इस दुनिया में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो केवल इंसानियत के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर देते हैं। इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण हैं महाराष्ट्र के रहने वाले 60 वर्षीय शब्बीर सैय्यद। शब्बीर अपने परिवार के साथ पिछले 50 साल से गौ सेवा कर रहे हैं। हैरानी कि बात तो यह है कि शब्बीर के पिता पहले बूच’ड़खा’ना चलाते थे, लेकिन बाद में उन्होंने गौ सेवा करने की ठानी और गोसेवक बन गए। उनके इसी सामाजिक और पशु कल्याण के कार्य को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान में से एक पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया है। शब्बीर सैय्यद के लिए अपने खानदानी पेशे को छोड़ कर गौ सेवा करने का कार्य शुरू करना इतना आसान नहीं था। आइए जानते हैं उनके संघर्ष और सफलता का प्रेरणादायी सफर।
50 सालों से कर रहे हैं गौ सेवा
महाराष्ट्र के बीड जिले के शिरूर कासार तालुका के रहने वाले 60 वर्षीय शब्बीर सैय्यद अपने परिवार के साथ पिछले 50 साल से गौ सेवा कर रहे हैं। शब्बीर सैय्यद के पिता पहले बूच’ड़खा’ना चलाते थे और बाद में गोसेवक बन गए। गायों को पालने और उनकी सेवा करने की परंपरा शब्बीर सैय्यद के पिता बुदन सैय्यद ने 70 के दशक में शुरू की थी। वह पहले कसाई थे और एक दिन अचानक यह काम छोड़ गौ सेवा में जुट गए। इसके कुछ साल बाद 1972 में शब्बीर भी इसी काम से जुड़ गए और तब से अब तक उनका पूरा परिवार गौ सेवा से जुड़ा हुआ है।

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ऐसे मिली गौ सेवा करने की प्रेरणा
शब्बीर कहते हैं कि कुछ वर्ष पहले जब उनके पिता बूच’ड़खा’ना चलाते थे, तो उन्हें यह काम विरासत में मिला था। एक दिन अचानक से एक पशु की मृ’त्यु हो गई, उसकी आंखो में उम्मीद की एक रोशनी थी। जिसे देख शब्बीर के पिता को एहसास हुआ कि वह गलत काम कर रहे हैं। इसके बाद उन्होंने गाय की रक्षा करने और उनकी सेवा करने की ठान ली। इसकी शुरूआत उन्होंने 2 गायों के साथ की और आज उनके परिवार के पास 170 से भी अधिक गायें हैं।

लाख दिक्कतों के बाद भी नहीं छोड़ी गौ सेवा
शब्बीर महाराष्ट्र के ऐसे इलाके से आते हैं। जहां अक्सर पानी की कमी के चलते जानवरों की मौ’त तक हो जाती है। लेकिन शब्बीर ने इन दिक्कतों के बावजूद गाय की सेवा नहीं छोड़ी। वह किसी भी गाय को का’टने के लिए नहीं देते हैं। गोशाला का खर्च वह गाय का दूध और गोबर बेच कर निकालते हैं। गोबर बेचकर वह हर साल 70 हजार रुपये तक कमा लेते हैं। सैय्यद का कहना है कि अगर कोई गाय या उसका बच्चे की मौ’त हो जाती है, तो उनको बहुत पीड़ा होती है। उनको लगता है कि उनके परिवार का एक सदस्य इस दुनिया से चला गया है। वह गाय की सेवा अपने परिवार के सदस्यों की तरह करते हैं।

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केवल किसानों को ही बेचते हैं बैल
शब्बीर के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है इसके बाद भी उनका पूरा परिवार गौ सेवा से जुड़ा हुआ है। वह घर का खर्च निकालने के लिए अपने बैल सिर्फ किसानों को ही बेचते हैं। और बाकायदा एक सरकारी कागज में उनसे लिखवा लेते हैं कि वह कभी इसे कसाई को नहीं बेचेंगे। कई बार वह काफी डिस्काउंट पर भी बैल बेच देते हैं। फिलहार शब्बीर सैय्यद के पास 170 गोवंश हैं। जिनका वो पूरा ध्यान रखते हैं।

पूरे गांव के लोग कहते हैं गौ-सेवक मामू
शब्बीर के गाय प्रेम को देखते हुए गांव वाले उन्हें गौ-सेवक मामू कहकर पुकारते हैं। वह दिन से देर शाम तक गौशाला में काम करते हैं। गोबर साफ करने से लेकर दूध दुहने और बी’मार गायों को मरहम लगाने का भी काम ऐसे करते जैसे अपने बच्चों की देखभाल कर रहे हो। शब्बीर और उनके पिता के पास शुरुआत में ज्यादातर गाएं ऐसी थीं जो बूढ़ी-बी’मार या दूध न देने की हालत में होतीं थी। बी’मार बछड़ों को भी लोग सड़क पर मरने के लिए छोड़कर चले जाते। शब्बीर और उनके पिता उन गायों और बछड़ों को घर ले आते थे और उनका इलाज कर उन्हें स्वस्थ कर देते थे।

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सरकार ने किया पद्मश्री सम्मान से सम्मानित
शब्बीर सैय्यद की गौ सेवा के महान कार्य को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान में से एक- पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया है। उन्हें सामाजिक कार्य और पशु कल्याण के लिए इस पुरस्कार से नवाजा गया। वह कहते हैं- पुरस्कार के बारे में ज्यादा नहीं जानता, बस यह पता है कि ये देश की बड़ी उपाधि है। इससे सूखे से दम तोड़ती गायों को चारा-पानी-मिल सके तो और बढ़िया है।
शब्बीर सैय्यद ने आज अपने कार्यों से यह साबित कर दिया है कि कोई भी कार्य करने के लिए किसी विशेष धर्म का होना जरूरी नहीं है। उन्होंने गौ सेवा करने का महान कार्य कर अपनी सफलता की कहानी लिखी है। आज वह लाखों लोगों के लिए प्रेरणा है।