सफलता की राह में आर्थिक तंगी और गरीबी कभी आड़े नहीं आती। लेकिन इसके लिए लगन और कड़ी मेहनत की जरूरत पड़ती है। मेहनत और लगन से हम सफलता की बुलंदियों को छू सकते हैं।
खुद को कमजोर नहीं समझें। नकारात्मक सोच से बचें और असफलता से घबराएं नहीं। असफलता से ही सफलता के द्वार खुलते हैं। असफलता को चुनौती के रूप में लें। अपनी कमजोरियों की पहचान कर उसे दूर करें और आगे बढ़ें। आज हम आपको एक ऐसी ही बेटी के बारे में बताएंगे जिसने अपने घर के आर्थिक तंगी को कभी अपने लक्ष्य के बीच आने नही दिया। उन्होंने अपनी मेहनत को जारी रखा और सफल हुई। आइये जानते हैं उस बेटी के बारे में।

श्रीधन्या सुरेश का परिचय
श्रीधन्या सुरेश केरल के वायनाड की रहने वाली हैं। श्रीधन्या के पिता एक दिहाड़ी मजदूर हैं, जो गांव की बाजार में ही धनुष और तीर बेचने का काम करते हैं। केरल का वायनाड एक आदिवासी इलाका है। ये इतना पिछड़ा इलाका है कि लोग यहां स्कूल और पढ़ाई लिखाई को जानते तक नहीं। बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है। यहां बच्चे जंगलों में रहकर मां-बाप के साथ या तो टोकरी, हथियार बनाने में मदद करते हैं या मजदूरी करते हैं। पर श्रीधन्या ने गांव की पहली आईएएस अफसर बन इतिहास रच दिया।

पढ़ाई के बीच आर्थिक तंगी कभी नही लाने दिया
श्रीधन्या अपने माता-पिता और दो भाई-बहनों के साथ रहती थीं। उनके माता- पिता गरीब थे, लेकिन पैसों की कमी कभी भी श्रीधन्या की पढ़ाई के बीच में नहीं आने दी। उन्होंने कोझीकोड के सेंट जोसफ कॉलेज से ग्रेजुएशन की और उसके बाद ही उसी कॉलेज से जूलॉजी में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री ली। श्रीधन्या राज्य के सबसे पिछड़े जिले से आती थी। यहां से कोई आदिवासी आईएएस अधिकारी नहीं था। जबकि यहां पर बहुत बड़ी जनजातीय आबादी है। उन्होंने अपने इलाके से सफलता पाकर अपने समाज और अपने देश का नाम ऊँचा किया।

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पढ़ाई के बाद कई जगहों पर नौकरी भी किया
पढ़ाई पूरी होने के बाद वह अनुसूचित जनजाति विकास विभाग में क्लर्क के पद पर काम करने लगी। इसके बाद उन्होंने वायनाड के एक आदिवासी हॉस्टल में वार्डन के तौर पर काम किया। वार्डन के तौर पर काम करते हुए उन्हें यूपीएससी परीक्षा देने का मन बनाया। तीसरे प्रयास में उनका सिलेक्शन इंटरव्यू के लिए हुआ था। उस समय श्रीधन्या के पास दिल्ली आने के लिए पैसे भी नहीं थे। लेकिन दोस्तों से मिलकर उन्होंने पैसे जमा किया और दिल्ली आकर इंटरव्यू दिया।

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अंततः सफल हुई श्रीधन्या
श्रीधन्या ने सिविल सेवा परीक्षा में 2018 में 410 वीं रैंक हासिल की। सफल होने के बाद जब मीडिया उनके घर इंटरव्यू के लिए आई तो उनके टूटे-फूटे घर को देखकर सभी को उन पर गर्व की अनुभूति हुई। इतने गरीब परिवार के होते हुए भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी। आज श्रीधन्या सुरेश लाखों लोगों के लिए प्रेरणा हैं। उनके संघर्षपूर्ण जीवन को देखते हुए सभी लोगों को यह सिख लेनी चाहिए कि अगर मेहनत सच्चे लगन से की जाए तो सफलता जरूर मिलती है।
