कानून व्यवस्था एक ऐसा शब्द है जिसे हर कोई अपने जीवन मे कभी न कभी ज़रूर सुना होगा। यह शब्द केवल खबरों के लिहाज से ही नहीं बल्कि सामाजिक तौर पर भी महत्वपूर्ण है। बेहतर कानून व्यवस्था अच्छे समाज और माहौल का निर्माण करती है।
किसी भी राज्य, शहर अथवा क्षेत्र में शांति बनाए रखना, अपराधों को कम करना और नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करना कानून व्यवस्था का मुख्य अंग है। पर आपने कभी सोचा है कि कानून अंधा क्यों होता है? न्याय की देवी के आंखों पर पट्टी और हाथों में तराजू क्यो होता है? आइये जानते है इसके बारे में।

न्याय के मंदिर में सब बराबर
आपने कोर्ट में देखा होगा कि न्याय की देवी के आंखों पर पट्टी और हाथों में तराजू होता है। यह प्रतीकात्मक होता है। इससे समाज को, लोगों को यह बताने की कोशिश की गई है कि न्याय किसी को देखकर नही किया जा सकता न्याय मे दया भी नहीँ हो सकती। न्यायाधीश यदि अपराधी पर दया करेगा तो न्याय नहीं कर सकता। न्याय की देवी की दोनो आंखे बंद रखने का मतलब यही है कि न्याय अंधा है वह किसी की पद, प्रतिष्ठा, अमीरी-गरीबी, महानता, क्षुद्रता देखकर न्याय नही करता। अपराधी को उसके द्वारा किए गए अपराध के बराबर मात्रा मे ही उसे दंड दिया जाना चाहिए। यही प्राकृतिक न्याय है।

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दंड का प्रावधान बराबर
तराजू के पलड़े बराबर इसलिए रखे जाते है। यानी किसी ने अपराध किया है या जिसके द्वारा जिस स्तर का एवं जिस परिमाण मे अपराध किया गया है उतनी ही मात्रा में दंड मिलेगा। इसी आधार पर ह’त्या का अपराध करने वाले की भी ह’त्या ( फां’सी) का प्रावधान किया गया है। किसी भी अपराधी को उसके अपराध के बराबर ही दंड देने का प्रावधान है। सबके लिए नियम बराबर है। किसी के साथ कोई भेदभाव नही हो सकता है।

पौराणिक कथा की मान्यता
पौराणिक कथाओं के अनुसार न्याय की देवी की अवधारणा यूनानी देवी डिकी की कहानी पर आधारित है। कलात्मक दृष्टि से डिकी को हाथ में तराजू लिए दर्शाया जाता था। डिकी ज़्यूस की पुत्री थीं और मनुष्यों का न्याय करती थीं। वैदिक संस्कृति में ज्यूस को प्रकाश और ज्ञान का देवता अर्थात् बृहस्पति कहा गया है। उनका रोमन पर्याय जस्टिशिया देवी था। जिन्हें आंखों पर पट्टी बाँधे दर्शाया जाता था।
मान्यता ये भी है कि पाप से हृदय का भार बढ़ जाता है और पापी नरक में जा पहुंचता है। इसके विपरीत, पुण्य करने वाले स्वर्ग में जाते हैं। आंखों पर पट्टी यह दर्शाने के लिए थी कि ईश्वर की तरह कानून के समक्ष भी सब समान हैं।