संघर्ष में तपकर ही बड़े नाम निकलते हैं। जिसने संघर्ष किया है उसे सफलता ज़रूर मिलती है बस हिम्मत नहीं खोनी चाहिए। आज हम एक बेटी के संघर्ष की कहानी बताएंगे जिनके सर से पिता का शाया हमेशा के लिए उठ गया पर उन्होंने हिम्मत नही हारी। आज वह कोर्ट में जज बनकर सबके लिए प्रेरणा बन गई हैं।
आईये जानते है अर्चना कुमारी के बारें में
बिहार में मूल रूप से धनरूआ (पटना) के गांव मानिक बिगहा की अर्चना कुमारी इन दिनो लोगों में ‘जज बिटिया’ के नाम से मशहूर हो चुकी हैं। अदालत में चपरासी की नौकरी करने वाले पिता की बेटी बिहार न्यायिक सेवा प्रतियोगिता परीक्षा पास कर के जज बन गयी हैं। अर्चना को हालांकि इस बात का अफसोस है कि इस खुशी के मौके पर उनके पिता मौजूद नहीं हैं।

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अर्चना के पिता थे चपरासी
अर्चना के पिता सोनपुर रेलवे कोर्ट में चपरासी के पद पर थे। चार भाई-बहन में सबसे बड़ी अर्चना के लिए ज़िंदगी का यह सफर बहुत संघर्षपूर्ण रहा। बचपन में अ’स्थमा की बी’मारी के कारण अर्चना बहुत बीमार रहती थीं। उनके घर की आर्थिक स्थिति भी ठीक नही थी। घर में गरीबी का डेरा था।

पढ़ाई के दौरान पिता की मृ’त्यु
पटना के राजकीय कन्या उच्च विद्यालय, शास्त्रीनगर से बारहवीं पास अर्चना ने पटना यूनिवर्सिटी से साइकोलॉजी ऑनर्स किया है। लेकिन इसी बीच ग्रेजुएशन की पढ़ाई करते समय साल 2005 में उनके पिता गौरीनंदन प्रसाद की असामयिक मृ’त्यु हो गई। यह समय उनके लिए बहुत मुश्किल भरा था। क्योंकि सबसे बड़ी होने के नाते भाई-बहनों की जिम्मेदारी उनके सर आ गई थी। लेकिन उन्होंने कंप्यूटर सीखा था तो उन्होंने अपने ही स्कूल में कंप्यूटर सिखाना शुरू किया ताकि घर खर्च में मदद की जा सके।

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पति ने किया सहयोग
अर्चना घर में सबसे बड़ी थी तो घरवालों पर शादी का बहुत दबाव था। 2006 में अर्चना की शादी कर दी गई। अर्चना को लगा कि अब उनके पढ़ाई का अंत हो गया। उन्होंने इसके लिए खुद को समझा भी लिया था, पर जब अर्चना के पति को पता चला कि उनके बचपन का सपना जज बनना था तो उनके पति ने उनका खूब सहयोग किया। पति के सहयोग से 2008 में पुणे विश्वविद्यालय में अर्चना ने एलएलबी कोर्स में दाखिला ले लिया। वर्ष 2014 में उन्होंने बीएमटी लॉ कॉलेज पूर्णिया से एलएलएम किया।

दूसरे प्रयास में मिली सफलता
2011 में क़ानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह पटना वापस आईं तो गर्भवती हो गईं। साल 2012 में उन्होंने एक बच्चे को जन्म दिया। अब न्यायिक परीक्षा में सफलता के साथ वह जज बन गई हैं। उन्हें यह सफलता दूसरे बार में प्राप्त हुई। उन्हें इस बात की खुशी है कि बचपन में जो सपना देखा था, आखिरकार पूरा हुआ। उनके पति भी पटना मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में क्लर्क के पद पर कार्यरत थे। अर्चना का कहना है कि पिता की असामयिक मौ’त से उनके परिवार को बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ा। लेकिन उनकी मां ने बहुत संघर्ष किया और हर वक्त उनका हौसला बढ़ाया। अर्चना का कहना हैं कि उन्हें परिवार के सभी लोगों का पूरा सहयोग मिला।

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आज अर्चना भारत के तमाम बेटियों के लिए प्रेरणा बन गई हैं। शादी के बाद इतनी मुश्किलों का सामना करते हुए उन्होंने अपने सपने को पूरा किया। अर्चना कुमारी की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है।