आजकल के बच्चे घर से बाहर जाकर खेलना बिल्कुल पसंद नहीं करते। उन्हें सिर्फ अपने घर में रहकर ऑनलाइन (Online) गेम खेलना ही पसंद आता है। वह समाज की नीतियों से दूर होते जा रहे हैं। पहले के दौर में ऐसा नहीं होता था। मोहल्ले में जब भी कोई आहट सुनाई देती थी बच्चे उसके पीछे दौड़ जाते थे मगर अब वह चीज धीरे-धीरे खत्म होती जा रही हैं।
आइए हम आपको लेकर चलते है 90 के उस दौर में जिससे कभी सड़के आवाद हुआ करती थीं लेकिन आज के दौर में बिल्कुल विरान हो चुकी हैं।
शरारत बंदर बंदरिया की

नट कला का सुंदर दृश्य

भालू का नाच

शुगर कैंडी को बच्चे बुढ़िया का बाल कहते थे।

मोहल्ले में अंकल चलाने देते थे किराए पर साइकिल।

रंग-बिरंगे शुगर कैंडी से बनाया जाता था कभी मोर और कुत्ता।

गांव में होता था कठपुतली का खेल।

गांव में दिखाया जाता था जादू का खेल जिसमें बस दो-तीन ही जादू होते थे मगर वह घंटो तक समा बांध कर रखते थे।

रूई Dhunka को बच्चे समझते थे म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट मोहल्ले में जब आता था तो बच्चे पूरे रास्ते इसके पीछे पीछे दौड़ते थे।

बाइस्कोप चलता फिरता सिनेमाघर होता था, कभी इससे हम पूरे संसार को देखते थे।

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