कुछ कहानियां ऐसी होती है, जिनको पढ़कर आपके अंदर कुछ करने का जज्बा उत्पन्न होता है। ऐसी कहानियां हमारे जीवन को बहुत प्रभावित करती है। हमें उनसे कुछ न कुछ जरूर सीखने को मिलता है। कुछ ऐसी ही कहानी है आईएएस मनीराम शर्मा की आइये जानते है उनके बारे में।
कौन हैं मनीराम शर्मा ?
मनीराम शर्मा राजस्थान के अलवर के एक छोटे से गांव बंदीगढ़ के रहने वाले हैं उन्होंने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया। पिता मजदूर, मां नेत्रहीन और स्वयं सौ प्रतिशत बहरेपन का शिकार जिला अलवर राजस्थान के बंदीगढ़ गांव के रहने वाले मनीराम शर्मा ने आईएएस में आने के लिए जो संघर्ष किया है उसकी मिसाल दी जा सकती है। मनीराम शर्मा का आईएएस बनने का सपना वर्ष 1995 में शुरू हुआ, जिसे पूरा करने में 15 वर्ष का समय लग गया।

गांव में नही था कोई विद्यालय।
जिला अलवर राजस्थान के गांव बंदीगढ़ में स्कूल नहीं था। मनीराम शर्मा पास के गांव में पांच किलोमीटर दूर पढ़ने जाते थे। लगन ऐसी थी कि दसवीं की परीक्षा में राज्य शिक्षा बोर्ड की परीक्षा में पांचवां और बारहवीं की परीक्षा में सातवां स्थान हासिल किया।

अपमानित होने पर भी अपने आप को मजबूत किया।
दसवीं क्लास में शर्मा प्रदेश मेरिट में पांचवें स्थान पर आएं। उन्हें कुछ सुनाई नहीं देता था। दोस्त जाकर रिजल्ट देखकर आए, उनके घर की तरफ हाथ हिलाकर दौड़ते आए। शर्मा के पिता को लगा वो फेल हो गए है, वे किसी परिचित विकास अधिकारी के पास ले गए और बोले, बेटा दसवीं में पास हुआ है चपरासी लगा दो। बीडीओ ने कहा ये तो सुन ही नहीं सकता। इसे न घंटी सुनाई देगी न ही किसी की आवाज। ये कैसे चपरासी बन सकता है। उनके पिता की आंखों में आंसू छलक आए। मनीराम ने अपने पिता का हाथ पकड़ के बोले कि वो एक दिन अफसर जरूर बनेंगे।

लगातार अव्वल होते गए मनीराम।
कॉलेज में प्रवेश के दूसरे वर्ष में ही मनीराम शर्मा ने राजस्थान पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा उत्तीर्ण कर क्लर्क के तौर पर नियुक्ति पाई। यूनिवर्सिटी में टॉप किया और नेट की परीक्षा उत्तीर्ण कर लेक्चरर की नियुक्ति पाई। संघर्ष बढ़ता रहा शर्मा परीक्षाएं उत्तीर्ण कर आगे बढ़ते रहे। अंतत: उन्होंने आईएएस की परीक्षा उत्तीर्ण की और मुकाम हासिल किया।
मनीराम के संघर्ष से हमें यह सिख मिलती है कि हमें हौसला बनाए रखना चाहिए कभी हार नही माननी चाहिए।