नारी उस वृक्ष की भांति है जो विषम परिस्थितियों में भी तटस्थ रहते हुए राहगीरों को छाया प्रदान करता है। नारी की कोमलता एवं सहनशीलता को कई बार पुरुष ने उसकी निर्बलता मान लिया और इसलिए उसे अबला कहा किन्तु वो अबला नहीं है, वो तो सबला है। संसार में चेतना के अविर्भाव का श्रेय नारी को ही जाता है। नारी चाहे तो कुछ भी कर सकती है। बड़े से बड़े पदों पर नारी आज विद्यमान है। आज हम आपको एक ऐसी ही नारी के बारे में बताएंगे जो पहले शिक्षिका, फिर केरल की पहली IPS और अब DGP बनकर समाज के लिए प्रेरणा बन गई हैं।

कौन है आर श्रीलेखा ?
साल 1960 में जन्मीं आर श्रीलेखा उस समय प्रशासनिक सेवा में शामिल हुईं जब वो रिजर्व बैंक में ऑफिसर के पद पर कार्यरत थीं। उन्होंने कोट्टायम जिले में असिस्टेंट सुपरिटेन्डेंट के पद से अपनी प्रशासनिक करियर की शुरुआत की। वो साल 1991 में त्रिशूर में जिला अधीक्षक के पद पर भी तैनात हुईं। इसके बाद वो वायनाड में तैनात रहीं। 1987 में राज्य की पहली महिला आईपीएस के तौर पर उन्होंने शोहरत हासिल की। और अब वह केरल की पहली महिला डीजीपी बन गयी हैं।
आरोप भी लगे पर हिम्मत से काम लिया।
वह लैंगिक अनुपात के अंतर को समाप्त करने के अपने प्रयासों के लिए पूरे राज्य में जानी जाती हैं। वह अग्रणी पदों में अधिक महिलाओं को देखना चाहती हैं। उन पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे, महिला होने के नाते उनका उत्पीड़न भी किया गया, उनको आगे बढ़ने से रोकने के लिए हरसंभव कोशिश भी की गई, लेकिन श्रीलेखा के कदम नहीं रुके। वो आगे बढ़ती ही गईं।

DGP बनकर नारी शक्ति दिखाई
2015 में श्रीलेखा को निगरानी एडीजी और क्राइम ब्रांच में बेहतरीन सर्विस के लिये राष्ट्रपति पुरस्कार प्रदान किया गया। केरल की ट्रांसपोर्ट कमिश्नर के तौर पर उनकी कोशिशों की वजह से सड़क हादसों में मरने वालों की संख्या में कमी आयी और सुरक्षा मानकों को बढ़ावा मिला है। इस में इनके योगदान से कोई इनकार नहीं कर सकता है।