीना या 25 रुपये का सालाना का शुल्क देकर कोई भी लाइब्रेरी में पढ़ सकता है।
