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Saturday, March 25, 2023

एक पैर से लाचार अरुणिमा ने फतह किया माउंट एवरेस्ट, पढ़िए उनकी प्रेरणादायी कहानी

कहते हैं ना कि हौसला रखने वालों की कभी हार नहीं होती। जिनके अंदर कुछ कर दिखाने का जज़्बा होता है वह किसी भी परिस्थिति के आगे नहीं झुकते। इस बात को प्रमाणित किया है दुनिया की पहली महिला दिव्यांग पर्वतारोही अरुणिमा सिन्हा ने।

दिव्यांग होने के बाद भी अरूणिमा कभी कमजोर और लाचार नहीं रहीं। हिमालय की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट फतह करने वाली 27 वर्षीय अरुणिमा सिन्हा ने एक पैर ना होने के बाद भी अपने हौसलों को कमजोर नहीं पड़ने दिया और एवरेस्ट फतह कर के इतिहास रच दिया। इतना ही नहीं एक पैर के सहारे दुनिया की छह प्रमुख पर्वत चोटियों पर तिरंगा लहराकर विश्व कीर्तिमान स्थापित कर चुकी भारत की महिला पर्वतारोही अरुणिमा सिन्हा ने।

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दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटियों में शामिल अंटार्कटिका के ‘विन्सन मैसिफ़’ हिल पर भी तिरंगा फहराने में कामयाबी हासिल की है। अरुणिमा को अंटार्कटिका के सर्वोच्च शिखर को फतह करने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बधाई दी थी। यही कारण है कि डॉ. अरूणिमा सिन्हा के हौसले और जज़्बे को सलाम करते हुए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया है। अरूणिमा सिन्हा के लिए पैर ना होने के बाद भी पहाड़ों की उंची चोटी पर पहुंचने का सफर तय करना आसान नहीं था। आइए जानते हैं उनके संघर्ष से सफलता तक का प्रेरणादायी सफर।

संघर्ष में गुजरा बचपन

उत्तर प्रदेश के अम्बेडकर नगर में जन्मी अरुणिमा सिन्हा का परिवार मूलतः बिहार से है। उनके पिता भारतीय सेना में थे। स्वाभाविक तौर पर उनके तबादले होते रहते थे। इन्हीं तबादलों के सिलसिले में उन्हें उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर आना पड़ा था। लेकिन सुल्तानपुर में अरुणिमा के परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। अरुणिमा के पिता का नि’धन हो गया। हँसते-खेलते परिवार में मातम छा गया। पिता की मृत्यु के समय अरुणिमा की उम्र महज़ 1 साल थी। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और देखभाल की सारी जिम्मेदारी उनकी माँ पर आ पड़ी। उनकी माँ ने स्वास्थ्य विभाग में नौकरी की और अपने बच्चों का स्कूल में दाखिला करा दिया। स्कूल में अरुणिमा का मन पढ़ाई में कम और खेल-कूद में ज्यादा लगने लगा था। दिन पर दिन खेल-कूद में उनकी दिलचस्पी बढ़ती गयी। वह चैंपियन बनने का सपना देखने लगीं।

एक हादसे में गवां दिए पैर

अरुणिमा ने खेल-कूद के साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। उन्होंने कानून की पढ़ाई की और LLB की परीक्षा भी पास की। पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी की तलाश में वो नोएडा जाने के लिए ट्रेन में बैठीं। कुछ ही देर बाद कुछ बदमाश लड़के अरुणिमा के पास आये और इनमें से एक ने अरुणिमा के गले में मौजूद चेन पर झपट्टा मारा। लेकिन अरुणिमा ने हार नहीं मानी और लड़कों से झूझती रही। उन बदमाश लड़कों ने अरुणिमा को हावी होने नहीं दिया। इतने में ही कुछ बदमाशों ने अरुणिमा को इतनी ज़ोर से धक्का दिया कि वो चलती ट्रेन से बाहर गिर गयीं। अरुणिमा का एक पाँव ट्रेन की चपेट में आ गया। कुछ गाँव वालों ने उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया। जहां जान बचाने के लिए डाक्टरों को अरुणिमा का बायां पैर काटना पड़ा।

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ऐसे मिली आगे बढ़ने की प्रेरणा

