कहते हैं न कि फल रातों रात नहीं उगता है, उसी तरीके से सफलता आपको रातो रात नहीं मिल जाती है। इसके लिए आपको कठिन मेहनत करनी पड़ती है, दिन रात जागना पड़ता है और फिर जाकर आपको सफलता मिलती है। लेकिन इंसान अगर कुछ करने की ठान ले तो वह क्या कुछ नहीं कर सकता, उसके लिए कुछ भी अंसभव नहीं है।
इस बात को प्रमाणित करने वाली एक ऐसी ही शख्सियत हैं डॉ. ऊषा यादव। जिन्होंने अपनी मेहनत और लगन से 100 से अधिक किताबें लिखने का कीर्तिमान रचा है। आगरा की रहने वाली डॉ. ऊषा यादव कभी अपने पति के डर से अपनी रचनाओं को जला दिया करती थीं। और आज उन्हीं के प्रोत्साहित करने के कारण उन्होंने 100 से अधिक किताबों को लिखने का रिकॉर्ड बनाया है। साहित्य के क्षेत्र में उनके अद्भुत योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान में से एक पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया है। साहित्य को घुट्टी की तरह पीने वाली ऊषा यादव के लिए साहित्य की दुनिया में अपनी पहचान बनाने का कार्य करना इतना आसान नहीं था। आइए जानते हैं उनके जीवन का प्रेरणायी सफर।
मात्र 9 साल की उम्र में ही करने लगी थीं कविताओं की रचना
उत्तर प्रदेश के आगरा की रहने वाली डॉ. ऊषा यादव जब 9 साल की थीं तब से ही उन्होंने लिखना शुरू कर दिया था। और उनकी कविताएं पत्रिका में प्रकाशित भी होती थी। डॉ ऊषा का बचपन साहित्य के आंगन में ही बीता है। उनके पिता चंद्रपाल सिंह मयंक बाल साहित्यकार थे और वह अधिवक्ता भी रह चुके हैं। डॉ. ऊषा के पिता न्यायिक क्षेत्र से जुड़े थे जिसके कारण वह ऊषा को जज बनाना चाहते थे। लेकिन अपने पिता की रूचि के विपरीत ऊषा की रुचि हमेशा से शिक्षण और लेखन में रही थी। यही कारण था कि उन्होंने बचपन से ही लिखना शुरू कर दिया था।

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30 सालों तक किया अध्यापन का कार्य
डॉ ऊषा यादव ने 12 साल की उम्र में ही हाई स्कूल को पास कर लिया था। उनकी कम उम्र में ही शादी हो गई थी, लेकिन शादी के बाद भी वह पढ़ती रहीं। बचपन से ही ऊषा को पढ़ाई में काफी रूचि थी। शादी के बाद भी वह कानपुर में पढ़ाती रहीं और इसके बाद वह आगरा आईं और 30 साल तक अध्यापन से जुड़ी रहीं। उन्होंने बतौर प्रोफेसर के रूप में भी कई सालों तक पढ़ाने का कार्य किया है। वह आगरा विश्वविद्यालय, केंद्रीय हिंदी संस्थान में भी प्रोफेसर भी रहीं हैं।

पति ने किया प्रेरित
डॉ. ऊषा यादव शादी के बाद जब आगरा आईं तो छुप-छुपकर लिखती थी। लेकिन उनके पति को पता ना चल जाए इसलिए वो लिखने के बाद इन्हें फिर चुपके से जला देती थीं। उनके मन में आशंका थीं कि पता नहीं पति क्या कहेंगे। एक दिन उनके पति ने उनकी कुछ रचनाएं देख लीं उसके बाद पति ने उन्हें लेखन के लिए प्रेरित किया। इसके बाद तो डॉ. ऊषा यादव ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह सुबह चाय से लेकर भोजन तक अपने हाथों से बनाती हैं। उसके बाद देर रात तक लेखन कार्य में जुटी रहती हैं। हर साल उनकी पुस्तकें आती हैं। उनकी पुस्तक ‘उसके हिस्से की धूप’ को हाल ही में मध्य प्रदेश में बड़ा सम्मान मिला है। उनकी यह पुस्तक सबसे ज्यादा बिकने वाली पुस्तकों में से एक है।

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लिख चुकीं है 100 से अधिक पुस्तकें
डॉ. ऊषा यादव अब तक 100 पुस्तकें लिख चुकी हैं। और उनकी लेखनी और कहानियां महिलाओं, बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों के ऊपर होती हैं। ऊषा यादव की सोच भी काफी अलग है। उनका मानना है कि अगर एक बच्चा बड़े परिवार से है तो उसके पास सब कुछ होता है लेकिन उसके पास माता पिता नहीं होते हैं, और वह उदास और अकेला से रहता है। उसी प्रकार महिलाओं और बेटियों में भी एक डर और असुरक्षा का भाव बढ़ता जा रहा है, जिसके कारण वह बाहर निकलने से संकोच करती हैं।

पद्मश्री सहित कई सम्मान से हुईं सम्मानित
डॉ. ऊषा यादव आज कई सम्मानों से सम्मानित हो चुकी हैं। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की ओर से डॉ. ऊषा यादव को बाल साहित्य भारती पुरस्कार मिल चुका है। भोपाल में बाल कल्याण एवं बाल साहित्य शोध केंद्र की ओर से उन्हें सम्मानित गया है। मीरा स्मृति सम्मान, यूपी सरकार से बाल साहित्य भारती एवं भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार सहित 10 से अधिक पुरस्कार मिल चुके हैं। यही नहीं साहित्य में अद्भुत योगदान देने के लिए भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान में से एक पद्मश्री सम्मान से भी नवाज़ा है।

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साहित्यकार के क्षेत्र में नाम कमाने वाली ऊषा को जब इस पद्मश्री सम्मान मिलने की बात पता चली तो उनकी आंखों में खुशी के आंसू थे। बचपन से ही साहित्य कला और लेखनी में आगे रहने वाली ऊषा अपने नाम कईं उपलब्धियां कर चुकी हैं। डॉ. ऊषा यादव ने अपनी मेहनत और कला के दम पर अपनी सफलता की कहानी लिखी है। डॉ. ऊषा यादव आज लाखों लोगों के लिए प्रेरणा हैं।