पृथ्वी पर मानव जाति का अस्तित्व, आदमी और औरत दोनों की समान भागीदारी के बिना संभव नहीं होता है। दोनों ही पृथ्वी पर मानव जाति के अस्तित्व के साथ-साथ किसी भी देश के विकास के लिए समान रूप से जिम्मेदार है। महिलाएं पुरुषों से अधिक महत्वपूर्ण होती हैं क्योंकि महिलाओं के बिना मानव जाति की निरंतरता के बारे में कल्पना भी नहीं की जा सकती हैं क्योंकि महिलाएं ही मानव को जन्म देती हैं।
बेटियां अपने घर परिवार के लिए कुछ भी करने से नही कतराती हैं। अपने परिवार के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाली बेटियां आज हर क्षेत्र में आगे हैं। आज हम आपको एक ऐसे बेटी के बारे में बताएंगे जो अपने पिता के सम्मान के लिए आईएएस बन गई। सिस्टम के कारण परेशान अपने पिता को देखकर उन्होंने आईएएस अफसर बनने की ठान ली और अफसर बन कर दिखाई। आइये जानते है उनके बारे में।
रोहिणी भाजीभाकरे का परिचय
रोहिणी एक ऐसी आईएएस ऑफिसर हैं जिन्होंने अपने पिता के सम्मान के लिए आईएएस बनने का सपना देखा और उसे पूरा किया। रोहिणी महाराष्ट्र की रहने वाली हैं। उनके पिता एक किसान हैं। जब वह नौ साल की थीं तब उन्होंने अपने गरीब किसान पिता को मुश्किलों से लड़ते देखा था। रोहिणी ने पिता को दौड़-भाग करते देखा जब वोह महाराष्ट्र में सोलापुर जिले में खेती से जुड़े अपने दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने के लिए परेशान थे। उनके पिता के दस्तावेजों पर किसी अधिकारी ने हस्ताक्षर नही किए। अपने पिता को बेबस लाचार देखकर उन्होंने आईएएस बनने की ठानी।

रोहिणी की प्रारंभिक शिक्षा
रोहिणी महाराष्ट्र के सोलापुर में अपने गांव उपलाई में 10वीं तक की पढ़ाई पूरी की। दसवीं करने के बाद वह 12 वीं की पढ़ाई करने सोलापुर चली गईं। वह स्कूल की टॉपर रहीं। उन्होंने इसके बाद बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। वह पढ़ाई में अव्वल थीं। रोहिणी ने सरकारी स्कूल से ही अपनी प्रारंभिक तथा उच्च शिक्षा की पढ़ाई पूरी की और उन्होंने सरकारी कॉलेज से ही अपना इंजीनियरिंग भी पूरा किया।

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रोहिणी ने अपने सपने को पूरा किया
रोहिणी ने जो सपना देखा था उसके पीछे वह पूरे लगन और मेहनत के साथ लग गई। उन्होंने बिना किसी कोचिंग के अपनी पढ़ाई शुरू की। रोहिणी ने सेल्फ स्टडी करके आईएएस की तैयारी शुरू की और साल 2008 में उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा सफलता पूर्वक पास किया। उन्होंने यूपीएससी पास करने के लिए कोई प्राइवेट कोचिंग नहीं ली। रोहिणी ने अपने जिले की पहली महिला कलेक्टर बन कर इतिहास रच दिया था।

अपने काम के प्रति वफादार रोहिणी
रोहिणी अपने काम के प्रति सच्ची निष्ठा रखती हैं। साल 2008 में उनकी पहली पोस्टिंग तमिलनाडु के मधुरई में असिस्टेंट कलेक्टर के तौर पर हुई। इसके बाद वह तिंदिवनम में सब कलेक्टर के तौर पर तैनात हुईं। मधुरई में रोहिणी ने ऐसे-ऐसे काम किए कि लोग आज तक तारीफ करते नहीं थकते। उनके प्रयास से ही यह जिला राज्य का पहला खुले में शौच से मुक्त जिला बना था।

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सम्मानित भी हुई रोहिणी
रोहिणी ने इलाके में न सिर्फ शौचालय बनवाएं, बल्कि ये भी सुनिश्चित किया कि लोग इनका प्रयोग करें। साल 2016 में उन्हें मनरेगा को बेहतर करने के लिए अवार्ड दिया गया। उन्होंने इस प्रोग्राम के तहत मधुरई में ग्राउंड वाटर के लिए काम किया था।

अपने पिता के सपनों को साकार किया
रोहिणी ने अपने किसान पिता के सपनों को साकार किया। रोहिणी के पिता उन्हें यह हमेशा बतलाते हैं कि वह अपने काम के प्रति वफादार रहें। रोहिणी के पिता उनसे कहते है कि लोगों के परेशानियों को सुनो और उनका निदान शीघ्र करो। रोहिणी के पिता चाहते हैं कि उनकी बेटी एक ईमानदार ऑफिसर के तौर पर पहचानी जाए। जो कष्ट उन्हें अपने काम को लेकर हुआ था वह दूसरे को न हो।
रोहिणी आज तमाम बेटियों के लिए प्रेरणा हैं। रोहिणी के इस प्रेणादायक सफर की जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है।