रामायण के अनुसार रावण ने भगवान राम के साथ लड़ाई कर अपना सब कुछ खो दिया था। यह लड़ाई इसलिए लड़ी गई थी क्योंकि रावण ने सीता का अपहरण कर लिया था। उसको वास्तुकला, शास्त्रों में ज्ञान और ज्योतिष की अच्छी तरह से जानकरी थी, इसलिए कहा जाता है कि उसके दस सिर इसी कारण से थे। वह तंत्र शास्त्र और ज्योतिष पर किताब लिख चुका था जिनका नाम रावण संहिता है। जिसे ज्योतिष की सबसे बेहतरीन किताब माना जाता है। इस वजह से रावण में बहुत अधिक आत्मविश्वास और अहंकार आ गया था। इसी का परिणाम था कि भगवान राम ने उन्हें लड़ाई के दौरान मार डाला था। आज हम आपको रावण से जुड़ी कुछ बातों को बताएंगे जो शायद कम ही लोग जानते है।
रावण नाम शिव से मिला था
रावण महादेव को कैलाश से लंका में ले जाना चाहता था। जिसके लिए उसने पर्वत उठा लिया था। लेकिन शिव ने पर्वत पर अपना पैर रख दिया और अपनी एक पैर की अंगुली से रावण की अंगुली कुचल दी। रावण दर्द से दहाड़ा, वह शिव की शक्ति को जानता था इसीलिए उसने शिव तांडव स्त्रोतम् प्रदर्शन शुरू कर दिया। और यह कहा जाता है कि रावण ने अपने 10 में से 1 सिर को वीणा की तुम्बी के रूप में, अपने एक हाथ को धरनी के रूप में अपनी तंत्रिकाओं के उपयोग से एक वीणा को रूपांकित किया जो रूद्र-वीणा के नाम से जानी जाती है। इससे शिव प्रभावित हो गए और उसे ‘रावण’, जो व्यक्ति जोर से दहाड़ता है, का नाम दिया गया।

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नाभि में था जीवन
रावण ने अमृत्व प्राप्ति के उद्देश्य से भगवान ब्रह्मा की घोर तपस्या कर वरदान माँगा, लेकिन ब्रह्मा ने उसके इस वरदान को न मानते हुए कहा कि तुम्हारा जीवन नाभि में स्थित रहेगा। रावण की अजर-अमर रहने की इच्छा रह ही गई। यही कारण था कि जब भगवान राम से रावण का युद्ध चल रहा था तो रावण और उसकी सेना राम पर भारी पड़ने लगे थे। ऐसे में विभीषण ने राम को यह राज बताया कि रावण का जीवन उसकी नाभि में है। नाभि में ही अमृत है। तब राम ने रावण की नाभि में तीर मारा और रावण मारा गया।

रावण का विमान पुष्पक
रावण ने कुबेर को लंका से हटाकर वहां खुद का राज्य कायम किया था। धनपति कुबेर के पास पुष्पक विमान था जिसे रावण ने छीन लिया था। रामायण अनुसार रावण सीता का हरण कर पुष्पक विमान द्वारा उन्हें श्रीलंका ले गया था। रामायण में वर्णित है कि युद्ध के बाद श्रीराम, सीता, लक्ष्मण तथा अन्य लोगों के साथ दक्षिण में स्थित लंका से अयोध्या पुष्पक विमान द्वारा ही आए थे। पुष्पक विमान को रावण ने अपने भाई धनपति कुबेर से बलपूर्वक हासिल किया था।

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रावण की रचना
रावण महादेव का बहुत बड़ा भक्त था। रावण ने शिव तांडव स्तोत्र की रचना करने के अलावा अन्य कई तंत्र ग्रंथों की रचना की। रावण बहुत बड़ा पंडित था। राम ने जब रामेश्वरम् में शिवलिंग की स्थापना की थी तब विद्वान पंडित की आवश्यकता थी। रावण ने इस आमंत्रण को स्वीकारा था। दूसरी ओर राम-रावण के युद्ध के दौरान रावण ने लंका के ख्यात आयुर्वेदाचार्य सुषेण द्वारा अनुमति मांगे जाने पर घायल लक्ष्मण की चिकित्सा करने की अनुमति सहर्ष प्रदान की थी। इस तरह रावण की विनम्रता और अच्छाई के किस्से भी कई है।

प्रतिज्ञा पे अटल रहा रावण, राजीनीति का ज्ञाता भी था
रावण ने दो वर्ष सीता को अपने पास बंधक बनाकर रखा था। लेकिन उसने भूलवश भी सीता को छूआ तक नहीं था। हालांकि इसके पीछे उसकी प्रतिज्ञा थी। जब रावण मृत्युशैया पर पड़ा था, तब राम ने लक्ष्मण को राजनीति का ज्ञान लेने रावण के पास भेजा। जब लक्ष्मण रावण के सिर की ओर बैठ गए, तब रावण ने कहा ‘सीखने के लिए सिर की तरफ नहीं, पैरों की ओर बैठना चाहिए, यह पहली सीख है।’ रावण ने राजनीति के कई गूढ़ रहस्य बताए।

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मायावी था रावण पता था कि भगवान ने अवतार लिया है
शक्तियां दो तरह की होती हैं, एक दिव्य और दूसरी मायावी। रावण मायावी शक्तियों का स्वामी था। रावण एक त्रिकालदर्शी था। उसे मालूम हुआ कि प्रभु ने राम के रूप में अवतार लिया है और वह पृथ्वी को राक्षसविहीन करना चाहते हैं। तब रावण ने राम से बैर लेने की सोची। भगवान के हाथों मारे जाने के बाद मोक्ष की प्राप्ती के लिए बेचैन था रावण।

बहन के मान-सम्मान के लिए युद्ध
भगवान श्रीराम के भाई लक्ष्मण ने रावण की बहन शूर्पणखा की नाक काट दी थी। पंचवटी में लक्ष्मण से अपमानित शूर्पणखा ने अपने भाई रावण से अपनी व्यथा सुनाई और उसके कान भरते कहा, ‘सीता अत्यंत सुंदर है और वह तुम्हारी पत्नी बनने के सर्वथा योग्य है। तब रावण ने अपनी बहन के अपमान का बदला लेने के लिए अपने मामा मारीच के साथ मिलकर सीता अपहरण की योजना रची। राम और लक्ष्मण की अनुपस्थिति में रावण सीता का अपहरण करके ले उड़ा। इस प्रकार अपने परिजनों के मान-सम्मान के लिए प्रतिबद्ध था रावण।