एक ओर जहां पेड़-पौधों की अंधाधुंध कटाई की जा रही है, जिसकी वजह से आज ऑक्सीजन की कमी से पूरा देश जूझ रहा है। ऐसे में एक शख्सियत ऐसी भी हैं जो आज प्रकृति को हरा भरा करने के लिए पूरी तरह से स्वंय को समर्पित कर चुके हैं।
राजस्थान के नागौर जिले के रहने वाले हिम्मताराम भांभू 1975 से अब तक साढ़े पांच लाख पौधे रोप चुके हैं। यही नहीं, इनमें से साढ़े तीन लाख पौधें पेड़ भी बन चुके हैं। इसमें छह एकड़ में 11 हजार वृक्षों वाला एक जंगल भी शामिल है। पर्यावरण को समर्पित इस अहम योगदान के लिए उन्हें हाल ही में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया है। पेड़-पौधों के लिए अपना संपूर्ण जीवन न्यौछावर करने वाले हिम्मताराम भांभू का जीवन काफी संघर्षपूर्ण बिता है। आइए जानते हैं उनके जीवन की प्रेरणादायक कहानी।

दादी से मिली थी पौधा लगाने की प्रेरणा
पेशे से मिस्त्री नागौर जिले के सुखवासी गांव के रहने वाले हिम्मताराम को धरती को हरा-भरा रखने का विचार विरासत में मिला है। हिम्मताराम बहुत अधिक पढ़े-लिखे नहीं हैं। गोगेलाव गांव के स्कूल में कक्षा छह तक पढ़ाई की है। उन्होंने खेती के मशीनीकरण के शुरुआती दौर में ट्रैक्टर की मरम्मत का काम सीखा और कुशल मिस्त्री बन गए। जब वह 18 साल के थे तभी उनकी दादी ने उनसे पीपल का एक पौधा लगवाया था और इस पौधे का पूरा ध्यान रखने के लिए कहा था। उसी दिन से दादी से मिली प्रेरणा का नतीजा यह है कि 1975 से अब तक हिम्मताराम राजस्थान के कोने-कोने में करीब साढ़े पांच लाख पौधे रोप चुके हैं। हिम्मताराम ने नागौर के नजदीक हरिमा गांव में छह एकड़ जमीन खरीदी और उस पर 11 हजार पौधे रोपकर एक हरा-भरा जंगल तैयार कर दिया हैं। यहां 300 मोर और पशु-पक्षी प्राकृतिक वातावरण में रहते हैं।

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रेगिस्तान को बना दिया हरा-भरा जंगल
69 साल के हिम्मताराम भांभू जहां रहते हैं वहां का अधिकांश इलाका रेगिस्तान है। जहां खारा पानी है। लेकिन उन्होंने वहां भी जंगल बसा दिया। इसके लिए उन्होंने 250 फीट की गहराई वाला नलकूप खुदवाया जिसके बाद वहां खारा पानी आ गया। हिम्मताराम ने इस खारे पानी का इस्तेमाल किया ही साथ ही बारिश के पानी को खेत में रोककर जमीन में नमी पैदा की और इससे पेड़ उगाए। आज उनका उगाया-बसाया जंगल पर्यावरण का अध्ययन करने वाले छात्रों के लिए एक संस्थान की तरह है। इस जंगल में हर तरह के पेड़ हैं।

लोगों को घर-घर जाकर करते हैं प्रेरित
पर्यावरण प्रेमी हिम्मताराम भांभू राजस्थान में जगह-जगह जाकर लोगों को जंगलों को सुरक्षित रखने के लिए प्रेरणा देते हैं। इसके साथ वह करीब 1000 पक्षियों और जानवरों को रोज 20 किलो दाना खिलाते हैं। इसके साथ वह ड्रग्स की आदत के खिलाफ भी काम करते हैं। पिछले 45 साल में हिम्मताराम भांभू ने हर दिन पर्यावरण, पेड़ और जीव रक्षा की है। हिम्मताराम ने राष्ट्रीय राजमार्ग 65 पर नागौर से करीब 20 किमी दूर हरिमा गांव में खुद की खरीदी करीब छह हेक्टेयर जमीन पर 11 हजार पौधे लगाए, जो आज हरे भरे पेड़ बन चुके हैं। आज यहां एक घना जंगल बन गया है। जहां हजारों पशु-पक्षी रहते हैं।

अपने पैसों से उगाए पेड़-पौधे
धरती को हरा-भरा करने की मुहिम में हिम्मताराम ने किसी की भी मदद नहीं ली। उन्होंने अपनी पूंजी और पुरस्कारों के रूप में प्राप्त धनराशि का प्रयोग पेड़-पौधे उगाने में किया। वह वन विभाग से पौधे खरीदकर लोगों को देते थे और उनसे संपर्क में रहते थे। जो पौधे लगाए गए, उनकी वृद्धि के बारे में पूछते रहते हैं। पर्यावरण के साथ ही पशु-पक्षियों से भी उनका प्रेम बढ़ा। वह मेनका गांधी की संस्था पीपल फॉर एनिमल से भी जुड़े हैं और अब तक 13 शिकारियों को जेल पहुंचा चुके हैं।

सरकार ने किया पद्मश्री सम्मान से सम्मानित
हिम्मताराम के कार्यों को राज्य और केंद्र सरकार ही नहीं विभिन्न संस्थाओं ने भी सराहा है। वर्ष 2015 में राजस्थान सरकार ने उन्हें राजीव गांधी पर्यावरण संरक्षण पुरस्कार दिया था। 1999 में पर्यावरण श्रेणी में यूनेस्को द्वारा पुरस्कार प्रदान किया गया। उनके बसाए जंगल ‘हरिमा’को अब कृषि-वानिकी के एक सफल मॉडल के रूप में देखा जाता है। आसपास के स्कूलों के छात्र यहां प्रैक्टिकल ट्रेनिंग के लिए आते हैं। यही कारण है कि भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान से भी नवाजा है।

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हिम्मताराम भांभू आज लाखों लोगों के लिए प्रेरणा बन चुके हैं। प्रकृति के प्रति उनके प्रेम ने ही उनकी सफलता की कहानी लिखी है। धरती को साफ-सुथरा और हरा भरा रखने में हिम्मताराम भांभू का बड़ा योगदान रहा है।