आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हर कोई आगे बढ़ने की होड़ में लगा हुआ है। शहरों में आए दिन सड़क हादसे होते रहते है जिसमें कितने ही मासूमों की जान चली जाती है। कई लोग अपनों के खोने का गम भूलाकर फिर इसी भागदौड़ का हिस्सा बन जाते हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं जो ना केवल इन हादसों से जीवन का सबक सिखते हैं बल्कि अपना संपूर्ण जीवन लोगों की रक्षा करने में समर्पित कर देते हैं। इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण हैं साहिबाबाद के रहने वाले 75 वर्षीय गंगाराम। जिन्होंने एक सड़क हादसे में अपने बेटे को खो दिया था। जिसके बाद उन्होंने लोगों को सड़क हादसे से बचाने का प्रण ले लिया और आज वह पिछले 32 सालों से बिना किसी वेतन, बिना किसी स्वार्थ के ट्रैफिक पुलिस की भूमिका निभा रहे हैं। वह सड़को पर होने वाले हादसे के प्रति लोगों को जागरूक कर रहे हैं, ताकि उनके बेटे की तरह किसी और की जान ना जाए। गंगाराम के लिए अपने बेटे को खोने के बाद समाज सेवा करने का निर्णय लेना, और 32 सालों से बिना वेतन के काम करना आसान नहीं था। आइए जानते हैं उनके जीवन का प्रेरणादायी सफर।

32 वर्षों से बिना वेतन के कर रहे हैं ट्रैफिक पुलिस की नौकरी
दिल्ली के सीलमपुर चौक पर दुबले-पतले से हाथों में डंडा लिए 75 वर्षीय गंगाराम आपको ट्रैफिक संभालते हुए दिख जाएंगे। धूप, गर्मी, बरसात यहां तक की क’रोना के समय में भी वह अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटे। गंगाराम पिछले 32 सालों से बिना किसी वेतन के ट्रैफिक कंट्रोल के तौर पर सेवा कर रहे हैं। साहिबाबाद के एकता विहार में रहने वाले गंगाराम के एक इशारे भर से ट्रैफिक थमता और चलता है। यहां से गुजरने वाले ज्यादातर वाहन चालक गंगाराम को अच्छी तरह जानते हैं। उम्र के इस पड़ाव पर भी उनका जुनून देखते ही बनता है। दरअसल इसी चौक पर एक हादसे ने युवा बेटे को बुजुर्ग गंगाराम से छीन लिया था। अब वह यही कोशिश करते हैं कि यहां किसी और का बेटा हादसे का शिकार न हो। वह सुबह से रात तक यहां ट्रैफिक नियंत्रित करते हैं। ट्रैफिक पुलिस के अधिकारी भी उनका हौसला देखकर जवानों को नसीहत लेने के लिए कहते हैं। हर कोई उनके कार्य को देख नतमस्तक हो जाता है।

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बेटे के साथ हुए हादसे से बदल गई पूरी जिंदगी
गंगाराम की कुछ वर्ष पहले बी-ब्लॉक सीलमपुर में टीवी रिपेयरिंग की दुकान थी। अक्सर पुलिसकर्मी उनकी दुकान पर वायरलेस सेट आदि ठीक कराने आ जाते थे। उनका बेटा मुकेश भी उनके साथ ही काम करता था। ट्रैफिक पुलिस के जवानों से अच्छे संबंधों से उत्साहित होकर उन्होंने 32 साल पहले ट्रैफिक वार्डन के लिए अपना फार्म भर दिया था। उनका आईकार्ड भी बन गया था। जिसके बाद वह सुबह और शाम बिना वेतन ट्रैफिक कंट्रोल करने का काम करते थे। करीब आठ साल पहले उनके बेटे मुकेश को सीलमपुर चौक पर एक ट्रक ने टक्कर मार दी थी। वह बुरी तरह घायल हो गया था, उसकी रीढ़ की हड्डी टूट गई थी। उन्होंने अपने बेटे को लेकर छह माह इधर-उधर चक्कर लगाए, लेकिन उसके बावजूद उसकी मौत हो गई। इकलौते बेटे के सदमे में गंगाराम की पत्नी ममता देवी भी गुजर गईं। गंगाराम ने बहू रमा देवी की एक निजी अस्पताल में नौकरी लगवाई। लेकिन गंगाराम अपने बेटे को खोने का दुःख भूले नहीं थे।

इसलिए समाज सुधार करने की ठानी
बेटे की मौत के बाद गंगाराम टूट गए थे। लेकिन उनके हौसले कम नहीं हुए थे। उन्होंने अपने बेटे को सड़क हादसे में खोने के बाद यह प्रण लिया कि वह अब किसी और के साथ यह हादसा नहीं होने देंगे। जिसके बाद वह फुलटाईम बिना वेतन ट्रैफिक पुलिस के रूप में सेवा देने लगे। वह सुबह आठ से रात साढ़े आठ बजे तक सीलमपुर चौक पर मुफ्त में सेवा देते हैं। वह ट्रैफिक को कंट्रोल करने का कार्य करते हैं। यही नहीं उन्होंने कई जत्न करके अपनी दोनों पोतियों का भी विवाह करवाया। इतना कुछ होने के बाद भी गंगाराम आज भी मजबूत जज्बे के साथ अपने काम पर पूरी निष्ठा से कार्य करते हैं।

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क’रोना में भी बिना वेतन गंगाराम संभाल रहे यातायात
यही नहीं क’रोना महामारी के समय जब हर कोई अपनी और अपने अपनों की सुरक्षा के लिए घर में बंद था। उस समय में भी गंगाराम पूरी चुस्ती और फुर्ती से सेवा कर रहे थे। क’रोना महामारी भी उनके नेक इरादों को रोक नहीं सकी। 75 वर्षीय गंगाराम अपने इरादों पर अडिग हैं। जबकि सरकार ने बुजुर्गों को तो विशेषकर घर के अंदर रहने की हिदायत दी है। बावजूद इसके गंगाराम यह काम कर रहे हैं। यह सब उनके समर्पण और सेवाभाव को दिखाता है।

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दिल्ली सरकार ने भी गंगाराम को किया सम्मानित
75 वर्षीय गंगाराम जी के हौसले और त्याग को देखकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक कार्यक्रम में उन्हें पगड़ी पहनाकर सम्मानित किया था। इसके अलावा 15 अगस्त और 26 जनवरी को गंगाराम को बुलाकर सम्मान दिया जाता है। गंगाराम को आज कई सम्मान से सम्मानित किया जा चुका हैं। लेकिन गंगाराम के हौसले और उनके जज़्बे के आगे आज हर सम्मान कम है। आज भी गंगाराम भरी आंखों से कहते हैं कि सड़क से गुजरने वाले हर बाइक सवार में मुझे अपने बेटे का अक्स दिखाई देता है। किसी और का बेटा हादसे का शिकार न हो, इसलिए मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ इस चौराहे पर मुस्तैद रहता हूं।
एक हादसे में अपने बेटे को खोने वाले गंगाराम आज सही मायने में लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत है। उनका संपूर्ण जीवन सभी को प्रेरित करने वाला है। आज समाज को गंगाराम जैसे लोगों की सख्त जरूरत है।