मनुस्मृति में लिखा है – “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता“
जहां महिलाओं का सम्मान होता है, वहां भगवान का वास होता है। लेकिन वर्तमान में, ऐसा कुछ भी नहीं लगता है। माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 22 जनवरी, 2015 को हरियाणा के पानीपत में बेटियों को समर्पित एक अभियान शुरू किया। उन्होंने इसे “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” अभियान कहा। अगर देश की बेटियां सुरक्षित और शिक्षित नहीं होंगी, तो देश और समाज की हालत नहीं बदलेगी। यह केवल एक सरकारी योजना नहीं है, बल्कि देश के प्रत्येक नागरिक की सामूहिक जिम्मेदारी है ।पर भारत में कुछ गांव ऐसे है जहां बेटी के जन्म होने और अत्यंत ही खुशियां मनाई जाती है।

कहाँ है यह गांव।
यह गांव राजस्थान के राजसमन्द जिले के पिपलांत्री नाम का गांव है जहाँ बेटी के पैदा होने पर 111 पौधे लगाकर अपनी खुशियां मनाई जाती हैं। ऐसी प्रथा वर्ष 2006 से चली आ रही है। इस गांव की कुल आबादी आठ हजार है।
इस गांव में प्रत्येक वर्ष लगभग 60 लड़कियों का जन्म होता है। लड़कियों के जन्म के कारण अभी तक इस गांव में ढाई लाख वृक्ष लगाए जा चुके है।

सरपंच ने की थी इसकी शुरुआत।
श्याम सुन्दर पालीवाल नाम के सरपंच ने इसकी शुरुआत की थी। सरपंच ने अपनी बेटी की याद मे ऐसी प्रथा की शुरुआत की। यहाँ बेटी के जन्म के बाद उसके आगे की भविष्य के लिए कुछ रकम भी जमा किए जाते है। जिसमे गांव के लोग एवं लड़की के माता-पिता की भागीदारी होती है। लड़की के माता-पिता से एक एफिडेवीट पर हस्ताक्षर कराया जाता है। उस एफिडेवीट के अनुसार 18 वर्ष के पहले वह अपनी बच्ची की शादी नहीं कर सकते हैं। इस गांव से हमें सिख लेनी चाहिए ।

बेटियां ही है इस पृथ्वी की आधार।
पृथ्वी पर मानव जाति का अस्तित्व, आदमी और औरत दोनों की समान भागीदारी के बिना संभव नहीं होता है। दोनों ही पृथ्वी पर मानव जाति के अस्तित्व के साथ-साथ किसी भी देश के विकास के लिए समान रूप से जिम्मेदार है। महिलाएं पुरुषों से अधिक महत्वपूर्ण होती हैं क्योंकि महिलाओं के बिना मानव जाति की निरंतरता के बारे में कल्पना भी नहीं की जा सकती हैं क्योंकि महिलाएं ही मानव को जन्म देती हैं।