अस्पताल में इलाज के दौरान समय काटने के लिए अरुणिमा सिन्हा ने अखबार पढ़ना शुरू किया। एक दिन जब वह अखबार पढ़ रही थी। उनकी नज़र एक खबर पर गयी। खबर थी कि नोएडा के रहने वाले 17 वर्षीय अर्जुन वाजपेयी ने देश के सबसे युवा पर्वतारोही बनने का कीर्तिमान हासिल किया है। इस खबर ने अरुणिमा के मन में एक नए विचार को जन्म दिया। खबर ने उनके मन में एक नया जोश भी भरा था। अरुणिमा के मन में विचार आया कि जब 17 साल का युवक माउंट एवरेस्ट पर विजय पा सकता है तो वह क्यों नहीं? बस फिर क्या था उन्होंने एवरेस्ट फतह करने की ठान ली।

ऐसे किया एवरेस्ट फतह

हादसे में पैर गंवाने के बाद भी अरूणिमा ने हार नहीं मानी। उन्होंने कृतिम पैर के सहारे एवरेस्ट की चढ़ाई करने की ठानी। अरुणिमा ने उत्तराखंड स्थित नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनरिंग (एनआइएम) से पर्वतारोहण का प्रशिक्षण लिया। एशियन ट्रेकिंग कंपनी ने 2012 के वसंत में अरुणिमा को नेपाल की आइलैंड चोटी पर प्रशिक्षण दिया गया। इसके बाद इन्हें उत्तरकाशी में Tata Steel Adventure Foundation में ट्रेनिंग के लिए भेजा गया। इसके बाद Nehru Mountaineering Institute में इनकी ट्रेनिंग हुई। जिसके बाद इन्होने “Iceland Peak” और “Mount कांगड़ी” पर उतरना चढ़ना शुरू किया। खूब प्रैक्टिस करने के बाद इन्होने Mount Everest पर चढ़ना शुरू किया। और 52 दिन बाद 21 मई 2013 की सुबह अरुणिमा सिन्हा ने माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराया और 27 साल की उम्र में एवरेस्ट फतह करने वाली विश्व की पहली विकलांग पर्वतारोही बन गईं।

एवरेस्ट के साथ ही दुनिया की अन्य पर्वत चोटियों पर भी लहराया तिरंगा

कृत्रिम पैर के सहारे माउंट एवरेस्ट पर पहुँचने वाली अरुणिमा सिन्हा यहीं नहीं रुकना चाहती थी। एवरेस्ट फतह करने के बाद उन्होंने एक पैर के सहारे दुनिया की छह प्रमुख पर्वत चोटियों पर तिरंगा लहराकर विश्व कीर्तिमान स्थापित किया। उन्होंने दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटियों में शामिल अंटार्कटिका के ‘विन्सन मैसिफ़’ हिल पर भी तिरंगा फहराने में कामयाबी हासिल की है। कृत्रिम पैर के सहारे एवरेस्ट (एशिया) फतह करने वाली दुनिया की एकमात्र महिला अरुणिमा अब तक किलीमंजारो (अफ्रीका), एल्ब्रूस (रूस), कास्टेन पिरामिड (इंडोनेशिया), किजाश्को (ऑस्ट्रेलिया) और माउंट अंककागुआ (दक्षिण अमेरिका) पर्वत चोटियों को फतह कर चुकी हैं।

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पद्मश्री सहित कई सम्मान से हो चुकी हैं सम्मानित

एवरेस्ट की साथ दुनिया की सबसे ऊंचे पर्वतों को फतह करने वाली डॉ. अरूणिमा सिन्हा कई सम्मान से सम्मानित हो चुकी हैं। उत्तर प्रदेश में सुल्तानपुर जिले के भारत भारती संस्था ने उन्हें सुल्तानपुर रत्न अवॉर्ड से सम्मानित किया है। सन 2016 में अरुणिमा सिन्हा को अम्बेडकरनगर रत्न पुरस्कार से अम्बेडकरनगर महोत्सव समिति की तरफ से नवाज़ा गया था। यही नहीं भारत सरकार ने उनके हौसले और जज़्बे को देखते हुए देश के सर्वोच्च सम्मान में से एक पद्मश्री सम्मान से भी सम्मानित किया है।

एक बार जब कोई व्यक्ति किसी काम को, अपने सपने को और अपने लक्ष्य को हासिल करने का संकल्प ले लेता है। तो दुनिया की कोई ताकत, कोई मुश्किल, कोई चुनौती उसका रास्ता नहीं रोक सकती। इस बात को अरूणिमा सिन्हा ने बखूबी सार्थक किया है।

Sunidhi Kashyap
Sunidhi Kashyap
सुनिधि वर्तमान में St Xavier's College से बीसीए कर रहीं हैं। पढ़ाई के साथ-साथ सुनिधि अपने खूबसूरत कलम से दुनिया में बदलाव लाने की हसरत भी रखती हैं।

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